महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 1 श्लोक 1-18
प्रथम (1) अध्याय: कर्ण पर्व
कर्णवध का संक्षिप्त वृतान्त सुनकर जनमेजय का वैशम्पायन जी से उसे विस्तारपूर्वक कहने का अनुरोध
‘अन्तर्यामी नारायणस्वरूप भगवान् श्रीकृष्ण, (उनके नित्य सखा) नरस्वरूप नरश्रेष्ठ अर्जुन, (उनकी लीला प्रकट करने वाली) भगवती सरस्वती और (उन लीलाओं का संकलन करने वाले) महर्षि वेदव्यास को नमस्कार करके जय (महाभारत) का पाठ करना चाहिये। वैशम्पायन जी कहते हैं – राजन ! द्रोणाचार्य के मारे जाने पर दुर्योधन आदि राजाओं का मन अत्यन्त उदिग्न हो गया था। वे सब के सब द्रोणपुत्र अश्वत्थामा के पास आवे। मोहवश उनका बल और उत्साह नष्ट सा हो गया था। वे द्रोणाचार्य लिये बारंबार चिन्ता करते हुए शोक से व्याकुल हो कृपी कुमार अश्वत्थामा के पास उसके चारों ओर बैठ गये।वे शास्त्रानुकूल युक्यिों द्वारा दो घडी तक अश्वत्थामा को सान्त्वना देते रहे। फिर रात हो जाने पर समस्त भूपाल अपने अपने शिविर में चले गये।
कुरूनन्दन ! शिविरों में भी वे भूपगण सुख न पा सके। संग्राम में जो घोर विनाश हुआ था, उसका चिन्तन करते हुए दुःख और शोक में डूब गये । विशेषतः सूतपुत्र कर्ण, राजा दुर्योधन, दुःशासन तथा महाबली सुबलपुत्र शकुनि – ये चारों उस रात को दुर्योधन के ही शिविर में रहे और महात्मा पाण्डवों को जो बडे बडे क्लेश दिये गये थे, उनका चिन्तन करते रहे। धूत-क्रीडा के समय जो द्रुपदकुमारी कृष्णा को सभा में लाया गया और उसे सर्वथा क्लेश पहॅुचाया गया, उसका बारंबार स्मरण करके वे शोकमग्न हो जाते और मन ही मन अत्यन्त उदिग्न हो उठते थे। राजन ! इस प्रकार पाण्डवों को जूए के द्वारा प्राप्त कराये गये उन क्लेशों का चिन्तन करते करते उनकी वह रात सौ वर्षो के समान बडे कष्ट से व्यतीत हुई। तदनन्तर निर्मल प्रभात काल आने पर दैव के अधीन हुए समस्त कौरवों ने शास्त्रोक्त विधि के अनुसार शौच, स्नान, संध्या-वन्दन आदि आवश्यक कार्य पूर्ण किया।
भरतनन्दन ! प्रतिदिन के आवश्यक कार्य सम्पन्न करके आश्वस्त हो उन्होंने सैनिकों को कवच आदि धारण करके तैयार हो जाने की आज्ञा दी तथा कौतुक एवं मांगलिक कृत्य पूर्ण करके कर्ण को सेनापति बनाकर वे सब के सब दही, पात्र, घृत, अक्षत, गौ, अश्व, कण्ठभूषण तथा बहुमूल्य वस्त्रों द्वारा श्रेष्ठ ब्राहमणों का आदर सत्कार करके सूत, मागध और बन्दीजनों द्वारा विजयसूचक आर्शीर्वादों से अभिवन्दित हो युध्द के लिये निकले। राजन ! इसी प्रकार पाण्डव भी पूर्वाहन में किये जाने वाले नित्य कर्मो का अनुष्ठान करके तुरंत ही शिविर से बाहर निकले। तदनन्तर एक दूसरे को जीतने की इच्छा वाले कौरवों और पाण्डवों में भयंकर रोमान्चकारी युध्द आरम्भ हो गया। राजन ! कर्ण के सेनापति हो जाने पर उन कौरव- पाण्डव सेनाओं में दो दिनों तक अद्भुत युध्द हुआ। उस युध्द में शत्रुओं का महान् संहार करके कर्ण धृतराष्ट पुत्रों के देखते देखते अर्जुन के हाथ से मारा गया। तदनन्तर संजय ने तुरंत हस्तिनापुर में जाकर कुरूक्षेत्र में जो घटना घटित हुई थी, वह सब धृतराष्ट से कह सुनायी। जनमेजय बोले- ब्रहमन् ! गजानन्दन भीष्म तथा महारथी द्रोण को मारा गया सुनकर ही बूढे राजा अम्बिका नन्दन धृतराष्ट को बडी भारी वेदना हुई थी।