महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 92 श्लोक 1-18
द्विनवतितम (92) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
अर्जुन का द्रोणाचार्य और कृतवर्मा के साथ युद्ध करते हुए कौरव-सेना में प्रवेश तथा श्रुतायुध का अपनी गदा से सुदक्षिणका अर्जुन द्वारा वध संजय कहते हैं- रथियों में श्रेष्ठ एवं महान् बल और पराक्रम से सम्पन्न अर्जुन जब उन कौरव सैनिकों द्वारा रोक दिये गये, उस समय द्रोणाचार्य ने भी तुरंत ही उनका पीछा किया। जैसे रोगों का समुदाय संतप्त कर देता है, उसी प्रकार अर्जुन ने कौरवों की उस सेना को अत्यनत संताप दिया। जैसे सूर्य अपनी प्रचण्ड किरणो का प्रसार करते हैं, उसी प्रकार तीखे बाण समूहों की वर्षा करने लगे। उन्होंने घोड़ों को घायल कर दिया, रथ के टुकड़े –टुकड़े कर डाले, गजारोहियों सहित हाथी को मार गिराया, छत्र इधर-उधर बिखेर दिये तथा रथों को पहियों से सूना कर दिया। उनके बाणों से पीडि़त होकर सारे सैनिक सब ओर भाग चले। वहां इस प्रकार भयंकर युद्ध हो रहा था कि किसी को कुछ भी भान नहीं हो रहा था। राजन्। उस युद्ध स्थल में कौरव-सैनिक एक दूसरे को काबू में रखने का प्रयत्न करते थे और अर्जुन अपने बाणों द्वारा उनकी सेना को बारंबार कम्पित कर रहे थे। सत्यप्रतिज्ञ शवेतवाहन अर्जुन ने अपनी प्रतिज्ञा सच्ची करने की इच्छा से लाल घोड़े वाले रथियों में श्रेष्ठ द्रोणाचार्य-पर धावा किया। उस समय आचार्य द्रोण ने अपने महाधनुर्धर शिष्य अर्जुन को पचीस मर्म भेदी बाणों द्वारा घायल कर दिया। तब सम्पूर्ण शस्त्रधारियों में श्रेष्ठ अर्जून ने भी तुरंत ही उनके बाणों के वेग का विनाश करने वाले भल्लों का प्रहार करते हुए उन पर आक्रमण किया। अमेय आत्मबल से सम्पन्न द्रोणाचार्य ने अर्जुन के तुरंत चलाये हुए उन भल्लों को झुकी हुई गांठ वाले भल्लों द्वारा ही काट दिया और ब्रहास्त्र प्रकट किया। उस युद्ध स्थल में द्रोणाचर्य अभ्दुत अस्त्र शिक्षा हमने देखी कि नवयुवक अर्जुन प्रयत्नशील होने पर भी उन्हें अपने बाणों द्वारा चोट न पहंचा सके। जैसे महान् मेघ जल की सहस्त्रों धाराएं बरसाता रहता है, उसी प्रकार द्रोणाचार्य रूपी मेघ ने अर्जुन रूपी पर्वत पर बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी। पूजनीय नरेश। उस समय अपने बाणों द्वारा उनके बाणों को काटते हुए तेजस्वी अर्जुन ने भी ब्रहास्त्र द्वारा ही आचार्य की उस बाण-वर्षा को रोका। तब द्रोणाचार्य ने पचीस बाण मारकर श्वेतवाहन अर्जुन को पीडि़त कर दिया। साथ ही श्री कृष्ण की भुजाओं तथा वक्ष:स्थल में भी उन्होंने सत्तर बाण मारे। परम बुद्धिमान अर्जुन ने हंसते हुए ही युद्ध स्थल में तीखे बाणों की बौछार करने वाले द्रौणाचार्य को उनकी बाण-वर्षा सहित रोक दिया। तदनन्तर द्रोणाचार्य के द्वारा घायल किये जाते हुए वे दोनों रथि श्रेष्ठ श्री कृष्ण और अर्जुन उस समय प्रलय काल की अग्रि के समान उठे हुए उन दुर्धर्ष आचार्य को छोड़कर अन्यत्र चल दिये। द्रोणाचार्य के धनुष से छुटे हुए तीखे बाणों का निवारण करते हुए किरीटधारी कुन्तीकुमार अर्जुन ने कृतवर्मा की सेना का संहार आरम्भ किया वे मैनाक पर्वत की भांति अविचल भाव से स्थित द्रोणाचार्य को छोड़ते हुए कृत वर्मा तथा काम्बोजराज सुदक्षिण-के बीच से होकर निकले तब पुरुषसिंह कृत वर्मा ने कुरु कुल के श्रेष्ठ एवं दुर्धर्ष वीर अर्जुन को कंकपत्र युक्त दस बाणों द्वारा तुरंत ही घायल कर दिया। उस समय उसके मन में तनिक भी व्यग्रता नहीं हुई।
« पीछे | आगे » |