महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 77 श्लोक 1-18

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सप्‍तसप्‍ततितम (77) अध्याय: आश्‍वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्‍वमेधिक पर्व: सप्‍तसप्‍ततितम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

अर्जुन का सैन्‍धवों के साथ युद्ध

वैशम्‍पायनजी कहते है– भरतनन्‍दन ! महाराज भगदत्‍त के पुत्र राजा वज्रदत्‍त को पराजित और प्रसन्‍न करने के पश्‍चात उसे विदा करके जब अर्जुन का घोड़ा सिंधु देश में गया, तब महाभारत– युद्ध में मरने से बचे हुए सिंधु देशीय योद्धाओं तथा मारे गये राजाओं के पुत्रों के साथ किरीटधारी अर्जुन का घोर संग्राम हुआ। यज्ञ के घोड़े को और श्‍वेत वाहन अर्जुन को अपने राज्‍य के भीतर आया हुआ सुनकर वे सिंधुदेशीय क्षत्रिय अमर्ष में भरकर उन पाण्‍डव प्रवर अर्जुन का सामना करने के लिये आगे बढ़े। वे विष के समान भयंकर क्षत्रिय अपने राज्‍य के भीतर आये हुए उस घोड़ेको पकड़कर भीमसेन के छोटे भाई अर्जुन से तनिक भी भयभीत नहीं हुए। यज्ञ सम्‍बन्‍धी घोड़े से थोड़ी ही दूर पर अर्जुन हाथ में धनुष लिये पैदल ही खड़े थे । वे सभी क्षत्रिय उनके पास जा पहुंचे। वे महापराक्रमीक्षत्रिय पहले युद्ध में अर्जुन से परास्‍त हो चुके थे और अब उन पुरुषसिंह को पार्थ को जीतना चाहते थे । अत: उन सबने उन्‍हें घेर लिया। वे अर्जुन से अपने नाम, गोत्र और नाना प्रकार के कर्म बताते हुए उन पर बाणों की बौछार करने लगे। वे ऐसे बाण समूहों की वर्षा करते थे, जो हाथियों को आगे बढ़ने से रोक देने वाले थे । उन्‍होंने रणभूमि में विजय की अभिलाषा रखकर कुन्‍ती कुमार को घेर लिया। युद्ध में भयानक कर्म करने वाले अर्जुन को पैदल देखकर वे सभी वीर रथ पर आरूढ़ हो उनके साथ युद्ध करने लगे। निवाम कवचों का विनाश,संशप्‍तकों का संहार और जयद्रथ का वध करने वाले वीर अर्जुन पर सैन्‍धवों ने सब ओर से प्रहार आरम्‍भ कर दिया। एक हजार रथ और दस हजार घोड़ों से अर्जुन को घेरकर उन्‍हें कोष्‍ठबद्ध–सा करके वे मन–ही–मन बड़े प्रसन्‍न हो रहे थे। कुरुनन्‍दन ! कुरुक्षेत्र के समरांगण में सव्‍यसाची अर्जुन द्वारा जो सिंधुराज जयद्रथ का वध हुआ था, उसकी याद उन वीरों को कभी भूलती नहीं थी। वे सब योद्धा मेघ के समान अर्जुन पर बाणों की वर्षा करने लगे । उन बाणों से आच्‍छादित होकर कुन्‍तीनन्‍दन अर्जुन बादलों में छिपे हुए सूर्य की भांति शोभा पा रहे थे। भरतनन्‍दन ! बाणों से आच्‍छादित हुए पाण्‍डवप्रवर अर्जुन पींजड़े के भीतर फुदकने वाले पक्षी की भांति जान पड़ते थे। राजन ! कुन्‍तीकुमार अर्जुन जब इस प्रकार बाणों पीड़ित हो गये, तब उनकी ऐसी अवस्‍था देख त्रिलोकी हाहाकार कर उठी और सूर्यदेव की प्रभा फीकी पड़ गयी। महाराज ! उस समय रोंगटे खड़े कर देने वाली प्रचण्‍ड वायु चलने लगी । राहु ने एक ही समय सूर्य और चन्‍द्रमा दोनों को ग्रस लिये। चारों ओर बिखरकर गिरती हुई उल्‍काएं सूर्य से टकराने लगीं । राजन ! उस समय महापर्वत कैलास भी कांपने लगा। सप्‍तर्षियों और देवर्षियों को भी भय होने लगा । वे दु:ख और शोक से संतप्‍त हाक अत्‍यन्‍त गरम–गरम सांस छोड़ने लगे। पूर्वोक्‍त उल्‍काऐं चन्‍द्रमा में स्‍थितहुए शशचिन्‍ह का भेदन करके चन्‍द्रमण्‍डल के चारों ओर गिरने लगीं । सम्‍पूर्ण दिशाएं धूमाच्‍छन्‍न होकरविपरीत प्रतीत होने लगीं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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