महाभारत सभा पर्व अध्याय 11 श्लोक 1-19
एकादश (11) अध्याय: सभा पर्व (लोकपालसभाख्यान पर्व)
ब्रह्माजी की सभा का वर्णन
नारद जी कहते हैं- तात भारत ! अब तुम मेरे मुख से कही हुई पितामह ब्रह्मा जी की सभा का वर्णन सुनो ! वह सभा ऐसी है, इस रूप से नहीं बतलायी जा सकती। राजन् ! पहले सत्ययुग की बात है, भगवान् सूर्य ब्रह्मा जी की सभा देखकर फिर मनुष्य लोक को देखने के लिये बिना परिश्रम के ही द्युलोक से उतरकर इस लोक में आये और मनुष्य रूप से इधर-उधर विचरने लगे। पाण्डुनन्दन ! सूर्य देव ने मुझ से उस ब्राह्मी सभा का यथार्थतः वर्णन किया। भरत श्रेष्ठ ! वह सभा अप्रमेय, दिव्य, ब्रह्माजी के मानसिक संकल्प से प्रकट हुई तथा समस्त प्राणियों के मन को मोह लेने वाली है। उस का प्रभाव अवर्णनीय है। पाण्डु कुलभूषण युधिष्ठिर ! उस सभा के अलौकिक गुण सुनकर मेरे मन में उस के दर्शन की इच्छा जाग उठी और मैंने सूर्य देव से कहा-‘भगवान् ! मैं भी ब्रह्माजी की कल्याणमयी सभा का दर्शन करना चाहता हूँ । किरणों के स्वामी सके, वह मुझे बताइये ।
भगवान् ! मैं जैसे भी उस सभा को देख सकूँ , उस उपाय का वर्णन कीजिये’। भरतश्रेष्ठ ! मेरी वह बात सुनकर सहस्त्रों किरणों वाले भगवान् दिवाकर ने कहा-‘तुम एकाग्रचित्त होकर ब्रह्मा जी-के व्रत का पालन करो । वह श्रेष्ठ व्रत एक हजार वर्षों में पूर्ण होगा ।’ तब मैंने हिमालय के शिखर पर आकर उस महान् व्रत का अनुष्ठान आरम्भ कर दिया। तदनन्तर मेरी तपस्या पूर्ण होने पर पापरहित, क्लेशशून्य और परम शक्तिशाली भगवान् सूर्य मुझे साथ ले ब्रह्माजी की उस सभा में गये। राजन् ! वह सभा ‘ऐसी ही है’ इस प्रकार नहीं बताथी जा सकती ; क्योंकि वह एक-एक क्षण में दूसरा अनिर्वचनीय स्वरूप धारण कर लेती है। भारत ! उसकी लंबाई-चैड़ाई कितनी है अथवा उसकी स्थिति क्या है, यह सब मैं कुछ नहीं जानता । मैंने किसी भी सभा का वैसा स्वरूप पहले कभी नहीं देखा था।
राजन् ! वह सदा उत्तम सुख देने वाली है । वहाँ न सर्दी का अनुभव होता है, न गर्मी का । उस सभा में पहुँच जाने पर लोगों को भूख, प्यास और ग्लानिका अनुभव नहीं होता। वह सभा अनेक प्रकार की अत्यन्त प्रकाशमान मणियों से निर्मित हुई है । वह खंभों के आधार पर नहीं टिकी है और उस में कभी क्षयरूप विकार न आने के कारण वह नित्य मानी गयी है[1]। अनन्त प्रभा वाले नाना प्रकार के प्रकाशमान दिव्य पदार्थों द्वारा अग्नि, चन्द्रमा और सूर्य से भी अधिक स्वयं ही प्रकाशित होने वाली वह सभा अपने तेज से सूर्य मण्डल को तिरस्कृत करती हुई-सी स्वर्ग से भी ऊपर स्थित हुई प्रकाशित हो रही है। राजन् ! उस सभा में सम्पूर्ण लोकों के पितामह ब्रह्मा जी देवमाया द्वारा समस्त जगत् की स्वयं ही सृष्टि करते हुए सदा अकेले ही विराजमान होते हैं। भारत ! वहाँ दक्ष आदि प्रजापतिगण उन भगवान् ब्रह्मा जी की सेवा में उपस्थित होते हैं । दक्ष, प्रचेता, पुलह, मरीचि, प्रभावशाली कश्यप,। भृगु, अत्रि, वसिष्ठ, गौतम, अंगिरा, पुलस्त्य, क्रतु, प्रह्लाद, कर्दम,।
« पीछे | आगे » |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ ‘एतत् सत्यं ब्रह्मपुरम्’ इस श्रुति से भी उस की नित्यता ही सूचित होती है।