महाभारत सौप्तिक पर्व अध्याय 5 श्लोक 1-17
पञ्चम (5) अध्याय: सौप्तिक पर्व
अश्वत्थामा और कृपाचार्य का संवाद तथा तीनों का पाण्डवों के शिविर की ओर प्रस्थान कृपाचार्य बोले- अश्वत्थामन ! मेरा विचार है कि जिस मनुष्य की बुद्धि दुर्भावना से युक्त है तथा जिसने अपनी इन्द्रियों को काबू में नहीं रखा है, वह धर्म और अर्थ की बातों को सुनने की इच्छा रखने पर भी उन्हें पूर्णरूप से समझ् नहीं सकता । इसी प्रकार मेधावी होने पर भी जो मनुष्य विनय नहीं सीखता, वह भी धर्म और अर्थ के निर्णय को थोड़ा भी नही समझ पाता है । जिसकी बुद्धि पर जड़ता छा रहीं हो, वह शूरवीर योद्धा दीर्घकाल तक विद्वान् की सेवा में रहने पर भी धर्मों का रहस्य नहीं जान पाता। ठीक उसी तरह, जैसे करछुल दाल में डूबी रहने पर भी उसके स्वाद को नहीं जानती है । जैसे जिह्वा दाल के स्वाद को जानती है, उसी प्रकार बुद्धिमान पुरुष यदि दो घड़ी भी विवेकशील की सेवा में रहे तो वह शीघ्र ही धर्मों का रहस्य जान लेता है । अपनी इन्द्रियों को वश में रखने वाला मेधावी पुरुष यदि विद्वानों की सेवा में रहे और उनसे कुछ सुनने की इच्छा रक्खे तो वह सम्पूर्ण शास्त्रों को समझ लेता है तथा ग्रहण करने योग्य वस्तु का विरोध नहीं करता । परंतु जिसे सन्मार्ग पर नहीं ले जाया जा सकता, जो दूसरों की अवहेलना करने वाला है तथा जिसका अन्त:करण दूषित है, यह पापात्मा पुरुष बताये हुए कल्याणकारी पथ को छोड़कर बहुत-से पापकर्म करने लगता है । जो सनाथ है, उसे उसके हितैषी सुह्नद् पापकर्मों से रोकते हैं, जो भाग्यवान हैं- जिसके भाग्य में सुख भोगना है, वह मना करने पर उस पाप कर्म से रूक जाता है; परंतु जो भाग्यहीन है, वह उस दुष्कर्म से नहीं निवृत होता है । जैसे मनुष्य विक्षिपत चित्त वाले पागल को नाना प्रकार के ऊँच-नीच वचनों द्वारा समझा-बुझाकर या डरा-धमकाकर काबू में लाते हैं, उसी प्रकार सुह्नद्गगण भी अपने स्वजन को समझा-बुझाकर और डट-डपटकर वश में रखने की चेष्टा करते हैं। जो वश में आ जाता है, वह तो सुखी होता है और जो किसी तरह काबू में नहीं आ सकता, वह दु:ख भोगता है । इसी तरह विद्वान् पुरुष पापकर्म में प्रवृत होने वाले अपने बुद्धिमान सुह्नद को भी यथाशक्ति बारंबार मना करते हैं । तात ! तुम भी स्वयं ही अपने मन को काबू में करके उसे कल्याण साधन में लगाकर मेरी बात मानो, जिससे तुम्हें पश्चात्ताप न करना पड़े । जो सोये हुए हों, जिन्होंने अस्त्र-शस्त्र रख दिये हों, रथ और घोड़े खोल दिये हों, जो मैं आपका ही हूँ ऐसा कह रहे हों, जो शरण में आ गये हों, जिनके बाल खुले हुए हों तथा जिनके वाहन नष्ट हो गये हों, इस लोक में ऐसे लोगों का वध करना धर्म की दृष्टि से अच्छा नहीं समझा जाता । प्रभो ! आज रात में समस्त पांचाल कवच उतारकर निश्चिन्त हो मुर्दों के समान अचेत सो रहे होंगे। उस अवस्था में जो क्रूर मनुष्य उनके साथ द्रोह करेगा, वह निश्चित ही नौकारहित अगाध एवं विशाल नरक के समुद्र में डूब जायेगा । संसार के सम्पूर्ण अस्त्रवेत्ताओं में तुम श्रेष्ठ हो। तुम्हारी सर्वत्र ख्याति हैं इस जगत् में अब तक कभी तुम्हारा छोटे-से-छोटा दोष भी देखने में नहीं आया है । कल सवेरे सूर्योदय होने पर तुम सूर्य के समान प्रकाशित हो उजाले में युद्ध छेड़कर समस्त प्राणियों के सामने पुन: शत्रुओं पर विजय प्राप्त करना । जैसे सफेद वस्त्र में लाल रंग का धब्बा लग जाय, उस प्रकार तुम्हें निन्दित कर्म का होना सम्भावना से परे की बात है, ऐसा मेरा विश्वास है ।
« पीछे | आगे » |