महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 85 श्लोक 1-18

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पंचाशीतितम (85) अध्‍याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: पंचाशीतितम अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

यज्ञ भूमि की तैयारी, नाना देशों से आये हुए राजाओं का यज्ञ की सजावट और आयोजन देखना

वैशम्‍पायनजी कहते हैं– जनमेजय ! गान्‍धार राज से यों कहकर अर्जुन इच्‍छानुसार विचरने वाले घोड़े के पीछे चल दिये । अब वह घोड़ा लौटकर हस्‍तिनापुर की ओर चला । इसी समय राजा युधिष्‍ठिर को एक जासूस के द्वारा यह समाचार मिला कि घोड़ा हस्‍तिनापुर को लौट रहा है और अर्जुन भी सकुशल आ रहे हैं । यह सुनकर उनके मन में बड़ी प्रसन्‍नता हुई । अर्जुन ने गान्‍धार राज्‍य में तथा अन्‍यान्‍य देशों में जो अद्भुत पराक्रम किया था, वह सब सुनकर युधिष्‍ठिर के हर्ष की सीमा न रही । कुरुनन्‍दन ! उस दिन माघ महीने की शुक्‍ल पक्ष की द्वादशी तिथि थी । उसमें पुष्‍य – नक्षत्र का योग पाकर महातेजस्‍वी पृथ्‍वीपति धर्मराज युधिष्‍ठिर ने अपने समस्‍त भाइयों- भीमसेन, नकुल और सहदेव को बुलवाया और प्रहार करने वालों में श्रेष्‍ठ भीमसेन को सम्‍बोधित करके वक्‍ताओं तथा धर्मात्‍माओं में श्रेष्‍ठ युधिष्‍ठिर ने यह समयोचित बात कही- 'भीमसेन ! तुम्‍हारे छोटे भाई अर्जुन घोड़े के साथ आ रहे हैं, जैसा कि उनका समाचार लाने के लिये गये जासूसों ने मुझे बताया है । 'वृकोदर ! इधर यज्ञ आरम्‍भ करने का समय भी निकट आ गया है । घोड़ा भी पास ही है । यह माघ–मास की पूर्णिमा आ रही है, अब बीच में केवल फाल्‍गुन का एक मास शेष है । 'अत: वेद के पारंगत विद्वान् ब्राह्मणों को भेजना चाहिये कि वे अश्‍वमेध – यज्ञ की सिद्धि के लिये उपयुक्‍त स्‍थान देखें' । यह सुनकर भीमसेन ने राजा की आज्ञा का तुरंत पालन किया । वे पुरुषप्रवर अर्जुन का आगमन सुनकर बहुत प्रसन्‍न थे । तत्‍पश्‍चात् भीमसेन यज्ञ कर्म में कुशल ब्राह्मणों को आगे करके शिल्‍प कर्म के जानकार कारीगरों के साथ नगर से बाहर गये । उन्‍होंने शाल वृक्षों से भरे हुए सुन्‍दर स्‍थान पसंद करके उसे चारों ओर से नपवाया । तत्‍पश्‍चात् कुरुनन्‍दन भीम ने वहां उत्‍तम मार्गों से सुशोभित यज्ञ भूमि का विधिपूर्वक निर्माण कराया । उस भूमि में सैकड़ों महल बनवाये गये, जिसके फर्श में अच्‍छे – अच्‍छे रत्‍न जड़े हुए थे । वह यज्ञशाला सोने और रत्‍नों से सजायी गयी थी और उसका निर्माण शास्‍त्रीय विधि के अनुसार कराया गया था । वहां सुवर्णमय विचित्र खम्‍भे और बड़े–बड़े तोरण (फाटक) बने हुए थे । धर्मात्‍मा भीम ने यज्ञ मण्‍डप के सभी स्‍थानों में शुद्ध सुवर्ण का उपयोग किया था । उन्‍होंने अन्‍त:पुर की स्‍त्रियों, विभिन्‍न देशों से आये हुए राजाओं, तथा नाना स्‍थानों से पधारे हुए ब्राह्मणों के रहने के लिये भी अनेकानेक उत्‍तम भवन बनवाये । उन सबका निर्माण कुन्‍तीकुमार भम ने शिल्‍प शास्‍त्र की विधि के अनुसार कराया था । महाबाहो ! यह सब काम हो जाने पर भीमसेन ने ज युधिष्‍ठिर की आज्ञा से अनायास ही महान् पराक्रम कर दिखाने वाले विभिन्‍न राजाओं को निमन्‍त्रण देने के लिये बहुत–से दूत भेजे । नृपश्रेष्‍ठ ! निमन्‍त्रण पाकर वे सभी नरेश कुरुराज युधिष्‍ठिर का प्रिय करने के लिये अनेकानेक रत्‍न, स्‍त्रियां, घोड़े और भांति–भांति के अस्‍त्र–शस्‍त्र लेकर वहां उपस्‍थित हुए ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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