महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 47 श्लोक 1-23

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सप्तमचत्वारिंश (47) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: सप्तमचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद

कौरवों और पाण्ड्वों की सेनाओं का भयंकर युद्ध तथा अर्जुन और कर्ण का पराक्रम

धृतराष्ट्रप ने पूछा- संजय। इस प्रकार जब सारी सेनाओं की व्यूाहरचना हो गयी और दोनों दलों के योद्धा परस्पपर युद्ध करने लगे, तब कुन्ती पुत्र अर्जुन ने संशप्तऔकोंपर और कर्ण ने पाण्डोव-योद्धाओं पर कैसे धावा किया। सूत। तुम युद्ध सम्ब न्धीस इस समाचार का विस्तांरपूर्वक वर्णन करो, क्योंा‍कि इस कार्य में कुशल हो। रणभूमि में वीरों के पराक्रम का वर्णन सुनकर मुझे तृप्ति नहीं हो रही है। संजय कहते है- महाराज। आपके पुत्र की दुर्नीतिके कारण शत्रुओं की उस विशाल सेना को युद्ध में उपस्थित जानकर अर्जुन ने अपनी सेना का भी व्यू ह बनाया। घुड़सवारों, हाथियों, रथों तथा पैदलों से भरे हुए उस व्यूह के मूख भाग में धृष्ट द्युम्न। खड़े थे, जिससे उस विशाल सेना की बड़ी शोभा हो रही थी। कबूतर के समान रंगवाले घोड़ों से युक्त और चन्द्रसमा तथा सूर्य के समान तेजस्वीस धनुर्धर वीर द्रुपदकुमार धृष्टवद्युम्नय वहां मूर्तिमान् काल के समान जान पड़ते थे। दिव्यर कवच और आयुध धारण किये, सिंह के समान पराक्रमी सेवकों सहित समस्ता द्रौपदी पुत्र युद्ध के लिये उत्सुधक हो धृष्टटद्युम्न की रक्षा करने लगे, मानो तेजस्वीय शरीरवाले नक्षत्र चन्द्रहमा का संरक्षण कर रहे हों । इस प्रकार सेनाओं की व्यूमह-रचना हो जाने पर रणभूमि में संशप्तीकों की ओर देखकर क्रोध में भरे हुए अर्जुन ने गाण्डीवव धनुष की टंकार करते हुए उन पर आक्रमण किया। तब विजय का दृढ़ संकल्पड लेकर मृत्युं को ही युद्ध से निवृत्त होने का निमित्त बनाकर अर्जुन के वध की इच्छाकवाले संशप्तयकों ने भी उन पर धावा बोल दिया। संशप्तअकों की सेना में पैदल मनुष्यों और घुड़सवारों की संख्याो बहुत अधिक थी। मतवाले हाथी और रथ भी भरे हुए थे। पैदलों सहित शूरवीरों के उस समुदाय ने तुरंत ही अर्जुन को पीड़ा देना आरम्भे किया । किरीटधारी अर्जुन के साथ संशप्तरकों का वह संग्राम वैसा ही भयानक था, जैसा कि निवातकवच नामक दानवों के साथ अर्जुन का युद्ध हमने सुन रखा है ।
तदनन्तकर कुन्ती कुमार अर्जुन ने रण स्थल में आये हुए शत्रुपक्ष के रथों, घोड़ों, ध्वणजों, हाथियों और पैदलों को भी काट डाला, उन्होंकने शत्रुओं के धनुष, बाण, खड़, चक्र, फरसे, आयुधों सहित उठी हुई भुजा, नाना प्रकार के अस्त्रो-शस्त्र तथा सहस्त्रों मस्तरक काट गिराये। सेनाओं की उस विशाल भंवर में जो पातालतल के समान प्रतीत होता था, अर्जुन के उस रथ को निमग्नई हुआ मानकर संशप्तसक सैनिक प्रसन्नत हो सिंहनाद करने लगे। तत्पसश्चात् उन शत्रुओं का वध करके पुन: अर्जुन ने कुपित हो उत्तर, दक्षिण और पश्चिम की ओर से आपकी सेना का उसी प्रकार संहार आरम्भ किया, जैसे प्रलयकाल में रुद्र देव पशुओं (जगत् के प्राणियों) का विनाश करते हैं। माननीय नरेश। फिर आपके सैनिकों के साथ पाच्चाल, चेदि और सृजंय वीरों का अत्यैन्त, भयंकर संग्राम होने लगा। रथियों की सेना में प्रहार करने में कुशल कृपाचार्य, कृतवर्मा और सुबलपुत्र शकुनि ये रणदुर्मद वीर अत्यन्त। कुपित हो हर्ष में भरी हुई सेना साथ लेकर कोसल, काशि, मत्य्र, करुष, केकय तथा सूरसेनदेशीय शूरवीरों के साथ युद्ध करने लगे । उनका वह युद्ध क्षत्रिय, वैश्य एवं शूद्रवीरों के शरीर, पाप और प्राणों का विनाश करने वाला, संहारकारी, धर्मसंगत, स्व्र्गदायक तथा यश वृद्धि करने वाला था । भरतश्रेष्ठं। भाइयों सहित कुरुवीर दुर्योधन कौरव वीरों तथा मद्रदेशीय महारथियों से सुरक्षित हो रणभूमि में पाण्ड्वों, पाच्चालों, चेदिदेश के वीरों तथा सात्यशकि के साथ जूझते हुए कर्ण की रक्षा करने लगा । कर्ण भी अपने पैने बाणों से विशाल पाण्डकवसेना को हताहत करके बड़े बड़े रथियों को धूल में मिलाकर युधिष्ठिर को पीड़ा देने लगा। वह सहस्त्रोंड को वस्त्रं,आयुध, शरीर और प्राणों से शून्यु करके उन्हें स्वतर्ग और सुयश से संयुक्त करता हुआ आत्मीचयजनों की आनन्दश प्रदान करने लगा। मान्यवर। इस प्रकार मनुष्यों, घोड़ों और हाथियों का विनाश करने वाला वह कौरवों तथा सृंजयों का युद्ध देवासुर संग्राम के समान भयंकर था।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में संकुलयुद्ध‍ विषयक सैंतालीसवां अध्याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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