महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 35 श्लोक 1-19

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

सप्‍त‍त्रिश (35) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: सप्‍त‍त्रिश अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

अभिमन्‍यु का पराक्रम, उसके द्वारा अश्‍मक पुत्र का वध, शल्‍य का मूर्छित होना और कौरव सेना का पलायन

संजय कहते है– राजन् ! अमित तेजस्‍वी सुभद्राकुमार अभिमन्‍यु ने कौरव सेना को मार भगाया है, यह देखकर अत्‍यन्‍त क्रोध मे भरा हुआ दुर्योधन स्‍वयं सुभद्राकुमार का सामना करने के लिये आया । उस युद्धस्‍थल में राजा दुर्योधन को अभिमन्‍यु की ओर लौटते देख द्रोणाचार्य ने समस्‍त योद्धाओं से कहा- वीरों ! कौरव नरेश की सब ओर से रक्षा करो ।बलवान अभिमन्‍यु हमारे देखते-देखते अपने लक्ष्‍य भूत राजा दुर्योधन को पहले ही मार डालेगा; अत: तुम सब लोग दौड़ों, भय न करो, शीघ्र ही कुरूवंशी दुर्योधन की रक्षा करो । महाराज ! तदनन्‍तर अस्‍त्रशिक्षा में निपुण, बलवान, हितैषी और विजयशाली योद्धाओं ने (रक्षा के लिये) आपके वीर पुत्र को चारों ओर से घेर लिया; यदपि वे अभिमन्‍यु के भय से बहुत डरते थे । द्रोण, अश्‍वत्‍थामा, कृपाचार्य, कर्ण, कृतवर्मा, सुबलपुत्र शकुनि, बृहद्ल, मद्रराज शल्‍य, भूरि, भूरिश्रवा, शल, पौरव तथा वृषसेन- ये अभिमन्‍यु पर तीखे बाणों की वर्षा करने लगे । इन्‍होने महान् बाण वर्षा द्वारा अभिमन्‍यु को आच्‍छादित कर दिया । इस प्रकार उसे मोहित करके इन वीरों ने दुर्योधन को छुड़ा लिया । तब मानो मुंह से ग्रास छिन गया हो, यह मानकर अर्जुन कुमार अभिमन्‍यु इसे सहन न कर सका । अत: अपनी भारी बाण वर्षा से उन महारथियों को उनके सारथि और घोड़ों सहित युद्ध से विमुख करके सुभद्रा कुमार ने सिंह के समान गर्जना की । मांस चाहने वाले सिंह के समान अभिमन्‍यु की वह गर्जना सुनकर अत्‍यन्‍त क्रोध में भरे हुए द्रोण आदि महारथी न सह सके । आर्य ! तब उन महारथियों ने रथसेना द्वारा उसे कोष्‍ठ में आबद्ध-सा करके उसके ऊपर नाना प्रकार के चिन्‍ह वाले समूह-के-समूह बाण बरसाने आरम्‍भ किये । परंतु आपके उस वीर पौत्र ने अपने पैने बाणों द्वारा शत्रुओं के उन सायक-समूहों को आकाश में ही काट दिया और उन सभी महारथियों को घायल भी कर डाला- यह एक अदभूत सी बात हुई । तब अभिमन्‍यु से चिढ़े हुए उन योद्धाओं ने विषधर सर्प के समान भयंकर बाणों द्वारा किसी से परास्‍त न होने वाले सुभद्राकुमार को मार डालने की इच्‍छा रखकर उसे घेर लिया । भरतश्रेष्‍ठ ! उस समय जैसे सब ओरसे उछलते हुए समुद्र को तटभूमि रोक लेती है, उसी प्रकार आपके सैन्‍य सागर को एकमात्र अर्जुनकुमार ने आगे बढ़ने से रोक दिया । उस समय एक-दूसरे पर प्रहार करते हुए युद्धपरायण विपक्षी वीरों तथा अभिमन्‍यु में कोई भी युद्ध से विमुख नहीं हुआ । इस प्रकार वह भयंकर एवं घोर संग्राम चल रहा था । उसमें आपके पुत्र दु:सहन ने नौ, दु:शासन ने बारह, शरदान के पुत्र कृपाचार्य ने तीन और द्रोणाचार्य ने विषधर सर्प के समान भयंकर सतरह बाणों से अभिमन्‍यु को बींध डाला । इसी प्रकार विविंशत ने सत्‍तर, कृतवर्मा ने सात, बृहदल ने आठ, शकुनि ने दो और राजा दुर्योधन ने तीन बाणों से अभिमन्‍यु को घायल कर दिया । महाराज ! उस समय धनुष हाथ में लिये प्रतापी अभिमन्‍यु ने जैसे नाच रहा हो, इस प्रकार सब ओर घुम-घुमकर उन सब महारथियों को तीन-तीन बाणों से घायल कर दिया ।


'

« पीछे आगे »


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख