महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 45 श्लोक 1-18

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पञ्चचत्वारिंश (45) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: पञ्चचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-18 का हिन्दी अनुवाद

कर्ण का मद्र आदि बरहीक निवासियों के दोष बताना,शल्य का उत्तर देना ओर दुर्योधन का दोनों को शान्त करना

कर्ण बोला- शल्य ! पहले जो बातें बतायी गई हैं,उन्हें समझो। अब मैं पुनः तुमसे कुछ कहता हूँ। मेरी कही हुई इस बात को तुम एकाग्रचित होकर सुनो। पूर्वकाल में एक ब्राह्मण अतिथि के रूप में हमारे घर पर ठकरा था। उसने हमारे यहाँ का आचार-विचार देखकर प्रसन्नता प्रकट करते हुए यह बात कही-। मैंने अकेले ही दीर्घकाल तक हिमालय के शिखर पर निवास किया है और विभिन्न धर्मों से सम्पन्न बहुत से देश देखे हैं। इन सब देशों के लोग किसी भी निमित्त से धर्म के विरुद्ध नहीं जाते। वेदों के पारगामि विद्वानों ने जैसा बताया है,उसी रूप में वे लोग सम्पूर्ण धर्म को मानते और बतलाते हैं। महाराज ! विभिन्न धर्मों से युक्त अनेक देशों में घूमता-घामता जब मैं बाहीक देश में अस रहा था,तब वहाँ ऐसी बातें देखने और सुनने में आयीं। उस देश में एक ही बाहीक पहले ब्राह्मण होकर फिर क्षत्रिय होता है। तत्पश्चात् वैश्य और शूद्र भी बन जाता है। उसके बाद वह नाई होता है। नाई होकर फिर ब्राह्मण हो जाता है।ब्राह्म होने के पश्चात् फिर वही दास बन जाता है 1। वहाँ एक ही कुल में कुछ लोग ब्राह्मण और कुछ लोग स्वेच्छाचारी वर्णसंकर संतान उत्पन्न करने वाले होते हैं। गान्धार,मद्र और बाहीक-इन सभी देशों के लोग मन्द बुद्धि हुआ करते हैं। उस देश में मैंने इस प्रकार धर्म संकरता फैलाने वाली बातें सुनीं। सारी पृथ्वी में घूमकर केवल बाहीक देश में ही मुझे धर्म के विपरीत आचार-व्यवहार दिखायी दिया। शल्य ! ये सब बातें जान लो। अभी और कहता हूँ। एक दूसरे यात्री ने भी बाहीकों के सम्बन्ध में जो घृणित बातें बतायी थीं,उन्हें सुनो। कहते हैं,प्राचीन काल में लुटेरे डाकुओं ने आरट्ट देश से किसी सती स्त्री का अपहरण कर लिया और अधर्म पूर्वक उसके साथ समागम किया। तब उसने उन्हें यह शाप दे दिया-। मैं अभी बालिका हूँ और मेरे भाई-बन्धु मौजूद हैं तो भी तुम लोागों ने अधर्म पूर्वक मेरे साथ समागम किया है। इसलिए इस कुल की सारी स्त्रियाँ व्यभिचारिणी होंगी। पराधमों ! तुम्हें इस घोर पाप से कभी छुटकारा नहीं मिलेगा। कुरु,पांचाल,शाल्व,मत्स्य,नैमिष,कोसल,काशी,अंग,कलिंग,मगध और चेदि देशों के बड़भागी मनुष्य सनातन धर्म को जानते हैं। भिन्न-भिन्न देशों में बाहीक निवासियों को छोड़कर प्रायः सर्वत्र श्रेष्ठ पुरुष उपलब्ध होते हैं। मत्स्य से लेकर कुरु और पांचाल देश तक,नैमिषारण्य से लेकर चेदि देश तक जो लोग निवास करते हैं,वे सभी श्रेष्ठ एवं साधु पुरुष हैं और प्राचीन धर्म का आश्रय लेकर जीवन निर्वाह करते हैं। मद्र और पंचनद प्रदेशों में ऐसी बात नहीं है।वहाँ के लोग कुटिल होते हैं। राजा शल्य ! ऐसा जानकर तुम जड़ पुरुषों के समान धर्मोपदेश की ओर से मुँह मोड़कर चुपचाप बैठे रहो। तुम बाहीक देश के लोगों के राजा और रक्षक हो;अतः उनके पुण्य और पाप का भी छठा भाग ग्रहण करते हो। अथवा उनकी रक्षा न करने के कारण तुम केवल उनके पाप में ही हिस्स बँटाते हो। प्रजा की रक्षा करने वाला राजा ही उसके पुण्य का भागी होता है;तुम तो केवल पाप के ही भागी हो।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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