महाभारत शल्य पर्व अध्याय 13 श्लोक 1-23
त्रयोदश (13) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)
मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम
संजय कहते हैं- आर्य ! जब मद्रराज शल्य धर्मराज युधिष्ठिर को पीड़ा देने लगे, तब सात्यकि, भीमसेन और माद्रीपुत्र पाण्डव नकुल-सहदेव ने युद्धस्थल में शल्य को रथों द्वारा घेरकर उन्हें पीड़ा देना प्रारम्भ किया। अकेले शल्य को अनेक महारथियों द्वारा पीड़ित होते देख उनको सब ओर से महान् साधुवाद प्राप्त होने लगा। वहां एकत्र हुए सिद्ध और महर्षि भी हर्ष में भरकर बोल उठे-आश्चर्य है । भीमसेन ने रणभूमि में अपने पराक्रम के लिये कष्टरूप शल्य को पहले एक बाण से घायल करके फिर सात बाणों से बींध डाला । सात्यकि भी धर्मपुत्र युधिष्ठिर की रक्षा के लिये मद्रराज को सौ बाणों से आच्छादित करके सिंह के समान दहाड़ने लगे । नकुल और सहदेव ने पांच-पांच बाणों से शल्य को घायल करके फिर सात बाणों से उन्हें तुरन्त ही बींध डाला । माननीय नरेश ! समरांगण में शूरवीर शल्य ने उन महारथियों द्वारा पीड़ित होने पर भी विजय के लिये यत्नशील हो भार सहन करने में समर्थ और शत्रु के वेग का नाश करनेवाले एक भयंकर धनुष को खींचकर सात्यकि को पचीस, भीमसेन को सत्तर और नकुल को सात बाण मारे । तत्पश्चात् समरभूमि में एक भल्ल के द्वारा धनुर्धर सहदेव के बाण सहित धनुष को काटकर शल्य ने उन्हें इक्कीस बाणों से घायल कर दिया । तब सहदेव ने संग्राम में दूसरे धनुषपर प्रत्यंचा चढ़ाकर अपने अत्यन्त तेजस्वी मामा को विषधर सर्पों के समान भयंकर और जलती हुई आग के समान प्रज्वलित पांच बाणोद्वारा घायल कर दिया । साथ ही अत्यन्त कुपित होकर उन्होंने झुकी हुई गांठवाले बाण से उनके सारथि को भी पीट दिया और उन्हें भी पुनः तीन बाणों से घायल कर दिया । तत्पश्चात् भीमसेन ने सत्तर, सात्यकि ने नौ और धर्मराज युधिष्ठिर ने साठ बाणों से शल्य के शरीर को चोट पहुँचायी । महाराज ! उन महारथियों द्वारा अत्यन्त घायल कर दिये जाने पर राजा शल्य अपने अंगों से रक्त की धारा बहाने लगे, मानो पर्वत गेरू-मिश्रित जल का झरना बहा रहा हो। राजन् ! उन्होंने उन सभी महाधनुर्धरों को पांच-पांच बाणों से वेगपूर्वक घायल कर दिया। वह उनके द्वारा अद्भुत सा कार्य हुआ। मान्यवर ! तदनन्तर उन श्रेष्ठ महारथी शल्य ने समरांगण में एक दूसरे भल्ल के द्वारा धर्मपुत्र युधिष्ठिर के प्रत्यंचा सहित धनुष को काट डाला।। तब धर्मपुत्र युधिष्ठिर ने दूसरा धनुष हाथ में लेकर, घोडे़, सारथि, ध्वज और रथसहित शल्य को अपने बाणों से आच्छादित कर दिया । समरांगण में धर्मपुत्र के बाणों से आच्छादित होते हुए शल्य ने युधिष्ठिर को दस पैने बाणों से बींध डाला । जब धर्मपुत्र युधिष्ठिर शल्य के बाणों से पीड़ित हो गये, तब क्रोध में भरे हुए सात्यकि ने शूरवीर मद्रराज पर पांच बाणों का प्रहार किया। यह देख शल्य ने एक क्षुरप्र से सात्यकि के विशाल धनुष को काट दिया और भीमसेन आदि को भी तीन-तीन बाणों से चोट पहुंचायी । महाराज ! तब सत्यपराक्रमी सात्यकि ने कुपित हो शल्य पर सुवर्णमय दण्ड से विभूषित एक बहुमूल्य तोमर का प्रहार किया । भीमसेन ने प्रज्वलित सर्प के समान नाराच चलाया, नमुल ने संग्रामभूमि में शल्य पर शक्ति छोडी, सहदेव ने सुन्दर गदा चलायी और धर्मराज युधिष्ठिर ने रणक्षेत्र में शल्य को मार डालने की इच्छा से उन पर शतघ्नी का प्रहार किया । परंतु मद्रराज शल्य ने समरांगण में अपने शस्त्रसमूहों द्वारा उन पाॅचों वीरों के हाथों से छूटे हुए उक्त सभी अस्त्रों का शीघ्र ही निवारण कर दिया ।
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