महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 58 श्लोक 1-20

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

अष्टपञ्चाशतम (58) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: अष्टपञ्चाशतम अध्याय: श्लोक 1-20 का हिन्दी अनुवाद

अर्जुन का श्रीकृष्णं से युधिष्ठिर के पास चलने का आग्रह तथा श्रीकृष्णथ का उन्हें युद्धभूमि दिखाते और वहां का समाचार बताते हुए रथ को आगे बढ़ाना संजय कहते है- राजन्। इस प्रकार अर्जुन, कर्ण एवं पाण्डु्पुत्र भीमसेन ने कुपित होने पर राजाओं का वह संग्राम उत्तरोत्तर बढ़ने लगा। नरेश्वर। द्रोणपुत्र तथा अन्यातन्य महारथियों को हराकर और उन पर विजय पाकर अर्जुन ने भगवान् श्रीकृष्ण से इस प्रकार कहा। ‘महाबाहु श्रीकृष्ण। देखिये, वह पाण्डणवसेना भागी जा रही है तथा कर्ण कमरागण में बड़े-बड़े महारथियों को काल के गाल में भेज रहा है। ‘दशार्ह। इस समय मुझे धर्मराज युधिष्ठिर नहीं दिखायी दे रहे है। योद्धाओं में श्रेष्ठ श्रीकृष्ण । धर्मराज के ध्व्ज का भी दर्शन नहीं हो रहा है। ‘जनार्दन। इस सम्पू्र्ण दिन के ये तीन भाग ही शेष रह गये हैं। दुर्योधन की सेनाओं में से कोई भी मेरे साथ युद्ध नहीं कर रहा है।
‘अत: आप मेरा प्रिय करने के लिये वहीं चलिये, जहां राजा युधिष्ठिर हैं। वार्ष्णेय। भाइयों सहित धर्मपुत्र यधिष्ठिर को युद्ध में सकुशल देखकर मैं पुन: समरागण में शत्रुओं के साथ युद्ध करुंगा’। तदनन्तमर अर्जुन ने कथनानुसार श्रीकृष्ण तुरंत ही रथ के द्वारा उसी ओर चल दिये, जहां राजा युधिष्ठिर और सृंजय महारथी मौजूद थे। वे मृत्युद को ही युद्ध से निवृत होने का निमित्त बनाकर आपके योद्धाओं के साथ युद्ध कर रहे थे। तदनन्तदर जहां वह भारी जनसंहार हो रहा था, उस संग्रामभूमि को देखते हुए भगवान् श्रीकृष्ण सव्य्साची अर्जुन ने इस प्रकार बोले। ‘कुन्तीेनन्द न। देखो, दुर्योधन के कारण भरतवंशियों का तथा भूमण्डसल के अन्य क्षत्रियों का महाभयंकर विनाश हो रहा है । ‘भरतनन्दृन। देखो, मरे हुए धनुर्धरों के ये सोने के पृष्ठ भाग वाले धनुष और बहुमूल्य तरकस फेंके पड़े हैं। ‘सुवर्णमय पंखों से युक्त झुकी हुई गांठवाले बाण तथा तेल में धोये हुए नाराच केंचुल छोड़कर निकले हुए सर्पों के समान दिखायी दे रहे हैं । ‘भारत। हाथी दांत की बनी हुई मूंठवाले सुवर्ण जटित खंड तथा स्वनर्णभूषित कवच भी फेंके पड़े हैं। ‘देखो, ये सुवर्णमय प्रास, स्वर्ण-भूषित शक्तियां तथा सोने के बने हुए पत्रों से मढ़ी हुई विशाल गदाएं पड़ी हैं। ‘स्वरर्णमयी ऋषि, हेमभूषित पट्टिश तथा सुवर्णजटित दण्डों से युक्त फर से फेंके हुए हैं। ‘लोहे के कुन्त (भाले), भारी मुसल, विचित्र शतघ्रियां और विशाल परिघ इधर-उधर पड़े हैं। ‘इस महासमर में फेंके गये इन चक्रों और तोमरों को भी देखो। विजय की अभिलाषा रखने वाले वेगशाली योद्धा नाना प्रकार के शस्त्रों को हाथ में लिये हुए ही अपने प्राण खो बैठे हैं; तथापि जीवित से दिखायी देते हैं । ‘देखो, सहस्त्रों के शरीर गदाओं के आघात से चूर-चूर हो रहे हैं। मुसलों की मार से उनके मस्तोक फट गये हैं तथा हाथी, घोड़े एवं रथों से वे कुचल दिये गये हैं। ‘शत्रुसूदन। बाण, शक्ति, ऋष्टि, पदिृश, लोहमय परि,भयंकर लोह निर्मित कुन्तो और फरसों से मनुष्यों।, घोड़ों और हाथियों के बहु-संख्याक शरीर छिन्न-भिन्न होकर खून से लथपथ और प्राणशून्यं हो गये हैं और उनके द्वारा रणभूमि आच्छा, दित दिखायी देती हैं ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख