महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 38 श्लोक 1-24

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अष्‍टात्रिंश (38) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: अष्‍टात्रिंश अध्याय: श्लोक 1-24 का हिन्दी अनुवाद

अभिमन्‍यु के द्वारा शल्‍य के भाई का वध तथा द्रोणाचार्य की रथ सेना का पलायन

धृतराष्‍ट्र ने पूछा – संजय ! अर्जुनकुमार अभिमन्‍यु जब इस प्रकार अपने बाणों द्वारा बड़े-बड़े धनुर्धरों को मथ रहा था, उस समय मेरे पक्ष के किन योद्धाओं में रोका था ?

संजय ने कहा – राजन् ! रणक्षेत्र में कुमार अभिमन्‍यु की विशाल रणक्रीड़ा का वर्णन सुनिये । वह द्रोणाचार्य द्वारा सुरक्षित रथियों की सेना को विदीर्ण करना चाहता था । सुभद्राकुमार ने रणभूमि में अपनेशीघ्रगामी बाणों द्वारा घायल करके मद्रराज शल्‍य को धराशायी कर दिया, यह देखकर उनका छोटा भाई कुपित हो बाणों की वर्षा करता हुआ अभिमन्‍यु पर चढ़ आया । उसने दस बाणों द्वारा घोड़े और सारथि सहित अभिमन्‍यु को क्षत-विक्षत करके बड़े जोर से गर्जना की और कहा- अरे ! खड़ा रह, खड़ा रह । तब शीघ्रतापूर्वक हाथ चलाने वाले अर्जुन कुमार ने अपने सायकों द्वारा शल्‍य के भाई के मस्‍तक, ग्रीवा, हाथ, पैर, धनष, अश्‍व, छत्र, ध्‍वज, सारथि, त्रिवेणु, तल्‍प (शय्या), पहिये, जूआ, तरकस, अनुकर्ष, पताका, चक्ररक्षक तथा अन्‍य समस्‍त उपकरणों को काट डाला । उस समय कोई भी उसे देख न सका । जैसे वायु के वेग से कोई महान् पर्वत टूटकर गिर पड़े, उसी प्रकार अमिततेजस्‍वी अभिमन्‍यु का मारा हुआ वह शल्‍यराज का भाई छिन्‍न-भिन्‍न होकर पृथ्‍वीपर गिर पड़ा । उसके वस्‍त्र और आभूषणों के टुकड़े-टुकड़े हो गये थे । उसके सेवक भयभीत होकर सम्‍पूर्ण दिशाओं में भाग गये । भारत ! अर्जुनकुमार के उस अदभूत पराक्रम को देखकर समस्‍त प्राणी साधुवाद देते हुए सब ओर हर्षध्‍वनि करने लगे । शल्‍य के भाई के मारे जानेपर उसके बहुत-से सैनिक अपने कुल और निवास स्‍थान के नाम सुनाते हुए कुपितहो हाथों में नाना प्रकार के अस्‍त्र-शस्‍त्र लिये अर्जुनकुमार अभिमन्‍यु की ओर दौड़े । कितने ही वीर रथ, घोड़े और हाथीपर सवार होकर आये । दूसरे बहुत-से प्रचण्‍ड बलशाली योद्धा पैदल ही दौड़ पड़े । बाणों की सनसनाहट, रथ के पहियोंकी जोर-जोर से होने वाली घर्घराहट, हुकार कोलाहल, ललकार, सिंहनाद, गर्जना, धनुष की टकार तथा हस्‍तत्राण के चट-चट शब्‍द के साथ गर्जन-तर्जन करते हुए अन्‍यान्‍य बहुत से योद्धा अर्जुनकुमार अभिमन्‍यु पर यह कहते हुए टूट पड़े, अब तू हमारे हाथ से जीवित नही छूट सकता । तुझे जीवन से ही हाथ धोना पड़ेगा । उनको ऐसा कहते देख सुभद्राकुमार अभिमन्‍यु मानो जोर-जोर से हंसने लगा और जिस-जिस योद्धा ने उसपर पहले प्रहार किया, उस-उसको उसने भी अपने पंखयुक्‍त बाणों द्वारा घायल कर दिया । शूरवीर अर्जुनकुमार ने समरागण में अपने विचित्र एवं शीघ्रगामी अस्‍त्रों का प्रदर्शन करते हुए पहले मृदुभाव से ही युद्ध किया । भगवान श्रीकृष्‍ण तथा अर्जुन से अभिमन्‍यु ने जो-जो अस्‍त्र प्राप्‍त किये थे, उनका उन्‍ही दोनो की भॉति वह युद्धस्‍थल में प्रदर्शन करने लगा । भारी भार और भय उससे दूर हो गया था । वह बारबांर बाणों का संधान करता और छोड़ता हुआ एक सा दिखायी देता था । जैसे शरद् ऋतु में अत्‍यन्‍त प्रकाशित होने वाले सूर्यदेव का मण्‍डल दृष्टिगोचर होता है, उसी प्रकार अभिमन्‍यु का मण्‍डलाकार धनुष ही सम्‍पूर्ण दिशाओं में उद्रासित होता दिखायी देता था । उसके धनुष की प्रत्‍यचा और हथेली का शब्‍द वर्षोकाल में महान् वज्र गिराने वाले मेघ की गर्जना के समान भयंकर सुनायी पड़ता था । लज्‍जाशील, अमर्षी, दूसरों को मान देने वाला और देखने में प्रिय लगने वाला सुभद्राकुमार अभिमन्‍यु विपक्षी वीरों का सम्‍मान करने की इच्‍छा से धनुष बाणों द्वारा युद्ध करता रहा ।महाराज ! जैसे वर्षा काल बीतने पर शरत्‍काल में भगवान सूर्य प्रचण्‍ड हो उठते हैं, उसी प्रकार अभिमन्‍यु पहले मृदु होकर अन्‍त में शत्रुओं के लिये अति उग्र हो उठा । जैसे सूर्य अपनी सहस्‍त्रों किरणों को सब ओर बिखेर देते हैं, उसी प्रकार क्रोध में भरा हुआ अभिमन्‍यु सानपर चढ़ाकर तेज किये हुए सुवर्णमय पंख से युक्‍त सैकड़ों विचित्र एवं बहु-संख्‍यक बाणोंकी वर्षा करने लगा । उस महायशस्‍वी वीरने द्रोणाचार्य के देखते-देखते उनकी रथ सेना पर क्षुरप्र, वत्‍सदन्‍त, विपाठ, नाराच, अर्धचन्‍द्राकार बाण, भल्‍ल एवं अजलिक आदि की वर्षा आरम्‍भ कर दी । इससे उन बाणों द्वारा पीडित हुई वह सेना युद्ध से विमुख होकर भाग चली ।

इस प्रकार श्रीमहाभारतद्रोणपर्व के अन्‍तर्गत अभिमन्‍युवध पर्व में अभिमन्‍यु पराक्रम विषयक अड़तीसवॉ अध्‍याय पूरा हुआ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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