महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 3 श्लोक 1-21
तृतीय (3) अध्याय: कर्ण पर्व
आपकी अनेक सेनाएँ भी दुःख से संत्रस्त हो ऊपर की ओर ही दृष्टिपात करने लगीं। राजेन्द्र ! युद्ध में द्रोणाचार्य को मारा गया देख खून से रँगे हुए सैनिकों के शस्त्र हाथों से छूटकर गिर पड़े। भरतवंशी महाराज ! कमर आदि में बँधकर छटकते हुए वे अस्त्र शस्त्र आकाश से टूटते हुए नक्षत्रों के समान दिखायी दे रहे थे। नरेश्वर ! इस प्रकार आपकी सेना को प्राण हीन सी निश्चल खड़ी देख राजा दुर्योधन ने कहा - ‘वीरों ! आप लोगों के बाहुबल का भरोसा करके मैंने युद्ध के लिये पाण्डवों को ललकारा है और यह युद्ध आरम्भ किया है। परंतु द्रोणाचार्य के मारे जाने पर यह सेना विषाद में डूबी हुई सी दिखायी देती है। समर भूमि में युद्ध करने वाले प्रायः सभी योद्धा शत्रुओं के हाथों मारे जाते हैं। रण भूमि में जूझने वाले वीरों को कभी विजय भी प्राप्त होती है और कभी उसका वध भी हो जाता है। इसमें आश्चर्य की कौन सी बात है ? अतः आ लोग सब ओर मुँह करके उत्साह पूर्वक युद्ध करें। ‘देखिये, महामना, महाधनुर्धर और महाबली वैकर्तन कर्ण अपने दिव्यास्त्रों के साथ किस प्रकार युद्ध में विचर रहा है ? ‘जिसके भय से वह कुन्ती का मूर्ख पुत्र अर्जुन सदा उसी प्रकार मुँह मोड़ लेता है, जैसे सिंह के सामने से क्षुद्र मृग भाग जाता है। ‘जिसने दस हजार हाथियों के समान बल वाले महाबली भीमसेन को मानव युद्ध के द्वारा ही वैसी दुरवस्था में डाल दिया था।
‘जिसने रण भूमि में भयंकर गर्जना करने वाले दिव्यास्त्रवेत्ता, शूरवीर मायावी घटोत्कच को अपनी अमोघ शक्ति से मार डाला था। ‘जिसके पराक्रम को रोकना अत्यन्त कठिन है, उस सत्य प्रतिज्ञ बुद्धिमान् कर्ण के अक्षय बाहुबल को आज आप लोग समरांगण में देखेंगे। ‘आज पाण्डव भगवान् विष्णु और इन्द्र के समान शक्तिशाली द्रोण पुत्र तथा राधा पुत्र दोनों के पराक्रम को देखें। ‘आप सभी योद्धाओं में से प्रत्येक वीर रण भूमि में सेना सहित पाण्डवों को मार डालने की शक्ति रखता है। फिर जब आ लोग संगठित होकर युद्ध करें तो क्या नहीं कर सकते हैं ? आप पराक्रमी और अस्त्र विद्या के विद्वान् हैं; अतः आज ऐ दूसरे को आपना अपना पुरुषार्थ दिखायें।
संजय कहते हैं - निष्पाप नरेश ! ऐसा कहकर आपके महा पराक्रमी पुत्र दुर्योधन ने अपने भाइयों के साथ मिलकर कर्ण को सेनापति बनाया। राजन् ! सेनापति का पद पाकर महारथी कर्ण उच्च स्वर से सिंहनाद करके रणोन्मत्त होकर युद्ध करने लगा। मान्यवर ! उसने समसत सृंजयों, पान्चालों, केकयों और विदेहों का महान् संहार किया। उसके धनुष से सैंकड़ों बाण धाराएँ, जो अग्रभाग और पुच्छ भाग में परस्पर सटी हुई थीं, भ्रमर पंक्तियों के समान प्रकट होने लगीं। यह पान्चालों और वेगशाली पाण्डवों को पीडि़त करके सहस्त्रों योद्धाओं को मारकर अन्त में अर्जुन के हाथों से मारा गया।
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