महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 22 श्लोक 1-21
द्वाविंश (22) अध्याय: कर्ण पर्व
पाण्डव सेना पर भयानक गज-सेना का आक्रमण,पाण्डवों द्वारा पुण्ड्र की पराजय तथा बंगराज और अंगराज का वध,गजसेना का विनाश और पलायन
संजय कहते हैं-राजन् ! आपके पुत्र दुर्योधन की आज्ञा पाकर बहुत से महावत धृष्टद्युम्न को मार डालने की इच्छा से क्रोध पूर्वक हाथियों के साथ आकर उनपर टूट पड़े। भारत ! पूर्व और दक्षिण दिशा के श्रेष्ठ गजयोद्धा तथा अंग,बंग,पुण्ड्र,मगध,ताम्रलिप्त,मेकल,कोसल,मद्र,दशार्ण तथा निषध देशों के समस्त गजयुद्ध निपुण वीर कलिंगों में पांचाल-सेना पर बाण,तोमर और नाराचों की वृष्टि करने लगे। वे नाग शत्रुओं की सारी सेना को कुचल डालने की इच्छा रखते थे और उन्हें पैरों की एड़ी,अंगूठों तथा अंकुशों की मार से बारंबार आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया जा रहा था। यह देखकर द्रुपद कुमार धृष्टद्युम्न ने उन पर नाराच नामक बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। भरतनन्दन ! धृष्टद्युम्न ने दस पर्वताकार हाथियों में से प्रत्येक को अपने चलाये हुए दस-दस,छह-छह और आठ-आठ बाणों से घायल कर दिया। उस समय मेघों की घटा से ढके हुए सूर्य के समान धृष्टद्युम्न को उन हाथियों से आच्छादित हुआ देख पाण्डव और पांचाल सैनिक तीखे आयुध लिये गर्जना करते हुए आगे बढ़े। वे प्रत्यंचा रूपी वीणा के तार को झंकारते,शूरवीरों के दिये हुए उन हाथियों पर बाणों की वर्षा कर रहे थे । नकुल,सहदेव,द्रौपदी के पाँचों पुत्र,प्रभद्रकगण,सत्यकि,शिखण्डी तथा पराक्रमी चेकितान-ये सभी वीर चारों ओर से उन हाथियों पर उसी प्रकार बाणों की वृष्टि करने लगे,जैसे बादल पर्वतों पर पानी बरसाते हैं। म्लेच्छों द्वारा आगे बढ़ाये हुए वे अत्यन्त क्रोधी गतराज मनुष्यों,घोड़ों और रथों को अपनी सूँड़ों से उठाकर फेंक देते और उन्हें पैरों से मसल डालते थे। कितनों को अपने दाँतों के अग्रभाग से विदीर्ण कर देते और बहुतों को सूँड़ों से खींचकर दूर फेंक देते थे । कितने ही याद्धा उनके दाँतों में गुँथकर बड़ी भयानक अवस्था में नीचे गिरते थे। इसी समय सत्यकि ने अपने सामने उपस्थित हुए वंगराज के हाथी के मर्मस्थलों को भयंकर वेग वाले नाराच से विदीर्ण करके उसे धराशायी कर दिया। वंगराज अपने शरीर को सिकोड़कर उस हाथी से कूदना ही चाहता था कि सत्यकि ने नाराच द्वारा उसकी छाती छेद डाली;अतः वह घायल होकर भूतल पर गिर पड़ा। दूसरी ओर पुण्ड्रराज आक्रमण कर रहे थे । उनका हाथी चलते-फिरते पर्वत के समान जान पड़ता था । सहदेव ने पयत्न पूर्वक चलाये हुए तीन नाराचों द्वारा उसे घायल की दिया। इस प्रकार उस हाथी को पताका,महावत,कवच,ध्वज तथा प्राणों से हीन करके सहदेव पुनः अंगराज की ओर बढ़े। परंतु नकुल ने सहदेव को रोककर स्वयं ही अंगराज को घायल कर दिया। अंगराज ने नकुल पर सूर्य किरणों के समान तेजस्वी आठ तोमर चलाये;परंतु नकुल ने उनमें से प्रत्येक के तीन-तीन टुकड़े कर डाले। तत्पश्चात् पाण्डुकुमार नकुल ने एक अर्धचन्द्र के द्वारा अंगराज का सिर काट लिया । इस प्रकार मारा गया म्लेच्छ जातीय अंगराज अपने हाथी के साथ ही पृथ्वी पर गिर पड़ा। गजशिक्षा में कुशल अंगराज के पुत्र के मारे जाने पर कुपित अंगदेशीय महावतों ने हाथियों द्वारा नकुल पर आक्रमण किया। उन हाथियों पर पताकाएँ फहरा रहीं थीं । उनके मुख बहुत सुन्दर थे । उनको कसने के लिए बनी हुई रस्सी और कवच सुवर्णमय थे । वे प्रज्वलित पर्वतों के समान जान पड़ते थे । उन हाथियों के द्वारा नकुल को कुचलवा देने की इच्छा रखकर मेकल,उत्कल ख् कलिंग,निषद तथा ताम्रलिप्त देशीय योद्धा बड़ी उतावली के साथ बाणों और तोमरों की वर्षा कर रहे थे । वे सब-के-सब उन्हें मार डालने को उतारू थे।
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