महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 46 श्लोक 1-27
षट्चत्वारिश (46) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)
अभिमन्यु के द्वारा लक्ष्मण तथा क्राथपुत्र का वध और सेनासहित छ: महारथियों का पलायन
धृतराष्ट्र बोले – सूत ! जैसा कि तुम बता रहे हो, अकेले महामना अभिमन्यु का बहुत से योद्धाओं के साथ अत्यन्त भयंकर संग्राम हुआ और उसमें विजय भी उसी की हुई– सुभद्राकुमार का यह पराक्रम आश्चर्यजनक है । उस पर सहसा विश्वास नही होता; परंतु जिन लोगों का धर्म ही आश्रय है, उनके लिये यह कोई अत्यन्त अदभूत बात नहीं है ।संजय ! जब दुर्योधन भाग गया और सैकड़ों राजकुमार मारे गये, उस समय मेरे पुत्रों ने सुभद्राकुमार का सामना करने के लिये क्या उपाय किया ? । संजय ने कहा–महाराज ! आपके सभी सैनिकों के मुंह सूख गये थे, ऑखे भय से चंचल हो रही थी, सारे अंग पसीने-पसीने हो रहे थे और रोंगटे खड़े हो गये थे। वे भागने में ही उत्साह दिखा रहे थे । शत्रुओं को जीतने का उत्साह उनके मन में तनिक भी नहीं था । वे युद्ध में मारे गये भाइयों, पितरों, पुत्रों, ०, सम्बन्धियों तथा बन्धु-बान्धवों को छोड़ छोड़कर अपने घोड़े और हाथियों को उतावली के साथ हांकते हुए भाग रहे थे । राजन् ! उन सबको भागते देख द्रोणाचार्य, अश्वत्थामा, बृहदल, कृपाचार्य, दुर्योधन, कर्ण, कृतवर्मा और शकुनि ये सब अत्यन्त क्रोध में भरकर अपराजित वीर अभिमन्यु पर टूट पडे; परंतु आपके उस पौत्र अभिमन्यु ने उन सबको प्राय: युद्ध से भगा दिया । उस समय सुख में पला हुआ, धनुर्वेद का ज्ञाता, एकमात्र महातेजस्वी लक्ष्मण अपने बालस्वभाव तथा अभिमानके कारण निर्भय हो अभिमन्यु के सामने आ गया । पुत्र की रक्षा चाहनेवाला पिता दुर्योधन भी उसी के साथ-साथ लौट पड़ा । फिर दुर्योधन के पीछे दूसरे महारथी लौट आये । जैसे बादल किसी पर्वत को अपने जल की धाराओं से सींचते हैं, उसी प्रकार वे महारथी अभिमन्यु पर बाणों की वर्षा करने लगे । जैसे चारों ओर से बहनेवाली हवा (चौवाई) बादलों को उड़ा देती है, उसी प्रकार अकेले अभिमन्यु ने उन सबको मथ डाला । राजन् ! आपका प्रियदर्शन पौत्र लक्ष्मण बड़ा दुर्धर्ष वीर था । वह धनुष उठाये अपने पिता के ही पास खड़ा था । अत्यन्त सुख में पला हुआ वह वीर कुबेर के पुत्र के समान जान पड़ता था । जैसे मतवाला हाथी किसी मदोन्मक्त गजराज से भिड़ जाय, उसी प्रकार अर्जुनकुमार ने लक्ष्मण पर आक्रमण किया । लक्ष्मण से भिड़ने पर उसके द्वारा शत्रुवीरों का संहार करने वाले सुभद्राकुमार की भुजाओं और छाती में अत्यन्त तीखे बाणों द्वारा प्रहार किया । महाराज ! उस प्रहार से लाठी की चोट खाये हुए सर्पके समान अत्यन्त क्रोध में भरे हुए आपके पौत्र अभिमन्यु ने आपके दूसरे पौत्र लक्ष्मण से कहा । लक्ष्मण ! हस संसार को अच्छी तरह देख लो । अब शीघ्र ही परलोक की यात्रा करोगे । इन बान्धव-जनों के देखते-देखते मैं तुम्हें यमलोक पहॅुचाये देता हूं । ऐसा कहकर शत्रुवीरों का संहार करने वाले महाबाहु सुभद्राकुमार केचुल से निकले हुए सर्पके समान एक भल्ल को तरकस से निकाला । अभिमन्यु के हाथों से छूटे हुए उस भल्ल ने लक्ष्मण के देखने में सुन्दर, सुघड़ नासिका, मनोहर भौंह, सुन्दर के शान्तभाग और रुचिर कुण्डलों से युक्त मस्तक को धड़ से अलग कर दिया । लक्ष्मण को मारा गया देख सब लोग जोर-जोर से हाहाकार करने लगे । अपने प्यारे पुत्रके मारे जाने पर क्षत्रिय शिरोमणि दुर्योधन कुपित हो उठा और समस्त क्षत्रियों से बोला – अहो ! इस अभिमन्यु को मार डालो । तब द्रोणाचार्य, कृपाचार्य, कर्ण,अश्वत्थामा, बृहदल और ह्रदिकपुत्र कृतवर्मा – इन छ: महारथियों ने अभिमन्यु को घेर लिया । यह देख अर्जुनकुमार ने अपने पैने बाणों द्वारा उन सबको घायल करके भगा दिया और क्रोध में भरकर बड़े वेग से जयद्रथ की विशाल सेनापर धावा किया । उस समय कलिग देशीय सैनिक, निषादगण तथा पराक्रमी क्राथपुत्र – इन सबने कवच धारण करके गजसेना के द्वारा अभिमन्यु का रास्ता रोक दिया । प्रजानाथ ! तब वहां अत्यन्त निकट से घोर युद्ध आरम्भ हो गया । अर्जुनकुमार ने पैने बाणों द्वारा उस धृष्ट गजसेना को उसी प्रकार नष्ट कर दिया, जैसे सदागति वायु आकाश में सैकड़ों मेघखण्डों को छिन्न-भिन्न कर देती है । तदनन्तर क्राथ ने अर्जुनकुमार अभिमन्यु पर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी । इतने ही में द्रोण आदि दूसरे महारथी भी पुन: लौट आये । उन सबने अपने उत्तम अस्त्रों का प्रयोग करते हुए सुभद्राकुमार पर आक्रमण किया । अभिमन्यु न अपने बाणों द्वारा उन सबका निवारण करके क्राथपुत्र को अधिक पीड़ा दी । फिर उसने असंख्य बाण समूहों द्वारा क्राथपुत्र को मार डालने की इच्छा से जल्दी करते हुए उसकी धनुष बाणों और केयूर सहित दोनों भुजाओं, मुकुट मण्डित मस्तक, छत्र, ध्वज और सारथि सहित रथ तथा घोड़ों को भी मार गिराया । कुल, शील, शास्त्रज्ञान, बल, कीर्ति, तथा अस्त्र-बल से सम्पन्न उस वीर क्राथपुत्र के मारे जानेपर आपकी सेनाके प्राय: सभी शूरवीर सैनिक युद्ध छोड़कर भाग गये ।
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