महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 75 श्लोक 1-15
पंचसप्ततितम (75) अध्याय: द्रोण पर्व ( प्रतिज्ञा पर्व )
श्रीकृष्ण का अर्जुन को कौरवों के जयद्रथ की रक्षा विषयक उद्योग समाचार बताना संजय कहते हैं – राजन ! जब अर्जुन ने सिंधुराज जयद्रथ के वध की प्रतिज्ञा कर ली, उस समय महाबाहु भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन से कहा - । ‘धनंजय ! तुमने अपने भाइयों का मत जाने बिना ही जो वाणी द्वारा यह प्रतिज्ञा कर ली कि मैं सिंधुराज जयद्रथ को मार डालूँगा, यह तुमने दु:साहसपूर्ण कार्य किया है । ‘मेरे साथ सलाह किये बिना ही तुमने यह बडा भारी भार उठा लिया । ऐसी दशा में हम सम्पूर्ण लोकों के उपहास पात्र कैसे नहीं बनेंगे ? । ‘मैंने दुर्योधन शिविर में अपने गुप्तचर भेजे थे । वे शीघ्र ही वहां से लौटकर अभी-अभी वहां का समाचार मुझे बता गये हैं । ‘शक्तिशाली अर्जुन ! जब तुमने सिंधुराज के वध की प्रतिज्ञा की थी, उस समय यहां रणवाद्यों के साथ-साथ महानसिंहनाद किया गया था जिसे कौरवों ने सुना था । ‘उस शब्द से जयद्रथ सहित धृतराष्ट्र पुत्र संत्रस्त हो उठे । वे यह सोचकर कि यह सिंहनाद अकारण नहीं हुआ है, सावधान हो गये।‘महाबाहो ! फिर तो कौरवों के दल में भी बडे जोर का कोलाहल मच गया । हाथी, घोडे, पैदल तथा रथ-सेनाओं का भयंकर घोष सब ओर गूँजने लगा ।‘वे यह समझकर युद्ध के लिये उद्यत हो गये कि अभिमन्यु के वध का वृत्तान्त सुनकर अर्जुन को अवश्य ही महान् कष्ट हुआ होगा, अत: वे क्रोध करके रात में ही युद्ध के लिये निकल पडेंगे ।‘कमलनयन ! युद्ध के लिये तैयार होते-होते उन कौरवों ने सदा सत्य बोलने वाले तुम्हारी जयद्रथ-वध विषयक वह सच्ची प्रतिज्ञा सुनी ।‘फिर तो दुर्योधन के मंत्री और स्वयं राजा जयद्रथ – ये सब के सब (सिंह से डरे हुए) क्षुद्र मृगों के समान भयभीत और उदास हो गये।‘तदनन्तर सिंधुसौवीर देश का स्वामी जयद्रथ अत्यन्त दुखी और दीन हो मंत्रियों सहित उठकर अपने शिविर में आया।‘उसने मंत्रणा के समय अपने लिये श्रेयस्कर सिद्ध होने वाले समस्त कार्यों के सम्बन्ध में मंत्रियों से परामर्श करके राजसभा में आकर दुर्योधन से इस प्रकार कहा - ।‘राजन! मुझे अपने पुत्र का घातक समझकर अर्जुन कल सबेरे मुझपर आक्रमण करने वाला है, क्योंकि उसने अपनी सेना के बीच में मेरे वध की प्रतिज्ञा की है ।‘सर्वव्यापी अर्जुन की उस प्रतिज्ञा को देवता, गन्धर्व, असुर, नाग और राक्षस भी अन्यथा नहीं कर सकते ।‘अत: आप लोग संग्राम में मेरी रक्षा करें । कहीं ऐसा न हो कि अर्जुन आप लोगों के सिर पर पैर रखकर अपने लक्ष्य तक पहुंच जाय, अत: इसके लिये आप आवश्यक व्यवस्था करें।
« पीछे | आगे » |