महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 41 श्लोक 1-26

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

एकचत्‍वारिंश (41) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: एकचत्‍वारिंश अध्याय: श्लोक 1-26 का हिन्दी अनुवाद

अभिमन्‍यु के द्वारा कर्ण के भाई का वध तथा कौरव सेना का संहार और पलायन

संजय कहते है – राजन् ! कर्ण का वह भाई हाथ में धनुष ले अत्‍यन्‍त गरजता और प्रत्‍यचाओं को बार-बार खींचता हुआ तुरंत ही उन दोनो महामनस्‍वी वीरों के रथों के बीच में आ पहॅुचा । उसने मुस्‍कराते हुए से दस बाण मारकर दुर्जय वीर अभिमन्‍यु को छत्र, ध्‍वजा, सारथि और घोड़ों सहित शीघ्र ही घायल कर दिया । अपने पिता-पितामहों के अनुसार मानवीय शक्ति से बढ़कर पराक्रम प्रकट करने वाले अर्जुनकुमार अभिमन्‍यु को उस समय बाणों से पीडित देखकर आपके सैनिक हर्ष से खिल उठे । तब अभिमन्‍यु ने मुस्‍कराते हुए से अपने धनुष को खींचकर एक ही बाण से कर्ण के भाई का मस्‍तक धड़ से अलग कर दिया । उसका वह सिर रथ से नीचे पृथ्‍वीपर गिर पडा, मानो वायु के वेग से हिलकर उखड़ा हुआ कनेर का वृक्ष पर्वत शिखर से नीचे गिर गया हो । राजन् ! अपने भाई को मारा गया देख कर्ण को बड़ी व्‍यथा हुई । इधर सुभद्राकुमार अभिमन्‍यु ने गीध की पॉखवाले बाणों द्वारा कर्ण को युद्ध से भगाकर दूसरे-दूसरे महाधनुर्धर वीरों पर तुरंत ही धावा किया । उस समय क्रोध में भरे हुए प्रचण्‍ड तेजस्‍वी महारथी अभिमन्‍यु ने हाथी, घोड़े, रथ और पैदलों से युक्‍त उस विशाल चमुरगिणी सेना को विदीर्ण कर डाला । अभिमन्‍यु के चलाये हुए बहुसंख्‍यक बाणों से पीडित हुआ कर्ण अपने वेगशाली घोड़ों की सहायता से शीघ्र ही रणभूमि से भाग गया । इससे सारी सेना में भगदड़ मच गयी । राजन् ! उस दिन अभिमन्‍यु के बाणों से सारा आकाश मण्‍डल इस प्रकार आच्‍छादित हो गया था, मानो टिडडी दलों से अथवा वर्षा की धाराओं से व्‍याप्‍त हो गया हो । उस आकाश मे कुछ भी सूझता नहीं था । महाराज ! पैने बाणों द्वारा मारे जाते हुए आपके योद्धाओं में से सिंधुराज जयद्रथ को छोड़कर दूसरा कोई वहां ठहर न सका । भरतश्रेष्‍ठ ! तब पुरुषप्रवर सुभद्राकुमार अभिमन्‍यु ने शख बजाकर पुन: शीघ्रही भारतीय सेनापर धावा किया । सूखे जंगल में छोड़ी हुई आग के समान वेग से शत्रुओं को दग्‍ध करता हुआ अभिमन्‍यु कौरव सेना के बीच में विचरने लगा । उस सेनामें प्रवेश करके उसने अपने तीखे बाणों द्वारा रथों, हाथियों, घोड़ों और पैदल मनुष्‍यों को पीडित करते हुए सारी रणभूमि को बिना मस्‍तक के शरीरों से पाट दिया । सुभद्राकुमार के धनुष से छुटे हुए उत्‍तम बाणों से क्षत-विक्षत हो आपके सैनिक अपने जीवन की रक्षा के लिये सामने आये हुए अपने ही पक्ष के योद्धाओं को मारते हुए भाग चले । अभिमन्‍यु के वे भयंकर कर्म करने वाले, घोर, तीक्ष्‍ण और बहुसंख्‍यक विपाठ नामक बाण आपके रथों, हाथियों और घोड़ों को नष्‍ट करते हुए शीघ्रही धरती मं समा जाते थे । उस युद्ध में आयुध, दस्‍ताने, गदा और बाजूबंद सहित वीरों की सुवर्णभूषण भूषित भुजाऍ कटकर गिरी दिखायी देती थीं । उस युद्धभूमि में धनुष, बाण, खग, शरीर तथा हार और कुण्‍डलों से विभूषित मस्‍तक सहस्‍त्रों की संख्‍या में छिन्‍न-भिन्‍न होकर पड़े थे । आवश्‍यक सामग्री,बैठक,ईषादण्‍ड, बन्‍धुर, अक्ष, पहिए और जूए चूर-चूर और टुकड़े-टुकड़े होकर गिरे थे । शक्ति, धनुष, खग, गिरे हुए विशाल ध्‍वज, ढाल और बाण भी छिन्‍न-भिन्‍न होकर सब ओर बिखरे पड़े थे । प्रजानाथ ! बहुत से क्षत्रिय, घोड़े और हाथी भी मारे गये थे । इन सबके कारण वहां की भूमि क्षणभर में अत्‍यन्‍त्‍ भयंकर और अगम्‍य हो गयी थी । बाणों की चोट खाकर परस्‍पर क्रन्‍दन करते हुए राजकुमारों महान् शब्‍द सुनायी पड़ता था, जो कायरो का भय बढ़ानेवाला था । भरतक्षेष्‍ठ ! वह शब्‍द सम्‍पूर्ण दिशाओ को प्रतिध्‍वनित कर रहा था । सुभद्राकुमार श्रेष्‍ठ घोड़ों, रथों और हाथियों का संहार करता हुआ कौरव सेना पर टूट पड़ा था । सूखे जंगलो मे छोड़ी हुई आग की भॉति अर्जुनकुमार अभिमन्‍यु वेग से शत्रुओं को दग्‍ध करता हुआ कौरव सेना के बीच मे दृष्टिगोचर हो रहा था । भारत ! धूल से आच्‍छादित हुई सेना के भीतर सम्‍पूर्ण दिशाओं और विदिशाओं में विचरते हुए अभिमन्‍यु को उस समय हमलोग देख नहीं पाते थे। भरतनन्‍दन ! हाथियों, घोड़ों और पैदल सैनिकों की आयु को छीनते हुए अभिमन्‍यु को हमने क्षणभर में दोपहर के सूर्य की भॉति शत्रुसेना को पुन: तपाते देखा था । महाराज ! इन्‍द्रकुमार अर्जुन का वह पुत्र युद्ध में इन्‍द्र के समान पराक्रमी जान पड़ता था । जैसे पूर्वकाल में पराक्रमी कुमार कार्तिकेय असुरों की सेना में उसका संहार करते हुए सुशोभित होते थे, उसी प्रकार अभिमन्‍यु कौरव सेना में विचरता हुआ शोभा पा रहा था |

इस प्रकार श्रीमहाभारतद्रोणपर्व के अन्‍तर्गत अभिमन्‍युवध पर्व में अभिमन्‍यु का पराक्रम विषयक इकतालीसवॉ अध्‍याय पूरा हुआ ।


'

« पीछे आगे »


टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख