महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 39 श्लोक 1-19

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एकोनचत्‍वारिंश (39) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: एकोनचत्‍वारिंश अध्याय: श्लोक 1-19 का हिन्दी अनुवाद

द्रोणाचार्य के द्वारा अभिमन्‍यु के पराक्रम की प्रंशसा तथा दुर्योधन के आदेश से दु:शासन का अभिमन्‍यु के साथ युद्ध आरम्‍भ करना

धृतराष्‍ट्र बोले – संजय ! सुभद्राकुमार ने मेरे पुत्र की सेना को जो आगे बढ़ने से रोक दिया, इसे सुनकर लज्‍जा और प्रसन्‍नता से मेरे चित की दो अवस्‍थाऍ हो रही हैं । गवल्‍गणनन्‍दन ! जैसे कुमार कार्तिकेय ने असुरों के साथ रणक्रीड़ा की थी, उसी प्रकार कुमार अभिमन्‍यु ने जो युद्ध का खेल किया था, वह सब मुझसे विस्‍तारपूर्वक कहो ।

संजय ने कहा – महाराज ! मैं अत्‍यन्‍त खेद के साथ आपको उस अत्‍यन्‍त भंयकर नरसंहार का वृतान्‍त बता रहा हूं, जिसके लिये एक वीर का बहुत से महारथियों के साथ तुमुल युद्ध हुआ था । अभिमन्‍यु युद्ध के लिये उत्‍साह से भरा था । वह रथपर बैठकर आपके उत्‍साह भरे शत्रुदमन समस्‍त रथारोहियों पर बाणों की वर्षा करने लगा । द्रोण, कर्ण, कृप, अश्‍वत्‍थामा, भोजवंशी, कृतवर्मा, बृहदल, दुर्योधन, भूरिश्रवा, महाबली, शकुनि, अनेकानेक नरेश, राजकुमार तथा उन‍की विविध प्रकार की सेनाओं पर अभिमन्‍यु अलातचक्र की भॉति चारों ओर घूमकर बाणों का प्रहार कर रहा था । भारत ! प्रतापी एवं तेजस्‍वी वीर सुभद्राकुमार अपने दिव्‍यास्‍त्रों द्वारा शत्रुओं का नाश करता हुआ सम्‍पूर्ण दिशाओं में दृष्टिगोचर हो रहा था । अमित तेजस्‍वी अभिमन्‍यु का वह चरित्र देखकर आपके सहस्‍त्रों सैनिक भय से कांपने लगे । तदनन्‍तर परम बुद्धिमान और प्रतापी वीर द्रोणाचार्य के नेत्र हर्ष से खिल उठे । भारत ! उन्‍होंने युद्ध विशारद अभिमन्‍यु को युद्ध में स्थित देखकर आपके पुत्र के मर्मस्‍थल पर चोट करते हुए से उस समय तुरंत ही कृपाचार्य को सम्‍बोधित करके कहा-। यह पार्थकुल का प्रसिद्ध तरूण वीर सुभद्राकुमार अभिमन्‍यु अपने समस्‍त सुह्रदों को, राजा युधिष्ठिर, नकुल, सहदेव तथा पाण्‍डुपुत्र भीमसेन को, अन्‍यान्‍य भाई-बन्‍धुओं, सम्‍बन्धियों तथा मध्‍यस्‍थ सुह्रदों को भी आनन्‍द प्रदान करता हुआ जा रहा है । मैं दूसरे किसी धनुर्धर वीर को युद्धभूमि में इसके समान नही मानता । यदि यह चाहे तो इस सारी सेना को नष्‍ट कर सकता है; परंतु न जाने यह क्‍यों ऐसा चाहता नही है । अभिमन्‍यु के संबंध में द्रोणाचार्य का यह प्रीतियुक्‍त वचन सुनकर आपका पुत्र राजा दुर्योधन क्रोध में भर गया और द्रोणाचार्य की ओर देखकर मुसकराता हुसा-सा कर्ण, बाह्रिक, दु:शासन, मद्रराज शल्‍य तथा अन्‍य महारथियों से बोला । ये सम्‍पूर्ण मूर्धाभिषिक्‍त राजाओं के आचार्य तथा सर्वश्रेष्‍ठ ब्रह्रावेता द्रोण अर्जुन के इस मूढ़ पुत्र को मारना नहीं चाहते हैं । प्रिय सैनिको ! मैं आपलोगों से सच्‍ची बात कहता हूं । यदि ये युद्ध में मारने के लिये उघत हो जायॅ तो इनके सामने यमराज भी युद्ध नही कर सकता; फिर दूसरा कोई मनुष्‍य तो इनके सामने टिक ही कैसे सकता है ? ।यह द्रोणाचार्य से रक्षित होनेके कारण अपने बल और पराक्रमपर अभियान कर रहा है । यह मूर्ख अभिमन्‍यु आत्‍मलाधा करने वाला है। तुम सब लोग मिलकर इसे शीघ्र ही मथ डालो।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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