महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 43 श्लोक 1-23

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त्रिचत्वारिंश (43) अध्‍याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: त्रिचत्वारिंश अध्याय: श्लोक 1-23 का हिन्दी अनुवाद

चराचर प्राणियों के अधिपतियों का, धम्र आदि के लक्षणों का और विषयों की अनुभूति के साधनों का वर्णन तथा खेत्रज्ञ की विलक्षणता

ब्रह्माजी ने कहा- महर्षियो! मनुष्यों का राजा तो रजो गुण से युक्त क्षत्रिय है। सवारियों में हाथी, बनवासियों में सिंह, समस्त पुशओं में भेड़ और बिल में रहने वालों में सर्प, गौओं में बैल एवं स्त्रियों में पुरुष प्रधान है। बरगद, जामुन, पीपल, सेमल, शीशम, मेषश्रृंग (मेढ़ासिंगी) और पोले बाँस- ये इस लोक में वृक्षों के राजा हैं, इसमें संदेह नहीं है। हिमवान्, पारियात्र, सह्य, विन्ध्य, त्रिकूट, श्वेत, नील, भास, कोष्ठवान्, पर्वत, गुरुस्कन्ध, महेन्द्र और माल्यवान् पर्वत- ये सब पर्वत पर्वतों के अधिपति हैं। गणों के मरूद्गण, ग्रहों के सूर्य और नक्षत्रों के चन्द्रमा अधिपति हैं। यमराज पितरों के और समुद्र सरिताओं के स्वामी हैं। वरुण जल के और इन्द्र मरुद्गणों के स्वामी कहे जाते हैं। उष्ण प्रभा के अधिपति सूर्य हैं और ताराओं के स्वामी चन्द्रमा कहे गये हैं। भूतों के नित्य अधीश्वर अग्निदेव हैं तथा ब्राह्मणों के स्वामी बृहस्पति हैं। ओषधियों के स्वामी सोम हैं तथा बलवानों में श्रेष्ठ विष्णु हैं। रूपों के अधिपति सूर्य ओर पशुओं के ईश्वर भगवान शिव हैं। दीक्षा ग्रहण करने वालों के यज्ञ और देवताओं के इन्द्र अधिपति हैं। दिशााओं की स्वामिनी उत्तर दिशा है एवं ब्राह्मणों के राजा प्रतापी सामे हैं। सब प्रकार के रत्नों के स्वामी कुबेर, देवताओं के स्वामी इन्द्र और प्रजाओं के स्वामी प्रजापति हैं। यह भूतों के अधिपतियों का सर्ग है। मैं ही सम्पूर्ण प्राणियों का महान् अधीश्वर और बह्ममय हूँ। मुझसे अथवा विष्णु से बढ़कर दूसरा कोई प्राणी नहीं है। ब्रह्ममय महाविष्णु ही सबके राजाधिराज हैं, उन्हीं को ईश्वर समझना चाहिये। वे श्रीहरि सबके कर्ता हैं, किंतु उनका कोई कर्ता नहीं है। वे विष्णु ही मनुष्य, किन्नर, यक्ष, गन्धर्व, सर्प, राक्षस, देव, दानव और नाग सबके अधीश्वर हैं। कामी पुरुष जिनके पीछे फिरते हैं, उन सब में सुन्दर नेत्रों वाली स्त्री प्रधान है एवं जो माहेश्वरी, महादेवी और पार्वती नाम से कही जाती हैं उन मंगलमयी उमादेवी की स्त्रियों में सर्वोत्तम जानो तथा रमण करने योग्य स्त्रियों में स्वर्ण विभूषित अप्सराएँ प्रधान हैं। राजा धर्म पालन के इच्छुक होते हैं और ब्राह्मण धर्म के सेतु हैं। अत: राजा को चाहिये कि वह सदा ब्राह्मणों का रक्षा का प्रयत्न करे। जिन राजाओं के राज्य में श्रेष्ठ पुरुषों को कष्ट होता है, वे अपने समस्त राजोचित गुणों से हीन हो जाते और मरने के बाद नीच गति को प्राप्त होते हैं। द्विजवरो! जिनके राज्य में श्रेष्ठ पुरुषों की सब प्रकार से रक्षा की जाती है, वे महामना नरेश इस लोक में आनन्द के भीगी होते हैं और परलोक में अक्षय सुख प्राप्त करते हैं, ऐसा समझो। अब मैं सबके नियत धर्म के लक्षणों का वर्णन करता हूँ। अहिंसा सबसे श्रेष्ठ धर्म है और हिंसा अधर्म का लक्षण (स्वरूप) है। प्रकाश देवताओं का और यज्ञ आदि कर्म मनुष्यों का लक्षण हैं। शब्द आकाश का, वायु स्पर्श का, रूप तेज का और रस जल का लक्षण है। गन्ध सम्पूर्ण प्राणियों को धारण करने वाली पृथ्वी का लक्षण है तथा स्वर व्यंजन की शुद्धि से युक्त वाणी का लक्षण शब्द हैं।






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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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