महाभारत सौप्तिक पर्व अध्याय 4 श्लोक 1-17

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चतुर्थ (4) अध्याय: सौप्तिक पर्व

महाभारत: सौप्तिक पर्व: चतुर्थ अध्याय: श्लोक 1-17 का हिन्दी अनुवाद

कृपाचार्य का कल प्रात: काल युद्ध करने की सलाह देना और अश्‍वत्‍थामा का इसी रात्रि में सोते हुओं को मारने का आग्रह प्रकट करना कृपाचार्य बोले- तात ! तुम अपनी टेक से टलने वाले नहीं हो, सौभाग्‍य की बात है कि तुम्‍हारे मन में बदला लेने का दृढ़ विचार उत्‍पन्‍न हुआ । तुम्‍हें साक्षात वज्रधारी इन्‍द्र भी इस कार्य से रोक नहीं सकते । आज रात में कवच और ध्‍वजा खोलकर विश्राम करो कल सवेरे हम दोनों एक साथ होकर तुम्‍हारे पीछे-पीछे चलेंगे । जब तुम शत्रुओं का सामना करने के लिये आगे बढोगे, उस समय मैं और सात्‍वतवंशी कृतवर्मा दोनों ही कवच धारण करके रथों पर आरूढ़ हो तुम्‍हारे साथ चलेंगे । रथियों में श्रेष्‍ठ वीर ! कल सवेरे के संग्राम में हम दोनों के साथ रहकर तुम अपने शत्रु पांचालों और उनके सेवकों को बलपूर्वक मार डालना । तात ! तुम पराक्रम दिखाकर शत्रुओं का वध करने में समर्थ हो, अ‍त: इस रात में विश्राम कर लो। तुम्‍हें जागते हुए बहुत देर हो गयी है, अब इस रात में सो लो । मानद ! थकावट दूर करके नींद पूरी कर लेने से तुम्‍हारा चित स्‍वस्‍थ हो जायेगा। फिर तुम समर भूमि में जाकर शत्रुओं का वध कर सकोगे, इसमें संशय नही है । तुम रथियों में श्रेष्‍ठ हो, तुमने अपने हाथ में उत्‍तम आयुध ले रखा है। तुम्‍हें देवताओं के राजा इन्‍द्र भी कभी जीतने का साहस नहीं कर सकते हैं । जब कृतवर्मा से सुरक्षित हो द्रोण पुत्र अश्‍वत्‍थामा मुझ कृपाचार्य के साथ कुपित होकर युद्ध के लिये प्रस्‍थान करेगा, उस समय कौन वीर, वह देवराज इन्‍द्र ही क्‍यों न हो, उसका सामना कर सकता है ?। अत: हम लोग रात में विश्राम करके निद्रारहित और विगतज्‍वर हो प्रात:काल अपने शत्रुओं का संहार करेंगे । इसमें संशय नहीं कि तुम्‍हारे और मेरे पास भी दिव्‍यास्‍त्र हैं तथा महाधनुर्धर कृतवर्मा भी युद्ध करने की कला में सदा ही कुशल हैं । तात ! हम सब लोग एक साथ होकर समरांगण में सामने आये हुए समस्‍त शत्रुओं का संहार करके अत्‍यन्‍त हर्ष का अनुभव करेंगे । तुम व्‍यग्रता छोड़कर विश्राम करो और इस रात में सुखपूर्वक सो लो। कल सवेरे युद्ध के लिये प्रस्‍थान करते समय तुम- जैसे नरश्रेष्‍ठ वीर के पीछे शत्रुओं को संताप देने वाले हम और कृतवर्मा धनुष लेकर एक साथ चलेंगे । बड़ी उतावली के साथ आगे बढते हुए रथी अश्‍वत्‍‍थामा के साथ हम दोनों भी कवच धारण करके रथ पर आरूढ हो यात्रा करेंगे । उस अवस्‍था में शत्रुओं के शिविर में जाकर युद्ध के लिये अपने नाम की घोषणा कर के सामने आकर जूझते हुए उन शत्रुओं का बड़ा भारी संहार मचा देना । जैसे इन्‍द्र बड़े-बड़े असुरों का विनाश करके सुखपूर्वक विचरते हैं, उसी प्रकार तुम भी कल प्रात:काल निर्मल दिन निकल आने पर उन शत्रुओं का विनाश करके इच्‍छानुसार विहार करो।जैसे सम्‍पूर्ण दानवों का संहार करने वाले इन्‍द्र कुपित होने पर दैत्‍यों की सेना को जीत लेते हैं, उसी प्रकार तुम भी रणभूमि में पांचालों की विशाल वाहिनी पर विजय पाने में समर्थ हो । युद्ध स्‍थल में जब तुम मेरे साथ खड़े होओगे और कृतवर्मा तुम्‍हारी रक्षा में लगे होंगे, उस समय हाथ में वज्र लिये हुए साक्षात देव सम्राट इन्‍द्र भी तुम्‍हारा वेग नहीं सह सकेंगे ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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