महाभारत स्त्री पर्व अध्याय 11 श्लोक 1-24

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एकादश (11) अध्याय: स्‍त्रीपर्व (जलप्रदानिक पर्व )

महाभारत: स्‍त्रीपर्व: एकादश अध्याय: श्लोक 1-24 का हिन्दी अनुवाद

राजा धृतराष्‍ट्रसे कृपाचार्य, अश्‍वत्‍थामा और कृतवर्मा की भेंट और कृपाचार्य का कौरव-पाण्‍डवोंकी सेनाके विनाश की सूचना देना

वैशम्‍पायन उवाच वैशम्‍पायनजी कहते हैं – राजन ! वे सब लोग हस्तिनापुरसे एस ही कोसकी दूरीपर पहुँचे होंगे कि उन्‍हें शरद्वानके पुत्र कृपाचार्य, द्रोणकुमार अश्‍वत्‍थामा और कृतवर्मा – ये तीनों महारथी दिखायी दिये ।रोते हुए एश्‍वर्यशाली प्रज्ञाचक्षु राजा धृतराष्‍ट्र देखते ही आँसुओंसे उनका गला भर आया और वे इस प्रकार बोले- ‘पृथ्‍वीनाथ महाराज ! आपका पुत्र अत्‍यन्‍त दुष्‍कर कर्म करके अपने सेवकोंसहित इन्‍द्रलोकमें जा पहुँचा है। ‘भरतश्रेष्‍ठ ! दुर्योधनकी सेनासे केवल हम तीन रथी ही जीवित बचे हैं । आपकी अन्‍य सारी सेना नष्‍ठ हो गयी’ । राजा धृतराष्‍ट्रसे ऐसा कहकर शरद्वान् के पुत्र कृपाचार्य पुत्रशोकसे पीडित हुई गान्‍धारीसे इस प्रकार बोले - ‘देवि ! आपके सभी पुत्र निर्भय होकर जूझते और बहु-संख्‍यक शत्रुओंका संहार करते हुए वीरोचित कर्म करके वीरगतिको प्राप्‍त हुए हैं ।‘निश्‍चय ही वे शस्‍त्रोंद्वारा जीते हुए निर्मल लोकोंमें पहुँचकर तेजस्‍वी शरीर धारण करके वहाँ देवताओंके समान विहार करते होंगे । ‘उन शूरवीरोंमेसे कोई भी युद्ध करते समय पीठ नहीं दिखा सका है । किसीने भी शत्रुके हाथ नहीं जोडे़ हैं । सभी शस्‍त्रके द्वारा मारे गये हैं । ‘इस प्रकार युद्ध में जो शस्‍त्रद्वारा मृत्‍यु होती है, उसे प्राचीन महर्षि क्षत्रियके लिये उत्‍तम गति बताते है; अत: उनके लिये आपको शोक नहीं करना चाहिये । ‘महारानी ! उनके शत्रु पाण्‍डव भी विशेष लाभमें नहीं हैं। अश्‍वत्‍थामाको आगे करके हमने जो कुछ किया है, उसे सुनिये । ‘भीमसेनने आपके पुत्रको अधर्मसे मारा है, यह सुनकर हमलोग भी पाण्‍डवोंके सोते हुए शिविरमें जा पहुँचे और पाण्‍डववीरोंका संहार कर डाला। द्रुपदके पुत्र धृष्‍ट्द्युम्‍न आदि सारे पांचाल मार डाले गये और द्रौपदीके पॉंचों पुत्रोंको भी हमने मार गिराया । ‘इस प्रकार आपके शत्रुओं का रणभूमिमें संहार करके हम तीनों भागे जा रहे है । अब यहाँ ठहर नहीं सकते।। ‘क्‍योंकि अमर्षमें भरे हुए वे महाधनुर्धर वीर पाण्‍डव वैरका बदला लेने की इच्‍छासे शीघ्र यहाँ आयेंगे । ‘यशस्विनि ! अपने पुत्रोंके मारे जानेका समाचार सुनकर सदा सावधान रहनेवाले पुरुषप्रवर पाण्‍डव हमारा चरणचिन्‍ह देखते हुए शीघ्र ही हमलोगोंका पीछा करेंगे । ‘रानीजी ! उनके पुत्रों और सम्‍बन्धियोंका विनाश करके हम यहाँ ठहर नहीं सकते; अत: हमें जानेकी आज्ञा दिजिये और आप भी अपने मनसे शोकको निकाल दीजिये । ( फिर वे धृतराष्‍ट्रसे बोले -- ) ‘राजन् ! आप भी हमें जानेकी आज्ञा प्रदान करें और महान् धैर्यका आश्रय लें, केवल क्षात्रधर्मपर दृष्टि रखकर इतना ही देखें कि उनकी मृत्‍यु कैसे हुई है ? भारत ! राजासे ऐसा कहकर उनकी प्रदक्षिणा करके कृपाचार्य, कृतवर्मा और अश्‍वत्‍मामाने मनीषीराज धृतराष्‍ट्रकी ओर देखते हुए तुरंत ही गंगा तट की ओर अपाने घोड़े हाँक दिये । राजन् वहाँसे हटकर वे सभी महारथी उद्विग्‍न हो एक दूसरेसे विदाले तीन मार्गोंपर चल दिये । शरद्वान् के पुत्र कृपाचार्य तो हस्तिनापुर चले गये, कृतवर्मा अपने ही देशकी ओर चल दिया और द्रोणपुत्र अश्‍वत्‍थामाने व्‍यास-आश्रमकी राह ली । महात्‍मा पाण्‍डवोंका अपराध करके भयसे पीडित हुए वे तीनों वीर इस प्रकार एक दूसरेकी ओर देखते हुए वहाँसे खिसक गये । राजा धृतराष्‍ट्रसे मिलकर शत्रुओंका दमन करनेवाले वे तीनों महामनस्‍वी वीर सूर्योदयसे पहले ही अपने अभीष्‍ट स्‍थानोंकी ओर चल पड़े । राजन्! तदनन्‍तर महारथी पाण्‍डवोंने द्रोणपुत्र अश्‍वत्‍थामा-के पास पहुँचकर उसे बलपूर्वक युद्धमें पराजित कि‍या ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत स्‍त्रीपर्वके अन्‍तर्गत जलप्रदानिकपर्व में कृपाचार्य, अश्‍वत्‍थामा और कृतवर्माका दर्शनविषयक ग्‍यारहवॉं अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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