महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 50 श्लोक 33-51
पंचाशत्तम (50) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)
प्रधान का दूसरा नाम अव्यक्त है। अव्यक्त का कार्य महत्तत्व है और प्रकृति से उत्पन्न महत्तत्त्व का कार्य अहंकार है।
अहंकार से पंच महाभूतों को प्रकट करने वाले गुण की उत्पत्ति हुई है। पंच महाभूतों के कार्य हैं रूप, रस आदि विषय। वे पृथक-पृथक् गुणों के नाम से प्रसिद्ध हैं।
अव्यक्त प्रकृति कारण रूपा भी है और कार्यरूपा भी। इसी प्रकार महत्तत्त्व के भी कारण और कार्य दोनों ही स्वरूप सुने गये हैं।
अहंकार भी कारण रूप तो है ही, कार्य रूप में भी बारम्बार परिणत होता रहता है। पंच महाभूतों (पंचतन्मात्राओं) में भी कारणत्व और कार्यत्व दोनों धर्म हैं। वे शब्दादि विषयों को उत्पन्न करते हैं, इसलिये ऐसा कहा जाता है कि वे बीजधर्मी हैं।
उन पाँचों भूतों के विशेष कार्य शब्द आदि विषय हैं। उन विषयों का प्रवर्तक चित्त है।
पंचमहाभूतों में से आकाश में एक ही गुण माना गया है। वायु के गुण बतलाये जाते हैं। तेज तीन गुणों से युक्त कहा गया है। जल के चार गुण हैं।
पृथ्वी के पाँच गुण समझने चाहिये। यह देवी स्थावर जंगम प्राणियों से भरी हुई, समस्त जीवों को जन्म देने वाली तथा शुभ और अशुभ का निर्देश करने वाली है।
विप्रवरो! शब्द, स्पर्श, रूप, रस और पाँचवाँ गन्ध- ये ही पृथ्वी के पाँच गुण जानने चाहिये।
इनमें भी गन्ध उसका खास गुण है। गन्ध अनेक प्रकार की मानी गयी है। मैं उस गन्ध के गुणों का विस्तार के साथ वर्णन करूँगा।
इष्ट (सुगन्ध), अनिष्ट (दुर्गन्ध), मधुर, अम्ल, कटु, निर्हारी (दूर तक फैलने वाली), मिश्रित, स्निज्ध, रूक्ष और विशद- ये पार्थिव गन्ध के दस भेद समझने चाहिये।
शब्द, स्पर्श, रूप, रस- ये जल के चार गुण माने गये हैं (इनमें रस ही जल का मुख्य गुण है)। अब मैं रस विज्ञान का वर्णन करता हूँ। रस के बहुत से भेद बताये गये हैं।
मीठा, खट्टा, कडुआ, तीता, कसैला और नमकीन- इस प्रकार छ: भेदों में जलमय रस का विस्तार बताया गया है।
शब्द, स्पर्श और रूप- ये तेज के तीन गुण कहे गये हैं। इनमें रूप ही तेज की मुख्य गुण है। रूप के भी कई भेद माने गए हैं।
शुक्ल, कृष्ण, रक्त, नील, पाती, अरुण, छोटा, बड़ा, मोटा, दुबला, चौकोना और गोल-इस प्रकार तैजस् रूप का बारह प्रकार से विस्तार सत्यवादी धर्मज्ञ वृद्ध ब्राह्मणों के द्वारा जानने योग्य कहा जाता है।
शब्द और स्पर्श- ये वायु के दो गुण जानने योग्य कहे जाते हैं। इनमें भी स्पर्श ही वायु का प्रधान गुण है। स्पर्श भी कई प्रकार का माना गया है।
रूखा, ठंडा, गरम, स्निग्ध, विशद, कठिन, चिकना, श्लक्ष्ण (हलका), पिच्छिल, कठोर और कोमल- इन बारह प्रकारों से वायु के गुण स्पर्श का विस्तार तत्वदर्शी धर्मज्ञ सिद्ध ब्राह्मणों द्वारा विधिवत् बतलाया गया है।
आकाश का शब्दमात्र एक ही गुण माना गया है। उस शब्द के बहुत से गुण हैं। उनका विस्तार के साथ वर्णन करता हूँ।
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