महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 84 श्लोक 18-24

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

चतुरशीतितम (84) अध्‍याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: चतुरशीतितम अध्याय: श्लोक 18-24 का हिन्दी अनुवाद

श्रेष्‍ठ कर्म करने वाले वीर अर्जुन के सामने कोई भी शत्रु खड़े नहीं दिखायी देते थे, जो अर्जुन की मार पड़ने पर उनका वेग सहन कर सके । तदनन्‍तर गान्‍धारराज की माता अत्‍यन्‍त भयभीत होकर बूढ़े मन्‍त्रियों को आगे करके उत्‍तम अर्घ्‍य ले नगर से बाहर निकली और रणभूमि में उपस्‍थित हुई । आते ही उसने अपने व्‍यग्रतारहित एवं रणोन्‍मत्‍त पुत्र को युत्र करने से रोका और अनायास ही महान् कर्म करने वाले विजयीशील अर्जुन को प्रिय वचनों द्वारा प्रसन्‍न किया । सामर्थ्‍यशाली अर्जन ने भी मामी का सम्‍मान करके उन्‍हें प्रसन्‍न किया और स्‍वयं उन पर कृपा दृष्‍टि की । फिर शकुनि के पुत्र को भी सान्‍त्‍वना प्रदान करते हुए वे इस प्रकार बोले - 'शत्रु सूदन ! महाबाहु वीर ! तुमने जो मुझसे युद्ध करने का विचार किया, यह मुझे प्रिय नहीं लगा ; क्‍योंकि अनघ ! तुम मेरे भाई ही हो । 'राजन ! मैंने माता गान्‍धारी को याद करके पिता धृतराष्‍ट्र के सम्‍बन्‍ध से युद्ध में तुम्‍हारी उपेक्षा की है ; इसीलिये तुम अभी तक जीवित हो । केवल तुम्‍हारे अनुगामी सैनिक ही मारे गये हैं । 'अब हम लोगों में ऐसा बर्ताव नहीं होना चाहिये । आपस का वैर शान्‍त हो जाय । अब तुम कभी इस प्रकार हम लोगों के विरुद्ध युद्ध ठानने का विचार न करना । 'आगामी चैत्र मास की पूर्णिमा को महाराज युधिष्‍ठिर का अश्‍वमेध यज्ञ होने वाला है । उसमे तुम अवश्‍य आना' ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत के आश्‍वमेधिक पर्व के अन्‍तर्गत अनुगीता पर्व में अश्‍वानुसरण के प्रसंग में शकुनि पुत्र की पराजय विषयक चौरासीवां अध्‍याय पूरा हुआ ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख