महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 11 श्लोक 13-20
एकदश (11) अध्याय: आश्वमेधिक पर्व (अश्वमेध पर्व)
वज्र के प्रहार से पीड़ित हो सहसा वायु में समा गया और उसक स्पर्श नामक विषय को ग्रहण करने लगा। जब वृत्रासुर ने वायु को भी व्याप्त करके उसके स्पर्श नामक विषय का अपहरण कर लिया, तब शतक्रतु ने अत्यन्त कुपित होकर वहाँ उसके ऊपर अपना वज्र छोड़ दिया। वायु के भीतर अमित तेजस्वी वज्र से पीड़ित हो वृत्रासुर भागकर आकाश में जा छिपा और उसके विषय को ग्रहण करने लगा |जब आकाश वृत्रासुरमय हो गया और उसके शब्दरूपी विषय का अपहरण होने लगा, तब शतक्रतु इन्द्र को बड़ा क्रोध हुआ और उन्होंने वहाँ भी उस पर वज्र का प्रहार किया।आकाश के भीतर अमित तेजस्वी वज्र से पीड़ित हो वृत्रासुर सहसा इन्द्र में साम गया और उनके विषय को ग्रहण करे लगा। तात! वृत्रासुर से गृहीत होने पर इन्द्र के मन पर महान् मोह छा गया। तब महर्षि वसिष्ठ ने रथन्तर साम के द्वारा उन्हें सचेत किया।
भरतश्रेष्ठ! तत्पश्चात् शतक्रतु ने अपने शरीर के भीतर स्थित हुए वृत्रासुर को अदृश्य वज्र के द्वारा मार डाला ऐसा हमने सुना है। जनेश्वर! यह धर्म सम्मत रहस्य इन्द्र ने महर्षियों को बताया और महर्षियों ने मुझ से कहा। वही रहस्य मैंने आपको सुनया है। आप इसे अच्छी तरह समझें।
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