महाभारत आश्‍वमेधिक पर्व अध्याय 76 श्लोक 20-26

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

षट्सप्‍ततितम (76) अध्याय: आश्‍वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्‍वमेधिक पर्व: षट्सप्‍ततितम अध्याय: श्लोक 20-26 का हिन्दी अनुवाद

वज्रदत्‍त के उस हाथी के धराशायी होते ही राजा वज्रदत्‍त स्‍वयं भी पृथ्‍वी पर जा पड़ा । उस समय पाण्‍डुपुत्र अर्जुन ने उससे कहा–‘राजन ! तुम्‍हें डरना नहीं चाहिये’। जब मैं घर से प्रस्‍थित हुआ, उस समय महातेजस्‍वी राजा युधिष्‍ठिर ने मुझसे कहा–‘धनंजय ! तुम्‍हें किसी तरह भी राजाओं का वध नहीं करना चाहिये’। ‘पुरुषसिंह ! इतना करने से सब कुछ हो जायगा । अर्जुन ! तुम्‍हें युद्ध ठान कर योद्धाओं का वध कदापि नहीं करना चाहिये। ‘तुम सभी राजाओं से कह देना कि आप सब लोग अपने सुह्दों के साथ पधारें और युधिष्‍ठिर के अश्‍व मेध यज्ञ–सम्‍बंधी उत्‍सव का आनन्‍द लें’। ‘नरेश्‍वर ! भाई के इस वचन को सुनकर इसे शिरोधार्य करके मैं तुम्‍हें मार नहीं रहा हूं । भूपाल ! उठो, तुम्‍हें कोई भय नहीं है । तुम सकुशल अपने घर को लौट जाओ। ‘महाराज ! आगामी चैत्रमास की उत्‍तम पूर्णिमा तिथि उपस्‍थित होने पर तुम हस्‍तिनापुर आना । उस समय बुद्धिमान धर्मराज का वह उत्‍तम यज्ञ होगा’। अर्जुन के ऐसा करने पर उनसे परास्‍त हुए भगदत्‍त कुमार राजा वज्रदत्‍त ने कहा –‘बहुत अच्‍छा, ऐसा ही होगा’।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्‍वमेधिक पर्व के अन्‍तर्गत अनुगीता पर्व में वज्रदत्‍त की पराजय विषयक छिहत्‍तरवां अध्‍याय पूरा हुआ।


« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख