महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 16 श्लोक 20-36
षोडश (16) अध्याय: कर्ण पर्व
भरतनन्दन ! यह महान् आश्चर्य की बात देख और सुनकर अश्वत्थामा ने सावधान हो रणभूमि में श्रीकृष्ण और अर्जुन पर धावा किश। तदनन्तर शत्रुनाशक बाणों का प्रहार करते हुए पाण्डुपुत्र अर्जुन को बाण युक्त हाथ से बुलाकर अश्वत्थामा ने हँसते हुए कहा-। ‘वीर ! यदि तुम मुझे यहाँ आया हुआ पूजनीय अतिथि मानो सब प्रकार से आज युद्ध के द्वारा मेरा आतिथ्य सत्कार करो ‘। आचार्य पुत्र के द्वारा इस प्रकार युद्ध की इच्छा से बुलाये जाने पर अर्जुन ने अपना अहोभाग्य माना और भगनान् श्रीकृष्ण से इस प्रकार कहा-। ‘माधव ! एक ओर तो मुझे संयाप्तकों का वध करना है,दूसरी ओर द्रोणकुमार अश्वत्थामा युद्ध के लिए मेरा आह्नान कर रहा है । अतः यहाँ मेरे लिए जो पहले कर्तव्य प्राप्त हो ? उसे मुझे बताइये । यदि आप ठीक समझें तो पहले उठकर अश्वत्थामा को ही आतिथ्य ग्रहण करने का अवसर दिया जाये ‘। अर्जुन के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण ने उन्हें विजयशील रथ के द्वारा द्रोणकुमार के निकट पहुँचा दिया । ठीक वैसे ही,जैसे वैदिक विधि से आवाहित इन्द्र देवता को वायुदेव यज्ञ में पहुँचा देते हैं ।। तत्पश्चात् भगवान श्रीकृष्ण ने एकाग्रचित्त द्रोणकुमार को सम्बोधित करके कहा- ‘अश्वत्थामा ! स्थिर होकर शीघ्रता पूर्वक प्रहार करो और अपने ऊपर किये गये प्रहार को सहन करो। ‘क्योंकि स्वामी के आश्रित रहकर जीवन निर्वाह करने वाले पुरुषों के लिए अपने रक्षक के अन्न्ा को सफल करने का यही अवसर आया है,ब्राह्मणों का विवाद सूक्ष्म ( बुद्धि के द्वारा साध्य ) होता है;परंतु क्षत्रियों की जय-पराजय स्थूल अस्त्रों द्वारा सम्पन्नहोती हैं। ‘तुम मोहवश अर्जुन से जिस दिव्य सत्कार की प्रार्थना कर रहे हो,उसे पाने की इच्छा से आज तुम स्थिर होकर पाण्डुपुत्र धनंजय के साथ युद्ध करो ‘। भगवान श्रीकृष्ण के ऐसा कहने पर द्विज श्रेष्ठ अश्वत्थामा ने ‘बहुत अच्छा ‘कहकर केशव को साठ और अर्जुन को तीन बाणों से घायल कर दिया तब अर्जुन ने अत्यनत कुपित होकर तीन बाणों से अश्वत्थामा का धनुष काट दिया;परंतु द्रोणकुमार ने उससे भी भयंकर दूसरा धनुष हाथ में ले लिया। उसने पलक मारते-मारते उस धनुष पर प्रत्यंचा चढ़ाकर अर्जुन और श्रीकृष्ण को बींध डाला । श्रीकृष्ण को तीन सौ और अर्जुन करे एक हजार बाण मारे। तदनन्तर द्रोणकुमार अश्वत्थामा ने प्रयत्नपूर्वक अर्जुन को युद्धस्थल में स्तम्भित करके उनके ऊपर हजारों,लाखों ओर अरबों बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। मान्यवर ! उस समय वेदवादी अश्वत्थामा ने तरकस,धनुष,प्रत्यंचा,बाँह,हाथ,छाती,मुख,नाक,आँख,कान,सिर,भिन्न-भिन्न अंग,रोम,कवच,रथ और ध्वजों से भी बाण निकल रहे थे। इस प्रकार बाणों के महान् समुदाय से श्रीकृष्ण और अर्जुन को घायल करके आनन्दित हुआ द्रोणकुमार महान् मेघों के गम्भीर घोष के समान गर्जना करने लगा।
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