महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 22 श्लोक 22-30
द्वाविंश (22) अध्याय: कर्ण पर्व
बादलों से एके हुए सूर्य के समान नकुल को उनके द्वारा आच्छादित होते देख क्रोध में भरे हुए पाण्डव,पांचाल और सोमक याद्धा तुरंत उन म्लेच्छों पर टूट पड़े। तब उन रथियों का हाथियों के साथ युद्ध छिड़ गया । वे रथी वीर उनके ऊपर सहस्त्रों तोमरों और बाणों की वर्षा कर रहे थे। नाराचों से अत्यन्त घायल हुए उन हाथियों के कुम्भस्थल फूट गये,विभिन्न मर्मस्थान विदीर्ण हो गये तथा उनके दाँत और आभूषण कट गये। सहदेव ने उनमें से आइ महागजों को चैसठ पैने बाणों से शीघ्र मार डाला । वे सब-के-सब सवारों के साथ धराशायी हो गये। अपने कुल को आनन्दित करने वाले नकुल ने भी प्रसत्न पूर्वक उत्तम धनुष को खींचकर अनायास ही दूर तक जाने वाले नाराचों द्वारा बहुत से हाथियों का वध कर डाला। तदनन्तर धृष्टद्युम्न,सात्यकि,द्रौपदी के पुत्र,प्रभद्रकगण तथा शिखण्डी ने भी उन महान् गजराजों पर अपने बाणों की वर्षा की। जैसे वज्रों की वर्षा से पर्वत ढह जाते हैं,उसी प्रकार पाण्डव-सैनिक रूपी बादलों द्वारा की हुई बाणों की वृष्टि से आहत हो शत्रुओं के हाथी रूपी पर्वत धराशासी हो गये। इस प्रकार उन श्रेष्ठ पाण्डव महारथियों ने आपके हाथियों का संहार करके देखा कि आपकी सेना किनारा तोड़कर बहने वाली नदी के समान सब ओर भाग रही है ।29।। पाण्डु पुत्र युधिष्ठिर के उन सैनिकों ने आपकी उस सेना को मथकर उसमें हलचल पैदा करके पुनः कर्ण पर धावा किया।
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