महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 30 श्लोक 37-44
त्रिंश (30) अध्याय: कर्ण पर्व
इस प्रकार जब आपक विजयाभिलाषी सैनिक युद्ध में संलग्न हो रहे थे,उसी समय सूर्यदेव असताचल पहँुचकर डूब गये। महाराज ! उस समय अन्धकार और विशेषतः धूल से सब कुद आच्छादित होने के कारण हम लोग किसी भी शुभ या अशुभ वस्तु को नहीं देख पाते थे। भारत् ! वे महाधनुर्धर योद्धा रात्रि युद्ध से डरते थे। इसलिये समस्त सैनिकों के साथ उन्होंने वहाँ से शिविर को प्रसथान कर दिया। राजन् ! दिन के अन्त में कौरवों के हट जाने पर पाण्डव भी विजय पाकर प्रसन्नचित हो भाँति-भाँति के बाणों की आवाज,सिंहनाद और गर्जना के द्वारा शत्रुओं का उपहास और श्रीकृष्ण तथा अर्जुन की स्तुति करते हुए अपने शिविर को लौट गये। उन वीरों के द्वारा युद्ध का उपसंहार कर दिये जाने पर समसत सैनिक और नरेश पाण्डवों को आशीर्वाद देने लगे। इस प्रकार सैनिको के लौटा लिये जाने पर हर्ष में भरे हुए पाण्डव-पक्षीय नरेश रात को शिविर में जाकर सो रहे। तदनन्तर रुद्र के क्रीड़ा स्थल ( श्मशान ) सदृश उस भयंकर युद्ध भूमि में राक्षस,पिशाच और झुंड-के-झुंड हिंसक जीव जन्तु जा पहुँचे।
इस प्रकार श्रीमहाभारत में कर्णपर्व में कर्ण के सेनापतित्व में प्रथम दिन का युद्ध विषयक तीसवाँ अध्याय पूरा हुआ।
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