महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 41 श्लोक 20-38
एकचत्वारिंश (41) अध्याय: कर्ण पर्व
बहुत काँव-काँव करने वाले उस कौए की वह बात सुनकर वहाँ आसे हुए व पक्षियों में श्रेष्ठ आकाशचारी बलवान् चक्रांग हँस पड़े और कौए से इस प्रकार बोले। हंसों ने कहा-काक ! हम मानसरोवर निवासी हंस हैं,जो सदा इस पृथ्वी पर विचरते रहते हैं। दूर तक उड़ने के कारण हम लोग सदा सभी पक्षियों में सम्मानित होते आये हैं।। ओ खोटी बुद्धि वाले कागा ! तू कौआ होकर लंबी उड़ान भरने वाले और अपने अंगों में चक्र का चिन्ह धारण करने वाले एक बलवान हंस को अपने साथ उड़ने के लिये कैसे ललकार रहा है ? काग ! बता तो सही,तू हमारे साथ किस प्रकार उड़ेगा ? हुस की बात सूनकर बढ़-बढ़कर बातें बनाने वाले मूर्ख कौए ने अपनी जातिगत क्षेद्रता के कारण बारंबार उनकी निंदा करके उसे इस प्रकार उत्तर दिया।
कौआ बोला-हंस ! मैं एक सौ एक प्राकार की उड़ानें उड़ सकता हूँ ? उसमें संशय नहीं है। उमें से प्रत्येक उड़ान सौ-सौ योजन की होती है और वे सभी विभिन्न प्रकार की एवं विचित्र हैं। उनमें से कुछ उडत्रानों के नाम इस प्रकार हैं-उड्डीन (ऊँचा उड़ना),अवडीन (नीचा उड़ना),प्रडीन ( चारों ओर उड़ना),डीन (साधारण उड़ना),निडीन (धीरे-धीरे उड़ना),संडीन (ललित गति से उड़ना),तिर्यग्डीन (तिरछा उड़ना),विडीन (दूसरों की चाल की नकल करते हुए उड़ना),परिडीन (सब ओर उड़ना),पराडीन (पीछे की ओर उड़ना),सुडीन (स्वर्ग की ओर उड़ना), अभिडीन (सामने की ओर उड़ना),महाडीन[1] (बहुत वेग से उड़ना),निर्डीन (परों को हिलाये बिना ही उड़ना),अतिडीन (प्रचण्डता से उड़ना),संडी डनी-डीन (सुन्दर गति से आरम्भ करके फिर चक्कर काटकर नीचे की ओर उड़ना),संडीनोड्डीनडीन (सुन्दर गति से आरम्भ करके फिर चक्कर काटकर ऊँचा उड़ना),डीनविडीन (एक प्रकार की उड़ान में दूसरी उड़ान दिखाना),सम्पात (क्षण भर सुन्दरता से उड़कर फिर पंख फड़फड़ाना),समुदीष (कभी ऊपर की ओर और कभी नीच की ओर उड़ना),और व्यक्तिरिक्तक (किसी लक्ष्य का संकल्प करके उड़ना),ये छब्बीस उड़ानें हैं। इनमें से महाडीन के सिवा अन्य सब उड़ानों केगत(किसी लक्ष्य की ओर जाना),आगत(लक्ष्य तक पहुँच कर लौट आना),औरप्रतिगत (पलटा खाना)-ये तीन भेद हैं (इस प्रकार कुल छिहत्तर भेद हुए)। इसके सिवा बहुत-से (अर्थात् पचीस) निपात भी हैं। (ये सब मिलकर एक सौ एक उडनानें होती हैं)। आज मैं तुम लोगोंके देखते-देखते जब इतनी उड़ानें भरूँगा,उस समय मेरा बल तुम देखोगे। मैं इनमें से किसी भी उड़ान से आकाश में उड़ सकूँगा। हंसों ! तुम लोग यथोचित रूप से विचार करके बताओं कि मैं किस उड़ान से उड़ूँ,। अतः पक्षियों ! तम सब लोग दृढ़ निश्चय करके आश्रय रहित आकाश में इन विभिन्न उड़ानों द्वारा उड़ने के लिए मेरे साथ चलो न।
हंस बोला-काग ! तू अवश्य एक सौ एक उड़ानों द्वारा उड़ सकता है। परंतु मैं तो जिसे एक उड़ान को सारे पक्षी जानते हैं उसी से उड़ सकता हूँ,दूसरी किसी उड़ान का मुझे पता नहीं है। लाल नेत्रवाले कौए ! तू भी जिस उड़ान से उचित समझे,उसी से उड़। तब वहाँ आये हुए सारे कौए जोर-जोर से हँसने लगे और आपस में बोले-भला यह हंस एक ही उड़ान से सौ प्रकार की उड़ानों को कैसे जीत सकता है ? यह कौआ बलवान् और शीघ्रता पूर्वक उड़ने वाला है;अतः सौ में से एक ही तदनन्तर हंस और कौआ दोनों होड़ लगाकर उड़े। चक्रांग हंस एक ही गति से उड़ने वाला था और कौआ सौ उड़ानों से। इधर से चक्रांग उड़ा और उधर से कौआ।
« पीछे | आगे » |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाडीन के सिवा,जो अन्य पचीस उड़ानें कही गयी हैं,उन सबका पृथक्-पृथक् एक-एक संपात (पंख फड़फड़ाने की क्रिया) भी है। ये पचीस संपात जोड़ने से एक सौ एक संख्या की पूर्ति होती है।
संबंधित लेख
f=a”k