महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 46 श्लोक 66-87
षट्चत्वारिंश (46) अध्याय: कर्ण पर्व
‘जिनके नरेश मारे गये हैं, वे गन्ध।र्वनगर के समान विशाल रथ स्वार्गवासियों के पुण्यअमय विमानों के समान नीचे गिर रहे हैं। ‘देखो, किरीटधारी अर्जुन ने कौरव सेना को उसी प्रकार अत्यसन्त व्याेकुल कर दिया है, जैसे सिंह नाना जाति के सहस्त्रों मृगों को भयभीत कर देता है । ‘तुम्हारे सैनिकों के आक्रमण करने पर ये वीर पाण्डिव योद्धा अपने ऊपर प्रहार करने वाले राजाओं तथा हाथी, घोड़े, रथ और पैदल समूहों को मार रहे हैं । ‘जैसे सूर्य बादलों से ढक जाते हैं, उसी प्रकार आड़ में पड़ जाने के कारण ये अर्जुन नहीं दिखायी देते हैं; परंतु इनके ध्वज का अग्रभाग दीख रहा है और प्रत्य चाकी टंकार भी सुनायी पड़ती है। ‘कर्ण। तुम जिन्हें पूछ रहे थे, युद्धस्थल में शत्रुओं का संहार करते हुए उन कृष्ण। सारथि श्वेुतवाहन वीर अर्जुन को अभी देखोगे। ‘कर्ण। लाल नेत्रोंवाले उन शत्रुसंतापी पुरुषसिंह श्रीकृष्ण और अर्जुन को आज तुम एक रथ पर बैठे हुए देखोगे । ‘राधापुत्र। श्रीकृष्ण जिनके सारथि हैं और गाण्डी व जिनका धनुष है, उन अर्जुन को यदि तुमने मार लिया तो तुम हमारे राजा हो जाओगे। ‘यह देखो’ संशप्तदकों की ललकार सुनकर महाबली अर्जुन उन्हीं की ओर चल पड़े और अब संग्राम में उन शत्रुओं का संहार कर रहे हैं’। ऐसी बातें कहते हुए मद्रराज शल्यं से कर्ण ने अत्यमन्तर क्रोधपूर्वक कहा ‘तुम्हींं देखो न, रोष में भरे हुए संशप्तसकों ने उन पर चारों ओर से आक्रमण कर दिया है। ‘यह लो, बादलों से ढके हुए सूर्य के समान अर्जुन अब नहीं दिखायी देते हैं। शल्य। अब अर्जुन का यहां अन्त हुआ समझो। वे योद्धाओं के समुद्र में डूब गये’। शल्य ने कहा- कर्ण। कौन ऐसा वीर है, जो जल से वरुण को और ईधन से अग्निे को मार सके वायु को कौन कैद कर सकता है अथवा महासागर को कौन पी सकता है। मैं युद्ध में अर्जुन के स्वोरुप को ऐसा ही समझता हूं। संग्राम भूमि में इन्द्रै सहित सम्पूर्ण देवताओं तथा असुरों के द्वारा भी अर्जुन नहीं जीते जा सकते।
अथवा यदि तुम्हें इसी से संतोष होता है तो वाणी मात्र से अर्जुन के वध की चर्चा करके मन ही मन प्रसन्न हो लो। परंतु वास्त व में युद्ध के द्वारा कोई भी अर्जुन को जीत नहीं सकता। अत: अब तुम कोई और ही मनसूबा बांधो। जो समरागण में अर्जुन को जीत ले, वह मानो अपनी दोनों भुजाओंसे पृथ्वीं को उठा सकता है, कुपित होने पर इस सारी प्रजा को दग्ध कर सकता है तथा देवताओं को भी स्वकर्ग से नीचे गिरा सकता है। लो देख लो, अनायास ही महान् कर्म करने वाले भयंकर वीर महाबाहु कुन्तीैकुमार अर्जुन दूसरे मेरुपर्वत के समान अविचल भाव से खड़े हुए प्रकाशित हो रहे हैं। सदा क्रोध में भरे रहकर दीर्घकाल तक बैर को याद रखने वाले ये अमर्षशील पराक्रमी भीमसेन विजय की अभिलाषा लेकर युद्ध के लिये खड़े हैं। शत्रुनगररी पर विजय पाने वाले, ये धर्मात्मायओं में श्रेष्ठ। धर्मराज युधिष्ठिर भी युद्ध भूमि में खड़े हैं। शत्रुओं के लिये इन्हेंे पराजित करना आसान नहीं है। ये अश्विनी कुमारों के समान सुन्दर दोनों भाई पुरुष प्रवर नकुल और सहदेव भी युद्ध स्थ8ल में खड़े हैं। इन्हें पराजित करना अत्यदन्त कठिन है । ये द्रौपदी के पांचों पुत्र पांच पर्वतों के समान अविचल भाव से युद्ध के लिये खड़े हैं। रणभूमि में ये सब के सब अर्जुन के समान पराक्रमी हैं। ये समृद्धिशाली, सत्ययविजयी तथा परम बलवान् द्रुपद पुत्र धृष्टरद्युम्न् आदि वीर युद्ध के लिये डटे हुए हैं। वह सामने सात्वमतवंश के श्रेष्ठद वीर सात्यपकि, जो शत्रुओं के लिये इन्द्रु के समान असह्य हैं, क्रोध भरे हुए यमराज के समान युद्ध की इच्छाप लेकर सामने से हम लोगों की और आ रहे हैं। राजन् वे दोनों पुरुषसिंह शल्यध और कर्ण इस प्रकार बातें कर ही रहे थे कि कौरव और पाण्डिव की दोनों सेनाएं गंगा और यमुना के समान एक दूसरी से वेग पुर्वक जा मिली।
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