महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 49 श्लोक 40-49
एकोनपञ्चाशत्तम (49) अध्याय: कर्ण पर्व
महाराज। तब सम्पूर्ण सृंजयों और पाण्डयवों के सैकड़ों हजारों महारथियों ने महाधनुर्धर कर्ण पर बाणों की वर्षा करते हुए उसे चारों ओर से घेर लिया ।। महाधनुर्धर महामना कर्ण ने हंसकर महान् अस्त्रों का संधान किया और अपने बाणों से महाराज युधिष्ठिर का धनुष काट दिया। तत्प श्चात् पलक मारते-मारते झुकी हुई गांठवाले नब्बे बाणों का संधान करके कर्ण ने उन पैन बाणों द्वारा रणभूमि में राजा युधिष्ठिर के कवच को छिन्न-भिन्न कर डाला। उनका वह सुवर्णभूषित रत्नेजटित कवच गिरते समय ऐसी शोभा पा रहा था, मानो सूर्य से सटा हुआ बिजली सहित बादल वायु का आघात पाकर नीचे गिर रहा हो । जैसे रात्रि में बिना बादल का आकाश नक्षत्रमण्ड ल से विचित्र शोभा धारण करता है, उसी प्रकार नरेन्द्रर युधिष्ठरर के शरीर से गिरा हुआ वह कवच विचित्र रत्नों से अलंकृत होने के कारण अभ्दुपत शोभा पा रहा था। बाणों से कवच कट जाने पर कुन्तीवपुत्र युधिष्ठिर रक्त से भीग गये। उस समय युद्धस्थाल में पुरुष श्रेष्ठक युधिष्ठिर उगते हुए सूर्य के समान लाल दिखायी देते थे। उनके सारे अंगों में बाण धंसे हुए थे और कवच छिन्न-भिन्न हो गया था, तो भी वे क्षत्रिय धर्म का आश्रय लेकर वहां सिंह के समान दहाड़ रहे थे। उन्होंषने अधिरथपुत्र कर्ण पर सम्पूवर्णत: लोहे की बनी हुई शक्ति चलायी, परंतु उसने सात बाणों द्वारा उस प्रज्व लित शक्ति को आकाश में ही काट डाला। महाधनुर्धर कर्ण के सायकों से कटी हुई वह शक्ति पृथ्वी पर गिर पड़ी। तत्प्श्चात् युधिष्ठिर ने कर्ण की दोनों भुजाओं, ललाट और छाती में चार तोमरों का प्रहार करके सानन्द सिंहनाद किया। कर्ण के शरीर से रक्त बहने लगा।। फिर तो क्रोध में भरे हुए सर्प के समान फुफकारते हुए कर्ण ने एक भल्ल से युधिष्ठिर की ध्वगजा काट डाली और तीन बाणों से उन पाण्डुुपुत्र को भी घायल कर दिया। उनके दोनों तरकस काट दिये और रथ के भी तिल-तिल करके टुकड़े-टुकड़े कर डाले।
भारत। इसी बीच में शूरवीर पाण्ड व महारथी राधापुत्र कर्ण पर बाणों की वर्षा करने लगे।। महाराज। सात्य किने शत्रुसूदन राधापुत्र पर पचीस और शिखरखण्डीर ने नौ बाणों की वर्षा की। राजन्। तब क्रोध में भरे हुए कर्ण ने समरागण में सात्यसकि को पहले लोहे के बने हुए पांच बाणों से घायल करके फिर दूसरे तीन बाणों द्वारा उन्हें बींध डाला।। इसके बाद कर्ण ने सात्याकि की दाहिनी भुजा को तीन, बायीं भुजा को सोलह और सारथि को सात बाणों से क्षत-विक्षत कर दिया।। तदनन्तोर चार पैने बाणों से सूतपुत्र ने सात्यिकि के चारों घोड़ों को भी तुरंत ही यमलोक पहुंचा दिया।। फिर दूसरे भल्ल से महारथी कर्ण ने उनका धनुष काटकर उनके सारथि के शिरस्त्रा सहित मस्तलक को शरीर से अलग कर दिया।। जिसके घोड़े और सारथि मारे गये थे, उसी रथ पर खड़े हुए शिनिप्रवर सात्येकिने कर्ण के ऊपर वैदूर्यमणि से विभूषित शक्ति चलायी।। भारत। धनुर्धरों में श्रेष्ठत कर्ण ने अपने ऊपर आती हुई उस शक्ति के सहसा दो टुकड़े कर डाले और उन सब महारथियों को आगे बढ़ने से रोक दिया, फिर अमेय आत्मकबल से सम्पकन्न कर्ण ने अपनी शिक्षा और बल के प्रभाव से तीखे बाणों द्वारा उन सभी पाण्ड व-महारथियों की गति अवरुद्ध कर दी।। जैसे सिंह छोटे मृगों को पीड़ा देता है, उसी प्रकार राधापुत्र कर्ण ने उन महारथियों बाणों को बाणों से पीडित करके झुकी हुई गांठवाले तीखे बाणों से चोट पहुंचाते हुए वहां धर्मराज धर्मपुत्र युधिष्ठिर पर पुन: आक्रमण किया।। उस समय दांतों के समान सफेद रंग और काली पूंछवाले जो घोड़ युधिष्ठिर की सवारी में थे, उन्हींं से जुते हुए दूसरे रथ पर बैठकर राजा युधिष्ठवर रण-भूमि से विमुख हो शिबिर की ओर चल दिये। युधिष्ठिर का पृष्ठ रक्षक पहले ही मार दिया गया था। उनका मन बहुत दुखी था, इसलिये वे कर्ण के सामने ठहर न सके और युद्धस्थ ल से हट गये।
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