महाभारत कर्ण पर्व अध्याय 51 श्लोक 64-79

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एकपञ्चाशत्तम (51) अध्याय: कर्ण पर्व

महाभारत: कर्ण पर्व: एकपञ्चाशत्तम अध्याय: श्लोक 64-79 का हिन्दी अनुवाद

कर्ण सात्यतकि के बाणों से अत्यन्त पीडित होने पर भी भीमसेन का सामना करने के लिये डटा रहा। वे दोनों ही सम्पू र्ण धनुर्धरों में श्रेष्ठ एवं मनस्वी वीर थे और एक दूसरे से भिड़कर चमकीले बाणों की वर्षा करते हुए बड़ी शोभा पा रहे थे। राजेन्द्र । उन दोनों ने आकाश में बाणों का भयंकर जाल सा बिछा दिया, जो क्रौच्च पक्षी के पृष्ठिभाग के समान लाल और भयानक दिखायी देता था। राजन्। वहां छूटे हुए सहस्त्रों बाणों से न तो सूर्य की प्रभा दिखायी देती थी, न दिशाएं और न विदिशाएं ही दृष्ठिगोचर होती थीं। हम या हमारे शत्रु भी पहचाने नहीं जाते थे। नरेश्वृर। कर्ण और भीमसेन के बाण समूहों से मध्यानह्र काल में तपते हुए सूर्य की सारी प्रचण्डऔ किरणें भी फीकी पड़ गयी थीं। उस समय शकुनि, कृतवर्मा, अश्वत्थाणमा, कर्ण और कृपाचार्य को पाण्डकवों के साथ जूझते देख भागे हुए कौरव सैनिक फिर लौट आये प्रजानाथ। उस समय उनके आने से बड़ा भारी कोला हल होने लगा, मानो वर्षा से बढ़े हुए समुद्रों की भयानक गर्जना हो रही हो। उस महासमर में दूसरी से उलझी हुई दोनों सेनाएं परस्पर दृष्टिपात करके बड़े हर्ष और उत्सा।ह के साथ युद्ध करने लगीं।
तदनन्तरर सूर्य के मध्यारह्र की वेला में आ जाने पर अत्यतन्तस घोर युद्ध आरम्भं हुआ। वैसा न तो पहले कभी देखा गया था और न सुनने में ही आया था । जैसे जल का प्रवाह वेग के साथ समुद्र में जाकर मिलता है, उसी प्रकार रणभूमि में एक सैन्य समुदाय दूसरे सैन्य समुदाय से सहसा जा मिला और परस्प र टकराने वाले बाणसमूहों का महान् शब्द उसी प्रकार प्रकट होने लगा, जैसे गरजते हुए सागर समुदायों का गम्भीवर नाद प्रकट हो रहा है। जैसे दो नदियां परस्पएर संगम होने पर एक हो जाती हैं, उसी प्रकार वे वेगवती सेनाएं परस्पर मिलकर एकी भाव को प्राप्त हो गयीं। प्रजानाथ । फिर महान् यश पाने की इच्छा वाले कौरवों और पाण्डवों में घोर युद्ध आरम्भ। हो गया। भरतवंशी नरेश। उस समय नाम ले लेकर गरजते हुए शूरवीरों की भांति-भांति की बातें अविच्छिन्न रुप से सुनायी पड़ती थीं। रणभूमि में जिसकी जो कुछ पिता-माता, कर्म अथवा शील स्वुभाव के कारण विशेषता थी, वह युद्धस्थकल में उसको सुनाता था। राजन्। समरागड़ण में एक दूसरे को डांट बताते हुए उन शूरवीरों को देखकर मेरे मन में यह विचार उठता था कि अब इनका जीवन नहीं रहेगा। क्रोध में भरे हुए उन अमिततेजस्वीर वीरों के शरीर देख कर मुझे बड़ा भारी भय होता था कि यह युद्ध कैसा होगा। राजन्। तदनन्तर पाण्डव और कौरव महारथी तीखे बाणों से प्रहार करते हुए एक दूसरे को क्षत-विक्षत करने लगे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत कर्णपर्व में संकुलयुद्धविषयक इक्यावनवां अध्याय पूरा हुआ


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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