महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 10 श्लोक 63-77
दशम (10) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)
जो द्रुपदकी गोद में पला हुआ था और शस्त्रो द्वारा सुरक्षित था, अस्त्रवेताओं में श्रेष्ठ उस शिखण्डी पुत्र को द्रोणाचार्य के पास आने से किन वीरों ने रोका ? । जैसे चमड़े को अंगों में लपेट लिया जाता है, उसी प्रकार जिन्होंने अपने रथ के महान् घोष द्वारा इस सारी पृथ्वी को व्याप्त कर लिया था, जो प्रधान-प्रधान शत्रुओं का वध करने वाले और महारथी वीर थे, जिन्होंने प्रजाका पुत्रकी भॉति पालन करते हुए सुन्दर अन्न, पान तथा प्रचुर दक्षिणा से युक्त एवं विध्नरहित दस अश्वमेध यज्ञोंका अनुष्ठान किया और कितने ही सर्वमेघ यज्ञ सम्पन्न किये, वे राजा उशीनर के वीर पुत्र सर्वत्र विख्यात है, गगाजी के स्त्रोत में जितने सिकता कण बहते हैं, उतनी ही अर्थात असंख्य गौऍ उशीनरकुमार ने अपने यज्ञमें ब्राह्माणों को दी थी । राजा जब उस दुष्कर यज्ञका पूर्ण कर चुके, तब सम्पूर्ण देवताओं ने यह पुकार-पुकारकर कहा कि ऐसा यज्ञ पहले के और बाद के भी मनुष्यों ने कभी नहीं किया था । स्थावर जंगमरूप तीनों लोकों मे एकमात्र उशीनरपौत्र शैव्य को छोड़कर दूसरे किसी ऐसे राजाको न तो हम इस समय उत्पन्न हुआ देखते हैं और न भविष्य में किसी के उत्पन्न होने का लक्षण ही देख पाते हैं, जो इस महान् भारको वहन करने वाला हो । इस मर्त्यलोक के निवासी मनुष्य उनकी गति को नहीं पा सकेंगे । उन्हीं उशीनर का पौत्र शैब्य सावधान हो जब द्रोणाचार्य के सम्मुख आ रहा था, उस समय मॅुह फैलाये हुए कालके समान उस वीर को किसने रोका ? । शत्रुघाती मत्स्यराज विराट की रथ सेना को, जो द्रोणाचार्य को नष्ट करने की इच्छा से खोजती हुई आ रही थी, किन वीरोंने रोका था ? । जो भीमसेन से तत्काल प्रकट हुआ तथा जिससे मुझे महान् भय बना रहता है, वह महान् बल और पराक्रमसे सम्पन्न मायावी राक्षस वीर घटोत्कच कुन्तीकुमारों की विजय चाहता है और मेरे पुत्रों के लिये कंटक बना हुआ है, उस महाकाय घटोत्कच को द्रोणाचार्य के पास आने से किसने रोका ? । संजय ! ये तथा और भी बहुतसे वीर जिनके लिये युद्ध में प्राण त्याग करने को तैयार हैं, उनके लिये कौनसी ऐसी वस्तु होगी, जो जीती न जा सके । शार्गधनुष धारण करने वाले पुरुषसिंह भगवान श्रीकृष्ण जिनके आश्रय तथा हित चाहनेवाले हैं, उन कुन्तीकुमारों की पराजय कैसे हो सकती है ? भगवान श्रीकृष्ण सम्पूर्ण जगत् के परम गुरू हैं, समस्त लोकोंके सनातन स्वामी हैं, संग्रामभूमि में सबकी रक्षा करने वाले दिव्य स्वरूप, सामर्थ्यशाली, दिव्य नारायण हैं ।मनीषी पुरुष जिनके दिव्य कर्मो का वर्णन करते हैं, उन्हीं भगवान श्रीकृष्णकी लीलाओं का अपने मन की स्थिरता के लिये भक्तिपूर्वक वर्णन करूँगा ।
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