महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 112 श्लोक 19-38

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द्वादशाधिकशततम (112) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: द्वादशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 19-38 का हिन्दी अनुवाद


‘राजन् ! आप जिन सहस्‍त्रों, रथियों को देख रहे हैं, ये रुक्‍मरथ नामवाले महारथी राजकुमार हैं। प्रजानाथ ! ये रथों, अस्‍त्रों और हाथियों के संचालन में भी निपुण हैं। ‘ये सब-के-सब धनुर्वेद के पारंगत विद्वान् हैं। सृष्टि-युद्ध में भी निपुण है, महायुद्ध के विशेषत्र हैं और मल्‍लयुद्ध में भी कुशल है। ‘तलवार चलाने का भी इन्‍हें अच्‍छा अभ्‍यास है। ये ढाल, तलवार लेकर विचरने में समर्थ हैं। शूर और अस्‍त्र–शस्‍त्रों के विद्वान् होने के साथ ही परस्‍पर स्‍पर्धा रखते हैं।। ‘नरेश्‍वर ! ये सदा समरभूमि में मनुष्‍यों को जीतने की इच्‍छा रखते हैं। महाराज ! कर्ण ने इन्‍हें दु:शासन का अनुगामी बना रक्‍खा है। ‘भगवान् श्रीकृष्‍ण भी इन सब श्रेष्‍ठ महारथियों की प्रंशसा करते हैं, ये सब-के-सब कर्ण के वश में स्थित हैं और सदा उसका प्रिय करने की अभिलाषा रखते हैं। ‘राजन् ! कर्ण के ही कहने से ये अर्जुन की ओर से इधर लौट आये हैं । इनके कवच और धनुष अत्‍यन्‍त सुद्दढ़ हैं।वे न तो थके हैं और न पीड़ित ही हुआ हैं। ‘दुर्योधन के आदेश से ही निश्‍चय ही मुझसे युद्ध करने के लिये खड़े हैं। कुरुनन्‍दन ! मैं आपका प्रिय करने के लिये इन सब को संग्राम में मथ कर सव्‍यसाची अर्जुन के मार्ग पर जाउंगा।। ‘महाराज ! जिन दूसरे इन सात सौ हाथियों को आप देख रहे हैं, जो कवच से आच्‍छादित हैं और जिन पर किरात योद्धा चढ़े हुए हैं, ये वे ही हाथी हैं, जिन्‍हें दिग्विजय के समय अपने प्राण बचानेकी इच्‍छा रखकर किरातराज ने सव्‍यसाची अर्जुन को भेंट किया था। ये सजे-सजाये हाथी उन दिनों आपके सेवक थे। ‘महाराज ! यह काल चक्र का परिवर्तन तो देखिये-जो पूर्वकाल में द्दढ़तापूर्वक आपकी सेवा करनेवाले थें, वे आज आपसे ही युद्ध करना चाहते हैं । ‘ये रण दुर्भद किरात इन हाथियों के महावत और इन्‍हें शिक्षा देने में कुशल है। ये सब-के-सब अग्नि से उत्‍पन्‍न हुए हैं। सव्‍यसाची अर्जुन ने इन सबको संग्रामभूमि में पराजित कर दिया था। ‘राजन् ! आज दुर्योधन के वशीभूत होकर ये मेरे साथ यु्द्ध करने को तैयार है।इन रण-दुर्भद किरातों का अपने बाणों द्वारा संहार करके मैं सिधुराज के वध के प्रयत्‍न में लगे हुए पाण्‍डुनन्‍दन अर्जुन के पास जाउंगा।‘ ये जो बड़े गजराज द्दष्टिगोचर हो रहे हैं, ये अञ्जन-नामक दिग्‍गज के कुल में उत्‍पन्‍न हुए हैं[1]इनका स्‍वभाव बड़ा ही कठोर हैं। इन्‍हें युद्ध की अच्‍छी शिक्षा मिली हैं। इनके मण्‍डस्‍थल और मुख से मद की धारा बहती रहती है। वे सब-के-सब सुवर्णमय कवचों से विभूषित है। राजन् ! ये पहले भी युद्ध स्‍थल में अपने लक्ष्‍य पर विजय पा चुके हैं और समरागण में ऐरावत के समान पराक्रम प्रकट करते हैं । उतर पर्वत(हिमाचल प्रदेश) से आये हुए तीखे स्‍वभाव-वाले लुटेरे और डाकू इन हाथियों पर सवार हैं। ‘वे कर्कश स्‍वभाववाले तथा श्रेष्‍ठ योद्धा हैं। उन्‍हेांने काले लोहे के बने हुए कवच धारण कर रक्‍खें हैं। उनमें से बहुत-से दस्‍यु गायों के पेट से उत्‍पन्‍न हुए हैं। कितने ही बंदरियों की संताने हैं।कुछ ऐसे भी हैं, जिनमें अनेक योनियों का सम्मिश्रण हैं त‍था कितने ही मानव संतान भी हैं।। ‘यहां एकत्र हुए हिमदुर्ग निवासी पापाचारी ग्‍लेच्‍छोंकी यह सेना धुएं के समान काली प्रतीत होती है।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. अञ्जन के कुल मे उत्‍पन्‍न हुए हाथियों का लक्षण इस प्रकार बतलाया गया है-

    स्त्रिग्‍धनीलाम्‍बुदप्रख्‍या बलिनो विपुलै: करै: ।सुविभक्‍तमहाशीर्षा करिणोअञ्जनवंशजा:

    ‘स्मिग्‍ध एवं नील-वर्ण के मेघों की घटा के समान काले,

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