महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 116 श्लोक 27-46

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षोडशाधिकशततम (116) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: षोडशाधिकशततम अध्याय: श्लोक 27-46 का हिन्दी अनुवाद

वह अपने श्रेष्ठ धनुषको कँपाता, घोड़ोंको हाँकता और ‘आगे बढ़ो, जल्दी चलो’ कहकर सारथी को फटकारता हुआ वहाँ आया । महाराज ! मुँह बाये हुए कालके समान कृतवर्माको वहाँ आते देख युयुधानने अपने सारथिसे कहा- ‘सूत, यह कृतवर्मा बाण लेकर रथके द्वारा तीव्र वेगसे आ रहा है । यह संपूर्ण धनुर्धरोंमें श्रेष्‍ठ है । तुम रथके द्वारा इसकी अगवानी करो’। तदन्‍तर सात्यकि विधिपूर्वक सजाये गए तेज घोड़ों-वाले रथ के द्वारा रणभूमिमें धनुर्धरोंके आदर्शभूत कृतवर्माके पास जा पहुँचे । तत्पश्चात् प्रज्वलित पावक और वेगशाली व्याघ्रोंके समान वे दोनों नरश्रेष्ठ वीर अत्यंत कुपित हो एक दूसरेसे भिड़ गए । कृतवर्माने सात्यकिपर तेजधारवाले छब्बीस तीखे बाण चलाये और पाँच बाणोंद्वारा उनके सारथी को भी घायल कर दिया । इसके बाद चार उताम बाण मारकर उसने सात्यकिके सुशिक्षित एवं विनीत चारों सिंघी घोड़ोंको भी बींध डाला । तदनंतर सोने के केयूर और सोनेके ही कवच धारण करनेवाले सुवर्णमय ध्वजासे सुशोभित कृतवर्माने सोनेकी पीठवाले अपने विशाल धनुषकी टंकार करके स्वर्णमय पंखवाले बाणोंसे सात्यकिको आगे बढ़नेसे रोक दिया । तब शिनीपौत्र सात्यकिने बड़ी उतावलीके साथ मनमें अर्जुनके दर्शनकी कामना लिए वहाँ कृतवर्माको अस्सी बाण मारे । शत्रुओंको संताप देनेवाला दुर्धर्ष वीर कृतवर्मा अपने बलवान शत्रु सात्यकिके द्वारा अत्यंत घायल होकर उसी प्रकार काँपने लगा, जैसे भूकम्प के समय पर्वत हिलने लगता है। तत्पश्चात् सत्यापराक्रमी सात्यकिने तिरसठ बाणोंसे उसके चारों घोड़ोंको और सात तीखे बाणोंसे उसके सारथी को भी शीघ्र ही क्षत-विक्षत कर दिया ।अब सात्यकिने अपने धनुषपर सुवर्णमय पंखवाले अत्यंत तेजस्वी बाणका संधान किया, जो क्रोधमें भरे हुए सर्पके समान प्रतीत होता था । उस बाणको उन्होंने कृतवर्मापर छोड़ दिया । सात्यकिका वह बाण यमदण्ड के समान भयंकर था । उसने कृतवर्माके सुवर्णजटित चमकीले कवचको छिन्न-भिन्न करके उसे गहरी चोट पहुंचायी तथा खून से लथपथ होकर वह धरतीमें समा गया । युद्धस्थलमें सात्यकिके बाणोंसे पीड़ित हो कृतवर्मा खूनकी धारा बहाता हुआ धनुष-बाण छोडकर उस उत्तम रथसे उसके पिछले भागमें गिर पड़ा । सिंहके समान दांतोंवाला अमितपराक्रमी नरश्रेस्थ कृतवर्मा सात्यकिके बाणों से पीड़ित हो घुटनोंके बलसे रथकी बैठकमें गिर गया । सहस्त्रबाहु अर्जुन के समान दुर्जय तथा महासागरके समान अक्षोभ्य कृतवर्माको इस प्रकार पराजित करके सात्यकि वहाँसे आगे बढ़ गए । जैसे वृत्रनाशक इन्द्र असुरोंकी सेनाको लांघकर जा रहे हों, उसी प्रकार शिनिप्रवर सात्यकि संपूर्ण सैनिकोंके देखते-देखते उनके बीचसे होकर उस सेनाका परित्याग करके चल दिये । उस कौरवसेनामें सैकड़ों क्षत्रीयशिरोमणियोंने भयानक रक्तकी धारा बहा दी थी । वहाँ हाथी, घोड़े तथा रथ खचाखच भरे हुए थे और खड़ग, शक्ति एवं धनुष सब ओर व्याप्त थे । उधर बलवान कृतवर्मा आश्वस्त होकर दूसरा विशाल धनुष हाथमें लेकर युद्धस्थलमें पांडवोंका सामना करता हुआ वहीं खड़ा रहा ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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