महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 15 श्लोक 20-37
पचदश (15) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)
इसी प्रकार भीमसेन ने शत्रु को लक्ष्य करके जो गदा चलायी थी, वह आकाश से गिरती हुई बड़ी भारी उल्का के समान कौरव सेना को संतप्त करने लगी । वे दोनो गदाऍ गदाधारियों में श्रेष्ठ भीमसेन और शल्य को पाकर परस्पर टकराती हुई फुफकारती नागकन्याओं की भॉति अग्नि की तृष्टि करती थीं । जैसे दो बड़े व्याध्रपंजो से और दो विशाल हाथी दॉतो से आपस में प्रहार करते हैं, उसी प्रकार भीमसेन और शल्य गदाओं के अग्रभाग से एक-दूसरे पर प्रहार करते हुए विचर रहे थे । एक ही क्षण में गदा के अग्रभाग से घायल होकर वे दोनों महामनस्वी वीर खून से लथपथ हो फूलों से भरे हुए दो पलाश वृक्षों के समान दिखायी देने लगे । उन दोनो पुरुषसिंहो की गदाओं के टकराने का शब्द इन्द्र के वज्र की गड़गड़ाहट के समान सम्पूर्ण दिशाओं मे सुनायी देता था । उस समय मद्रराज की गदा से बायें-दायें चोट खाकर भी भीमसेन विचलित नहीं हुए । जैसे पर्वत वज्र का आघात सहकर भी अविचल भाव से खड़ा रहता है । इसी प्रकार भीमसेन की गदा के वेग से आहत होकर महाबली मद्रराज वज्राघात से पीडित पर्वतक की भॉति धैर्यपूर्वक खड़े रहे । वे दोनो महावेगशाली वीर गदा उठाये एक-दूसरे पर टूट पड़े । फिर अन्तमार्ग में स्थित हो मण्डलाकार गति से विचरने लगे । तत्पश्चात् आठ पग चलकर दोनो दो हाथियों की भॉति परस्पपर टूट पड़े और सहसा लोहे के डंडो से एक-दूसरे को मारने लगे । वे दोनो वीर परस्पर के वेग से और गदाओ द्वारा अत्यन्त घायल हो दो इन्द्रध्वजों के समान एक ही समय पृथ्वीपर गिर पड़े । उस समय शल्य अत्यन्त विह्रल होकर बारबार लम्बी सॉस खीच रहे थे । इतने मे ही महारथी कृतवर्मा तुरंत राजा शल्य के पास आ पहॅुचा । महाराज ! आकर उसने देखा कि राजा शल्य गदा से पीडित एवं मूर्च्छा से अचेत हो आहत हुए नागकी भॉति छटपटा रहे हैं । यह देख महारथी कृतवर्मा मद्रराज शल्य को अपने रथपर बिठाकर तुरंत ही रणभूमि से बाहर हटा ले गया । तदनन्तर महाबाहु वीर भीमसेन भी मदोन्मत की भॉति विह्रल हो पलक मारते-मारते उठकर खड़े हो गये और हाथ में गदा लिये दिखाये देने लगे । आर्य ! उस समय मद्रराज शल्य को युद्ध मे विमुख हुआ देख हाथी, घोड़े, रथ और पैदल सेनाओं सहित आपके सारे पुत्र भय से कॉप उठे । विजय से सुशोभित होने वाले पाण्डवों द्वारा पीडित हो आपके सभी सैनिक भयभीत हो हवा के उड़ाये हुए बादलों की भॉति चारो दिशाओं मे भाग गये । राजन ! इस प्रकार आपके पुत्रों को जीतकर महारथी पाण्डव प्रज्वलित अग्नियों की भॉति रणक्षेत्र में प्रकाशित होने लगे । उन्होने हर्षित होकर बारंबार सिंहनाद किये और बहुत से शंख बजाये; साथ ही उन्होंने भेरी, मृदग और आनक आदि वाधों को भी बजाया ।
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