महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 36 श्लोक 23-46

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षट्च्‍चत्रिश (36) अध्याय: द्रोण पर्व ( द्रोणाभिषेक पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: षट्च्‍चत्रिश अध्याय: श्लोक 23-46का हिन्दी अनुवाद

महाराज ! अर्जुनकुमार अभिमन्‍यु ने आपके सहस्‍त्रों सैनिकों की उन भुजाओं को तुरंत काट डाला, जिनमें मनोहर सुगन्‍धयुक्‍त चन्‍दन का लेप लगा हुआ था । वीरों की उन भुजाओं मे गोह के चमड़े से बने हुए दस्‍ताने बॅधे हुए थे । धनुष और बाण शोभा पाते थे । किन्‍ही भुजाओं में ढाल, तलवार, अकुश और बागडोर दिखायी देती थीं । किन्‍ही में गोलियॉ, प्रास, ऋष्टि, तोमर, पटिश, भिन्दिपाल, परिघ, श्रेष्‍ठ शक्ति, कम्‍पन, प्रतोद, महाशंख और कुन्‍त दृष्टिगोचर हो रहे थे । किन्‍ही में मुद्रर फेंकने योग्‍य अन्‍यान्‍य अस्‍त्र, पाश, परिघ तथा प्रस्‍तरखण्‍ड दिखायी देते थे । वीरों की वे सभी भुजाऍ केयूर और अगद आदि आभूषणों से विभूषित थी । आदरणीय महाराज ! खून से लथपथ होकर तड़पती हुई उन भुजाओं से इस पृथ्‍वी की वैसी ही शोभा हो रही थी, जैसे गरूड़ के द्वारा छिन्‍न-भिन्‍न किये हुए पाँच मुखवाले सर्पों के शरीरों से आच्‍छादित हुई वसुधा सुशोभित होती है । जिनमें सुन्‍दर नासिका, सुन्‍दर मुख और सुन्‍दर केशान्‍त भाग की अदभूत शोभा हो रही थी, जिनमें फोड़े-फुंसी या घाव के चिन्‍ह नही थे, जो मनोहर कुण्‍डलों से प्रकाशित हो रहे थे, जिनके ओष्‍ठपुट क्रोध के कारण दॉतों तले दबे हुए थे, जो अधिकाधिक रक्‍त की धारा बहा रहे थे, जिनके ऊपर रत्‍नमय आभूषणों से विभूषित थे, जिनकी प्रभा सूर्य और चन्‍द्रमा के समान जान पड़ती थी, जो बिना नाल के प्रफुल्‍ल कमल के समान प्रतीत होते थे, जिनकी संख्‍या बहुत अधिक थी तथा जो पवित्र सुगन्‍ध से सुवासित थे, शत्रुओं के उन मस्‍तकों द्वारा अभिमन्‍यु वहां की सारी पृथ्‍वी को पाट दिया । इसी प्रकार अभिमन्‍यु अपने बाणों से शत्रुओं के गन्‍धर्वनगर के समान विशाल तथा विधिपूर्वक सुसज्जित बहुसंख्‍यक रथों के टुकड़े-टुकड़े करता हुआ सम्‍पूर्ण दिशाओं में दृष्टिगोचर हो रहा था । उन रथों के प्रधान ईषादण्‍ड नष्‍ट हो गये थे । उनके बन्‍धन टूट गये थे । स्‍तम्‍भदण्‍ड उखड़ गये थे । उसके बन्‍धन टूट गये थे । जघा (नीचे का स्‍थान) और कूबर (जूए का आधारभूत काष्‍ठ) टूट फूट गये थे । पहियों के ऊपरी भाग और अरे चौपट कर दिये गये थे । पहियें, रथ की सजावट के समान और बैठकें नष्‍ट भष्‍ट हो गयी थी । सारी सामग्री तथा रथ के अवयव चूर-चूर हो गये थे । रथ की छतरी और आवरण को गिरा दिया गया था तथा उन रथों के समस्‍त योद्धा मार डाले गये थे । इस तरह सहस्‍त्रों रथों की धज्जियॉ उड़ गयी थी । रथों का संहार करके अभिमन्‍यु ने पुन: तीखी धार वाले बाणों द्वारा शत्रुओं के हाथियों, गजारोहियों, उनके झंडो, अकुशों, ध्‍वजाओं, तूणीरों, कवचों, रस्‍सों, कण्‍डाभूषणों, झूलों, घंटो, सॅूडों, दॉतो, छत्रों, मालाओं और पादरक्षकों को भी काट डाला । राजन् ! आपके वनायुज, पर्वतीय, काम्‍बोज तथा बाह्रिक देशीय श्रेष्‍ठ घोड़ों को, जो पॅूछ,कान और नेत्रों को निश्‍चल करे दौड़ने वाले, वेगवान और अच्‍छी तरह सवारी का काम देने वाले थे तथा ‍जिनके ऊपर शक्ति, ऋष्टि एवं प्रास द्वारा युद्ध करने वाले सुशिक्षित योद्धा सवार थे, धराशायी करता हुआ अकेला वीर अभिमन्‍यु एकमात्र भगवान विष्‍णु की भॉति अचिन्‍त्‍य एवं दुष्‍कर कर्म करके बड़ी शोभा पा रहा था । उन घोड़ों के मस्‍तक और गर्दन के चॅवर के समान बड़े-बड़े बाल और मुख बाणोंके आघात से नष्‍ट हो गये थे । वे सब के सब घायल हो गये थे । कितने ही अश्‍वों के सिर छिन्‍न-भिन्‍न होकर बिखर गये थे । कितनों की जिह्रा और नेत्र बाहर निकल आये थे । ऑत और जिगर के टुकड़े-टुकड़े हो गये थे । उन सबके सवार मार डाले गये थे । उनके गले के घॅुघुरू कटकर गिर गये थे । वे घोड़ें मृत्‍यु के अधीन होकर मांसभक्षी प्राणियों का हर्ष बढ़ा रहे थे । उनके चमड़े और कवच टूक-टूक हो गये थे और वे मल-मूत्र तथा रक्‍त में डूबे हुए थे । जैसे महान् तेज्‍स्‍वी त्रिनेत्रधारी भगवान रूद्रने असुरों की सेना को मथ डाला था, उसी प्रकार अभिमन्‍यु ने रथ, हाथी और घोड़े– इन तीन अंगों से युक्‍त आपकी विशाल सेना को रौद डाला। इस प्रकार अर्जुनकुमार अभिमन्‍यु ने रणक्षेत्र में शत्रुओं के लिये असह्रा पराक्रम करके आपके पैदल योद्धाओं के समूहों का सभी प्रकार से विनाश करना आरम्‍भ किया । जैसे कार्तिकेय ने असुरों की सेना को नष्‍ट-भष्‍ट कर दिया था, उसी प्रकार एकमात्र सुभद्राकुमार अभिमन्‍यु ने अपने तीखे बाणों द्वारा समस्‍त कौरव सेना को अत्‍यन्‍त छिन्‍न-भिन्‍न कर डाला है; यह देखकर आपके पुत्र और सैनिक भयभीत हो दसों दिशाओं की ओर देखने लगे । उनके मुख सूख गये थे, नेत्र चचल हो उठे थे, सारे अगों मे पसीना हो आया था और उनके रोंगटे खड़े हो गये थे । अब वे भागने में उत्‍साह दिखाने लगे । शत्रुओं को जीतने के लिये उनके मन में तनिक भी उत्‍साह नहीं रह गया था । वे जीवन की इच्‍छा रखकर अपने-अपने सगे सम्‍बन्धियों के गोत्र और नाम का उच्‍चारण करके एक दूसरे के लिये क्रन्‍दन कर रहे थे । उस समय आपके सैनिक इतने डर गये थे कि वहां मारे गये अपने पुत्रों, पितृ-तुल्‍य सम्‍बन्धियों, भाई-बन्‍धुओं तथा नातेदारों को भी छोड़ कर अपने घोड़ों और हाथियों की उतावली के साथ हांकते हुए रणभूमि में पलायन कर गये ।

इस प्रकार श्रीमहाभारतद्रोणपर्व के अन्‍तर्गत अभिमन्‍युवध पर्व में पराक्रम विषयक छत्‍तीसवॉ अध्‍याय पूरा हुआ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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