महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 89 श्लोक 18-32
एकोननवतितम (89) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)
अर्जुन वहां इस प्रकार निरन्तर रथ के मार्गां पर विचरते और धनुष को खींच रहे थे कि उस समय कोई भी उनपर प्रहार करने का थोडा-सा भी अवसर नहीं देख पाता था। पाण्डुपुत्र अर्जुन पूर्ण सावधान हो विजय पाने की चेष्टा करते और शीघ्रतापूर्वक बाण चलाते थे। उस समय उनकी फुर्ती देखकर दूसरे लोगो को बडा़ आश्चर्य होता था। अर्जुन हाथी और महावत को, घोडे़ और धुडसवार को तथा रथी और सारथि को भी अपने बाणों से विदीर्ण कर डाला। जो लौटकर आ रहे थे, जो आ चुके थे, जो युद्ध करते थे और जो सामने खडे़ थे-इनमें से किसी को भी पाण्डुकुमार अर्जुन मारे बिना नहीं छोड़ते थे। जैसे आकाश में उदित हुआ सूर्य महान् अन्धकार को नष्ट कर देता है, उसी प्रकार अर्जुन ने कंक की पाख वाले बाणों द्वारा उस गजसेना का संहार कर डाला। राजन् बाणों से छित्र-भित्र होकर धरती पर पड़े हुए हाथियों से आपकी सेना वैसी ही दिखायी देती थी, जैसे प्रलयकाल में यह पृथ्वी इधर-उधर बिखरे हुए पर्वतों से आच्छादित देखी जाती है।जैसे दोपहर के सूर्य की ओर देखना समस्त प्राणियों के लिये सदा ही कठिन होता है, उसी प्रकार उस युद्धस्थल में कुप्रित हुए अर्जुन की ओर शत्रुलोग बडी कठिनाई से देख पाते थे। शत्रुओं को संताप देने वाले नरेश। इस प्रकार उस युद्ध स्थल में अर्जुन के बाणों से पीडि़त हुई आपके पु़त्र की सेना के पांव उखड़ गये और वह अत्यन्त उद्विग्र हो तुंरत ही वहां से भाग चली।जैसे बडे वेग से उठी हूई वायु बादलों के समूह को छित्र-भित्र कर देती है, उसी प्रकार दुर्मर्षण की सेना का व्यूह टूट गया और वह अर्जून के खदेड़ने पर इसे प्रकार जोर-जोर से भागने लगी कि उसे पीछे फिरकर देखने का भी साहस न हुआ।अर्जुन के बाणों से पीडित हुए आपके पैदल, घुड़सवार और रथी सैनिक चाबुक, धनुष की कोटि , हुंकार, हांकने की सुन्दर कला, कोड़ो के प्रहार, चरणो के आघात तथा भयंकर वाणीद्वारा अपने घोड़ो बडी उतावली के साथ हांकते हुए भाग रहे थे।दूसरे गजारोही सैनिक अपने पैरों के अॅंगूठों और अंकुशो द्वारा हाथियों को हांकते हुए रणभूमि से पलायन कर रहे थें कितने ही योद्धा अर्जुन के बाणों से मोहित होकर उन्हीं के सामने चले जाते थे। उस समय आपके सभी योद्धाओं का उत्साह नष्ट हो गया था और मन में बडी मारी घबराहट पैदा हो गयी थी।
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