महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 99 श्लोक 38-55

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नवनवतितम (99) अध्याय: द्रोण पर्व (जयद्रथवध पर्व)

महाभारत: द्रोण पर्व: नवनवतितम अध्याय: श्लोक 38-55 का हिन्दी अनुवाद

‘माधव । मेरी दृष्टि में इस समय जो कर्तव्‍य है, वह बताता हूं, आप मुझ से सुनिये । घोड़ों को खोलकर इन्‍हें सुख पहुंचाने के लिये इनके शरीर से बाण निकाल दीजिये’। अर्जुन के ऐसा कहने पर भगवान श्री कृष्‍ण ने उन्‍हें इस प्रकार उत्‍तर दिया-‘पार्थ । तुमने इस समय जो बात कही है, यही मुझे भी अभीष्‍ट है,।

अर्जुन बोले-केशव । मैं इन समस्‍त सेनाओं को रोक रक्‍खूंगा । आप भी यहां इस समय करने योग्‍य यथोचित कार्य सम्‍पन्‍न करें ।।40।। संजय कहते हैं- राजन् । अर्जुन बिना किसी घबराहट के रथ की बैठक से उतर पडे़ और गाण्‍डीव धनुष हाथ में लेकर पर्वत के समान अविचल भाव से खडे़ हो गये। धनंजय को धरती पर खड़ा जान ‘यही अवसर है’ ऐसा कहते हुए विजया भिलाषी क्षत्रिय हल्‍ला मचाते हुए उनकी ओर दौडे़। उन सब ने महान् रथ समूह के द्वारा एक मात्र अर्जुन को चारों ओर घेर लिया । वे सब के सब धनुष खींचते और उन के उपर बाणों की वर्षा करते थे। जैसे बादल सूर्य को ढक लेते हैं, उसी प्रकार बाणों द्वारा कुन्‍तीकुमार अर्जुन को आच्‍छादित करते हुए कुपित कौरव सैनिक वहां विचित्र अस्‍त्र-शस्‍त्रों का प्रदर्शन करने लगे। जैसे मतवाले हाथी सिंह पर धावा करते हों, उसी प्रकार वे श्रेष्‍ठ रथी क्षत्रिय क्षत्रिय शिरोमणि नरसिंह अर्जुन पर बडे़ वेग से टूट पडे़ थे। उस समय वहां अर्जुन दोनों भुजाओं का महान् बल देखने में आया । उन्‍होंने कुपित होकर उन विशाल सेनाओं को सब ओर जहां की तहां रोक दिया। शक्तिशाली अर्जुन ने अपने अस्‍त्रों द्वारा शत्रुओं के सम्‍पूर्ण अस्‍त्रों का सब ओर से निवारण करके अपने बहुसंख्‍यक बाणों द्वारा तुरंत उन सबको ही आच्‍छादित कर दिया। प्रजनाथ । वहां अन्‍तरिक्ष में ठसाठस भरे हुए बाणों की रगड़ से भारी लपटों से युक्‍त आग प्रकट हो गयीं। तदनन्‍तर जहां तहां हांफते और खून से लथपथ हुए महाधनुर्धर योद्धाओं, अर्जुन के शत्रुनाशक बाणों द्वारा विदीर्ण हो चीत्‍कार करते हुए हाथियों और घोड़ों तथा युद्ध में विजयी की अभिलाषा लिये रोषावेश में भरकर एक जगह कुपित खड़े हुए बहुतेरे वीर शत्रुओं के जमघट से उस स्‍थान पर गर्मी-सी होने लगी। उस समय अर्जुन ने उस असंख्‍य, अपार, दुर्लड्ध्‍य एवं अक्षोभ्‍य रण समुद्र को सीमावर्ती तटप्रान्‍त के समान होकर अपने बाणों द्वारा रोक दिया । उस रण सागर में बाणों की तरगड़ें उठ रही थीं, फहराते हुए ध्‍वज भौंरों के समान जान पड़ते थे, हाथी ग्राह थे, पैदल सैनिक मत्‍स्‍य और कीचड़ के समान प्रतीत होते थे, शख्‍ड़ों और दुन्‍दुभियों की ध्‍वनि ही उस रण-सिन्‍धु की गम्‍भीर गर्जना थी, रथ उंची-उची लहरों के समान जान पड़ते थे, योद्धाओं की पगड़ी और टोप कछुओं के समान थे छत्र और पताकाएं फेनराशि-सी प्रतीत होती थीं तथा मतवाले हाथियों की लाशें उंचे-उंचे शिलाखण्‍डों के समान उस सैन्‍य सागर को व्‍याप्‍त किये हुए थीं।

धृतराष्‍ट्र ने पुछा –संजय । जब अर्जुन धरती पर आये और भगवान श्री कृष्‍ण ने घोड़ों की विकित्‍सा में हाथ लगाया, तब यह अवसर पाकर मेरे सैनिकों ने कुन्‍तीकुमार का वध क्‍यों नहीं कर डाला।

संजय ने कहा – महाराज् उस समय पार्थ ने पृथ्‍वी पर खडे़ होकर रथ पर बैठे हुए समस्‍त भूपालों को सहसा उसी प्रकार रोक दिया, जैसे वेदावरद्ध वाक्‍य आग्रहा कर दिया जाता।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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