महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 1 श्लोक 20-34
प्रथम (1) अध्याय: भीष्म पर्व (जम्बूखण्डविनिर्माण पर्व)
धरती से धूल उड़कर आकाश में छा गयी। कुछ भी सूझ नहीं पड़ता था। सेना की गदा से सहसा आच्छादित हो जाने के कारण सूर्य अस्त हो गये-से जान पड़ते थे। उस समय वहां मेघ सब दिशाओं में समस्त सैनिकों पर मांस ओर रक्त की वर्षा करने लगे। वह एक अद्भूत सी बात हुई। तदनन्तर वहां नीचे से बालू तथा कंकड़ खीचंकर सब ओर बिखरने वाली बवंडर-सी वायु उठी, जिसने सैकड़ों-हजारों सैनिकों को घायल कर दिया। राजेन्द्र! कुरूक्षेत्र में युद्ध के लिये अत्यन्त हर्षोल्लास में भरी हुई दोनों पक्ष की सेनाएं दो विक्षुब्ध महासागरों के समान एक दूसरे के सम्मुख खड़ी थी। देानों सेनाओं का वह अद्भूत समागम प्रलयकाल आने पर परस्पर मिलने वाले दो समुद्रों के समान जान पड़ता था। कौरवोंद्वारा संग्रह करके वहां लाये हुए उस सैन्यसमूह द्वारा सारी पृथ्वी नवयुवकों से सूनी-सी हो रही थी। सर्वत्र केवल बालक और बूढे़ ही शेष रह गये थे। सारी वसुधा घोडे़, हाथी, रथ और तरूण पुरुषों से हीन-सी हो गयी थी। भरतश्रेष्ठ! तत्पश्चात् कौरव, पाण्डव तथा सोमकों ने परस्पर मिलकर युद्ध के सम्बन्ध में कुछ नियम बनाये। युद्धधर्म की मर्यादा स्थापित की। वे नियम इस प्रकार हैं- चालू युद्ध के बंद होने पर संध्या काल में हम सब लोगों में परस्पर प्रेम बना रहे। उस समय पुन: किसी का किसी के साथ शत्रुतापूर्ण अयोग्य बर्ताव नहीं होना चाहिये।
जो वाग्युद्ध में प्रवृत्त हों उनके साथ वाणी द्वारा ही युद्ध किया जाय। जो सेना से बाहर निकल गये हो उनका वध कदापि न किया जाय। भारत! रथी को रथी से ही युद्ध करना चाहिये, इसी प्रकार हाथीसवार के साथ हाथीसवार, घुड़सवार के साथ घुड़सवार तथा पैदल के साथ पैदल ही युद्ध करे। जिसमें जैसी योग्यता, इच्छा, उत्साह तथा बल हो उसके अनुसार ही विपक्षी को बताकर उसे सावधान करके ही उसके ऊपर प्रहार किया जाय। जो विश्वास करके असावधान हो रहा हो अथवा जो युद्ध से घबराया हुआ हो, उस पर प्रहार करना उचित नहीं हैं। जो एक के साथ युद्ध में लगा हो, शरण में आया हों, पीठ दिखाकर भाग हो और जिसके अस्त्र-शस्त्र और कवच कट गये हों; ऐसे मनुष्य को कदापि न मारा जाय। घोड़ों की सेवा के लिये नियुक्त हुए सूतों, बोझ ढोने वालों, शस्त्र पहुंचान वालों तथा भरी और शङ्ख बजाने वालों पर कोई किसी प्रकार भी प्रहार न करे। इस प्रकार नियम बनाकर कौरव, पाण्डव तथा सोमक एक दूसरे की ओर देखते हुए बडे़ आश्चर्यचकित हुए। तदनन्तर वे महामना पुरुषरत्न अपने-अपने स्थान पर स्थित हो सैनिकोसहित प्रसन्नचित्त होकर हर्ष एवं उत्साह से भर गये।
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