महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 3 श्लोक 18-31

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तृतीय (3) अध्याय: भीष्म पर्व (जम्बूखण्‍डविनिर्माण पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: तृतीय अध्याय: श्लोक 18-31 का हिन्दी अनुवाद

अग्नि के समान कान्तिमान् मङ्गल ग्रह (जिसकी स्थिति मघा नक्षत्र में बतायी गयी है) बारंबार वक्र होकर ब्रह्मराशि (बृहस्पति से युक्त नक्षत्र) श्रवण को पूर्णरूप से आवृत करके स्थित हैं। (इसका प्रभाव खेतीपर अनुकूल पड़ा है) पृथ्‍वी सब प्रकार के अनाज के पौधों से आच्छादित है, शस्य की मालाओं से अलंकृत है, जौ में पांच-पांच और जड़हन धान में सौ-सौ बालियां लग रही हैं। जो सम्पूर्ण जगत् में माता के समान प्रधान मानी जाती हैं, यह समस्त संसार जिनके अधीन हैं, वे गौएं बछड़ों से पिन्हा जाने के बाद अपने थनों से खून बहाती हैं। योद्धाओं के धनुष से आग की लपटें निकलने लगी हैं, खङ्ग अत्यन्त प्रज्वलित हो उठे हैं मानो सम्पूर्ण शस्त्र स्पष्‍ट रूप से यह देख रहे हैं कि संग्राम उपस्थित हो गया है। शस्‍त्रों की, जल की, कवचों की और ध्‍वजाओं की कान्तियां अग्रि के समान लाल हो गयी हैं; अत: निश्र्चय ही महान् जन-संहार होगा। राजन्! भरतनंदन! जब पाण्‍डवों के साथ कौरवों का हिंसात्‍मक संग्राम आरम्‍भ हो जायगा, उस समय धरती पर रक्‍त की नदियां बह चलेंगी, उनमें शोणितमयी भंवरें उठेंगी तथा रथ-की ध्‍वजाएं उन नदियों के ऊपर छोटी-छोटी डोंगियों के समान सब ओर व्‍याप्‍त दिखायी देंगी। चारों दिशाओं में पशु और पक्षी प्राणांतकारी अनर्थ का दर्शन कराते हुए भयंकर बोली बोल रहे हैं।
उनके मुख प्रज्‍वलित दिखायी देते हैं और वे अपने शब्‍दों से किसी महान् भय की सूचना दे रहे हैं। रात में एक आंख, एक पांख और एक पैर का पक्षी आकाश में विचरता है और कुपित होकर भयंकर बोली बोलता है। उसकी बोली ऐसी जान पड़ती है, मानो कोई रक्‍त वमन कर रहा हो। राजैन्‍द्र! सभी शस्‍त्र इस समय जलते-से प्रतीत होते हैं। उदार सप्‍तर्षियों की प्रभा फीकी पड़ती जाती है। वर्षपर्यन्‍त एक राशिपर रहने वाले दो प्रकाशमान ग्रह बृहस्‍पति और शनैश्र्चर तिर्यग्‍वेध के द्वाराविशाखा नक्ष्‍त्र के समीप आ गये हैं। (इस पक्ष में तो तिथियों का क्षय होने के कारण) एक ही दिन त्रयोदशी तिथि को बिना पर्व के ही राहु ने चन्‍द्रमा और सूर्य दोनों को ग्रस लिया है। अत: ग्रहणावस्‍था को प्राप्‍त हुए वे दोनों ग्रह प्रजा का संहार चाहते हैं। चारों और धूल की वर्षा होने से सम्‍पूर्ण दिशाएं शोभाहीन हो गयी हैं। उत्‍पातसूचक भयंकर मेघ रात में रक्‍त की वर्षा करते हैं। राजन्! अपने तीक्ष्‍ण (क्रुरतापूर्ण) कर्मो के द्वारा उपलक्षित होने वाला राहु (चित्रा और स्‍वाती के बीच में रहकर सर्वतोभद्रचक्रगतवेध के अनुसार) कृत्ति का नक्षत्र को पीड़ा दे रहा है। बारंबार धूमकेतु का आश्रय लेकर प्रचण्‍ड आंधी उठती र‍हती है। वह महान् युद्ध एवं विषम परिस्थिति पैदा करने वाली है। राजन्! (अश्र्विनी आदि नक्षत्रों को तीन भागों में बांटने पर जो नौ-नौ नक्षत्रों के तीन समुदाय होते हैं, वे क्रमश: अश्र्वपति, गजपति तथा नरपति के छत्र कहलाते हैं; ये ही पापग्रह से आक्रांत होने पर क्षत्रियों का विनाश सूचित करने के कारण ‘नक्षत्र-नक्षत्र’ कहे गये हैं) इन तीनों अथवा सम्‍पूर्ण नक्षत्र-नक्षत्रों में शीर्षस्‍थान पर यदि पापग्रह से वेघ हो तो वह ग्रह महान् भय उत्‍पन्‍न करने वाला होता है; इस समय ऐसा ही कुयोग आया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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