महाभारत भीष्म पर्व अध्याय 3 श्लोक 64-76

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तृतीय (3) अध्याय: भीष्म पर्व (जम्बूखण्‍डविनिर्माण पर्व)

महाभारत: भीष्म पर्व: तृतीय अध्याय: श्लोक 64-76 का हिन्दी अनुवाद

धृतराष्‍ट्र बोले- भगवन्! युद्ध में निश्चित रूप से विजय पाने वाले लोगों को जो शुभ लक्षण दीख पड़ते हैं, उन सबको यथार्थरूप से सुनने की मेरी इच्छा हैं।

व्यासजी ने कहा- अग्नि की प्रभा निर्मल हो, उनकी लपटें ऊपर की ओर दक्षिणावर्त होकर उठें और धूआं बिल्कुल न रहे; साथ ही अग्नि में जो आहुतियां डाली जायं, उनकी पवित्र सुगन्ध वायु में मिलकर सर्वत्र व्याप्त होती रहे- यह भावी विजय का स्वरूप (लक्षण) बताया गया हैं। जिस पक्ष में शङ्खों और मृदङ्गों की गम्भीर आवाज बडे़ जोर-जोर से हो रही हो तथा जिन्हें सूर्य और चन्द्रमा की किरणें विशुद्ध प्रतीत होती हों, उनके लिये यह भावी विजय का शुभ लक्षण बताया हैं। जिनके प्रस्थित होने पर अथवा प्रस्थान के लिये उद्यत होने पर कौवों की मीठी आवाज फैलती है, उनकी विजय सूचित होती है; राजन्! जो कौवे पीछे बोलते है, वे मानो सिद्धि की सूचना देते हुए शीघ्रतापूर्वक आगे बढ़ने के लिये प्रेरित करते हैं और जो सामने बोलते हैं, वे मानों युद्ध में जान से रोकते हैं। जहां शुभ एवं कल्याणमयी बोली बोलने वाले राजहंस, शुक, कौञ्च तथा शतपत्र (मोर) आदि पक्षी सैनिकों की प्रदक्षिणा करते हैं (दाहिने जाते हैं), उस पक्ष की युद्ध में निश्चितरूप से विजय होती हैं, यह ब्राह्मणों का कथन हैं। अलङ्कार, कवच, ध्‍वजा-पताका, सुखपूर्वक किये जाने वाले सिंहनाद अथवा घोड़ों के हिनहिनाने की आवाज से जिनकी सेना अत्यन्त शोभायमान होती है तथा शत्रुओं को जिनकी सेना की ओर देखना भी कठिन जान पड़ता हैं, वे अवश्‍य अपने विपक्षियों पर विजय पाते हैं।
भारत! जिस पक्ष के योद्धाओं की बातें हर्ष और उत्साह से परिपूर्ण होती हैं, मन प्रसन्न रहता है तथा जिनके कण्‍ठ में पड़ी हुई पुष्‍पमालाएं कुम्हलाती नहीं हैं, वे युद्धरूपी महासागर से पार हो जाते हैं। जिस पक्ष के योद्धा शत्रु की सेना में प्रवेश करने की इच्छा करते समय अथवा उसमें प्रवेश कर लेने पर अभीष्‍ट वचन (मैं तुझे अभी मार भागता हुं इत्यादि शौर्यसूचक बातें) बोलते हैं और अपने रणकौशल का परिचय देते हैं, वे पीछे प्राप्त होने वाली अपनी विजय को पहले से ही निश्चित कर लेते हैं। इसके विपरीत जिन्हें शत्रुसेना में प्रवेश करते समय सामने-से निषेधसूचक वचन सुनने को मिलते हैं, उनकी पराजय होती हैं। जिनके शब्‍द, रूप, रस, गन्‍ध ओर स्‍पर्श आदि निर्विकार एवं शुभ होते हैं तथा जिन योद्धाओं के हृदय में सदा हर्ष और उत्‍साह बना रहता है, उनके विजयी होने का यही शुभ लक्षण है। राजन्! हवा जिनके अनुकूल बहती है, बादल और पक्षी भी जिनके अनुकूल होते हैं, मेघ जिनके पीछे-पीछे छत्र-छाया किये चलते हैं तथा इन्‍द्रधनुष भी जिन्‍हें अनुकूल दिशा में ही दृष्टिगोचर होते हैं, उन विजयी वीरों के लिये ये विजय के शुभ लक्षण हैं। जनेश्र्वर! मरणासन्‍न मनुष्‍यों को इसके विपरीत अशुभ लक्षण दिखायी देते हैं। सैना छोटी हो या बड़ी, उसमें सम्मिलित होने वाले सैनिकों का एकमात्र हर्ष ही निश्र्चित रूप से विजय का लक्षण बताया जाता है। यदि सेना का एक सैनिक भी उत्‍साहहीन होकर पीछे हटे तो अपनी ही देखा-देखी अत्‍यंत विशाल सेना को भी भगा देता है (उसके भागने में कारण बन जाता है)। उस सेना के पलायन करने पर बडे़- बडे़ शूरवीर सैनिक भी भागने को विवश होते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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