महाभारत वन पर्व अध्याय 12 श्लोक 19-38

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द्वादश (12) अध्‍याय: वन पर्व (अरण्‍यपर्व)

महाभारत: वन पर्व: द्वादश अध्याय: श्लोक 19-38 का हिन्दी अनुवाद

सम्पूर्ण लोकों पर विजय पाने वाले लोकेश्वर प्रभु ने वह कर्म करके सामना करने के लिये आये हुए समस्त दैत्यों और दानवों का युद्धस्थल में वध किया। महाबाहु केशव ! तदनन्तर शचीपति को सर्वेश्वर पद प्रदान करके आप इस समय मनुष्यों में प्रकट हुए हैं। परंतप ! पुरुषोत्तम ! आप ही पहले नारायण होकर फिर हरिरूप में प्रकट हुए, ब्रह्म, सोम, धर्म, धाता, यम, अनल, वायु, कुबेर, रुद्र, काल, आकाश, पृथ्वी, दिशाएँ, चराचरगुरु तथा सृष्टिकर्ता एवं अजन्मा आप ही हैं। मधुसूदन श्रीकृष्ण ! आपने चैत्ररथ वन में अनेक यज्ञों का अनुष्ठान किया है। आप सबके उत्तम आश्रय,देवशिरोमणि और महातेजस्वी हैं। जनार्दन ! उस समय आपने प्रत्येक यज्ञ के रूप में पृथक-पृथक् एक-एक करोड़ स्वर्ण मुद्राएँ दक्षिणा के रूप में दीं।

यदुनन्दन ! आप अदिति के पुत्र हो, इन्द्र के छोटे भाई होकर सर्वव्यापी विष्णु के नाम से विख्यात हैं। परंतप ! श्रीकृष्ण ! आपने वामन अवतार के समय छोटे-से बालक होकर भी अपने तेज से तीन डगों द्वारा द्युलोक, अन्तरिक्ष और भूलोक--तीनों को नाप लिया। भूतात्मन ! आप ने सूर्य के रथ पर स्थित हो द्युलोक और आकाश में व्याप्त होकर अपने तेज से भगवान भास्कर को भी अत्यन्त प्रकाशित किया है। विभो ! आपने सहस्त्रों अवतार धारण किये हैं और उन अवतारों में सैकडों असुरों का, जो अधर्म में रुचि रखने वाले थे, वध किया है। आपने मुर दैत्य के लोहमय पाश काट दिये, निसुन्द और नरकासुर को मार डाला और पुनः प्राग्ज्योतिष पुर का मार्ग सकुशल यात्रा करने योग्य बना दिया। भगवन ! आपने जारूथी नगरी में आहुति, क्राथ साथियों सहित शिशुपाल, जरासंध, शैब्य और शतधन्वा को परास्त किया। इसी प्रकार मेघ के समान घर्घर शब्द करने वाले सूर्य-तुल्य तेजस्वी रथ के द्वारा कुण्डिनपुर में जाकर आपने रुक्‍मी को युद्ध में जीता और भोजवंशी कन्या रुक्मिणी को अपनी पटरानी के रूप में प्राप्त किया। प्रभो ! आपने क्रोध से इन्द्रद्युम्न को मारा और यवन जातीय कसेरुमान एवं सौभपति शाल्व को भी पहुँचा दिया। साथ ही शाल्व के सौभ विमान को भी छिन्न-भिन्न करके धरती पर गिरा दिया।

इस प्रकार इन पूर्वोक्त राजाओं को आपने युद्ध में मारा है। अब आपके द्वारा मारे हुए औरों के भी नाम सुनिये। इरावती के तट पर आपने कार्तवीर्य अर्जुन के सदृश पराक्रमी भोज को युद्ध में मार गिराया। गोपति और तालकेतु-- ये दोनों भी आपके हाथों से मारे गये। जनार्दन ! भोग सामग्रियों से सम्‍पन्‍न तथा ऋषिमुनियों की प्रिय अपने अधीन की हुई पुण्यमयी द्वारका नगरी को अन्त में समुद्र में विलीन कर देंगे। मधुसूदन ! वास्तव में तो आप में तो न क्रोध है, न मात्सर्य है, न असत्य है, न निर्दयता ही है। दाशार्ह ! फिर आप में कठोरता तो हो ही कैसे सकती है? अच्युत ! महल के मध्य भाग में बैठे और अपने तेज से उद्भासित हुए आपके पास आकर सम्पूर्ण ऋषियों ने अभय की याचना की। परंतप मधुसूदन ! प्रलयकाल में समस्त भूतों का संहार करके इस जगत् को स्वयं ही अपने भीतर रखकर आप अकेले ही रहते हैं। वार्ष्णेय ! सृष्टि के प्रारम्भ काल में आपके नाभिकमल से चराचर गुरु ब्रह्मा उत्पन्न हुए, जिनका रचा हुआ यह सम्पूर्ण जगत् है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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