महाभारत शल्य पर्व अध्याय 14 श्लोक 27-48

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें

चतुर्दश (14) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: चतुर्दश अध्याय: श्लोक 27-48 का हिन्दी अनुवाद

भरतनन्दन ! तब अश्वत्थामा ने अत्यन्त तेज किये हुए सुवर्णमय पंख वाले बारह बाणों से अर्जुन को और दस सायकों से श्रीकृष्ण को भी घायल कर दिया । तदनन्तर उस महासमर में दो घड़ी तक गुरूपुत्र का आदर करके अर्जुन ने बडे़ हर्ष और उत्साह के साथ गाण्डीव धनुष को खींचना आरम्भ किया । शत्रुओं को संताप देने वाले सव्यसाची ने अश्वत्थामा के घोडे़, सारथि एवं रथ को चौपट कर दिया। फिर वे हल्के हाथों बाण चलाकर बारंबार उसे घायल करने लगे । जिसके घोडे़ मार डाले गये थे, उसी रथ पर खडे़ हुए द्रोणपुत्र ने पाण्डुकुमार अर्जुन पर लोहे का एक मुसल चलाया, जो परिघ के समान प्रतीत होता था । शत्रुओं का संहार करने वाले वीर अर्जुन ने सहसा अपनी ओर आते हुए उस सुवर्णपत्रविभूषित मुसल के सात टुकडे़ कर डाले । अपने मुसल को कटा हुआ देख अश्वत्थामा को बड़ा क्रोध हुआ और उसने पर्वतशिखरों के समान एक भयंकर परिघ हाथ में ले लिया । युद्धविशारद द्रोणपुत्र ने वह परिघ अर्जन पर दे मारा। क्रोध में भरे हुए यमराज के समान उस परिघ को देखकर पाण्डुपुत्र अर्जुन ने तुरन्त ही पांच उत्तम बाणों द्वारा उसे काट गिराया । भारत ! उस महासमर में पार्थ के बाणों से कटकर वह परिघ राजाओं के हृदयों को विदीर्ण करता हुआ-सा पृथ्वी पर गिर पड़ा । तत्पश्चात् पाण्डुकुमार अर्जुन ने दूसरे भल्लों से द्रोणपुत्र को घायल कर दिया। महामनस्वी बलवान् वीर अर्जुन के द्वारा अत्यन्त घायल होकर भी अश्वत्थामा अपने पुरुषार्थ का आश्रय ले तनिक भी कम्पित नहीं हुआ । राजन् ! तब भारद्वाज नन्दन अश्वत्थामा ने सम्पूर्ण क्षत्रियों के देखते-देखते महारथी सुरथ को अपने बाणसमूहों से आच्छादित कर दिया । तब युद्धस्थल में पांचाल महारथी सुरथ ने भी मेघ के समान गम्भीर घोष करनेवाले रथ के द्वारा अश्वत्थामा पर ही धावा किया। सब प्रकार के भारों को सहन करने में समर्थ, सुदृढ़ एवं उत्तम धनुष को खींचकर सुरथ ने अग्नि और विषैले सर्पों के समान भयंकर बाणों की वर्षा करके अश्वत्थामा को ढक दिया।। महारथी सुरथ को क्रोधपूर्वक आक्रमण करते देख अश्वत्थामा समर में डंडे की चोट खाये हुए सर्प के समान भयंकर बाणों की वर्षा करके अश्वत्थामा को ढक दिया।। महारथी सुरथ को क्रोधपूर्वक आक्रमण करते देख अश्वत्थामा समर में डंडे की चोट खाये हुए सर्प के समान अत्यन्त कुपित हो उठा। वह भौहों को तीन जगह से टेढ़ी करके अपने गल्फरों को चाटने लगा और सुरथ की और रोषपूर्वक देखकर धनुष की प्रत्यंचा को साफ करके उसने यमदण्ड के समान तेजस्वी तीखे नाराच का प्रहार किया । जैसे इन्द्र का छोड़ा हुआ अत्यन्त वेगशाली वज्र पृथ्वी फाड़कर उसके भीतर घुस जाता है, उसी प्रकार वह नाराच वेगपूर्वक सुरथ की छाती छेदकर उसके भीतर समा गया । नाराच से घायल हुए सुरथ वज्र से विदीर्ण हुए पर्वत के शिखर की भाँति पृथ्वी पर गिर पड़ा । उस वीर के मारे जाने पर रथियों में श्रेष्ठ प्रतापी द्रोणपुत्र अश्वत्थामा तुरन्त ही उसी रथपर आरूढ़ हो गया । महाराज ! फिर युद्धसज्जा से सुसज्जित हो रणभूमि में संशप्त को घिरा हुआ रणदुर्भद द्रोणकुमार अर्जुन के साथ युद्ध करने लगा । वहाँ दोपहर होते-होते अर्जुन का शत्रुओं के साथ महाघोर युद्ध होने लगा, जो यमराज के राष्ट्र की वृद्धि करने वाला था।। उस सयम उन कौरपक्षीय वीरों का पराक्रम देखकर हमने एक और आश्चर्य की बात यह देखी कि अर्जुन अकेले ही एक ही समय उन सभी वीरों के साथ युद्ध कर रहे हैं । जैसे पूर्वकाल में विशाल दैत्य सेना के साथ इन्द्र का युद्ध हुआ था, उसी प्रकार एकमात्र अर्जुन का बहुसंख्यक विपक्षियों के साथ महान् संग्राम होने लगा ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्व में सकुलयुद्धविषयक चौदहवाँ अध्याय पूरा हुआ ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख