महाभारत शल्य पर्व अध्याय 15 श्लोक 28-43

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पञ्चदश (15) अध्याय: शल्य पर्व (ह्रदप्रवेश पर्व)

महाभारत: शल्य पर्व: पञ्चदश अध्याय: श्लोक 28-43 का हिन्दी अनुवाद

उस महान् संग्राम में हम लोगों ने मद्रराज शल्य का यह अद्भुत पराक्रम देखा कि समस्त पाण्डव एक साथ होकर भी इन्हें युद्ध में पराजित न कर सके । तत्पश्चात् सत्यपराक्रमी सात्यकि ने दूसरे रथ पर आरूढ़ होकर पाण्डवों को पीड़ित तथा मद्रराज के अधीन हुआ देख बडे़ वेग से बलपूर्वक उन पर धावा किया । युद्ध में शोभा पाने वाले शल्य उनके रथ को अपनी ओर आते देख स्वयं भी रथ के द्वारा ही उनकी ओर बढे़ । ठीक उसी तरह, जैसे एक मतवाला हाथी दूसरे मदमत्त हाथी का सामना करने के लिये जाता है । शूरवीर सात्यकि और मद्रराज शल्य इन दोनों का वह संग्राम बड़ा भयंकर अद्भुत दिखायी देता था। वह वैसा ही था, जैसा कि पूर्वकाल में शम्बासुर और देवराज इन्द्र का युद्ध हुआ था । सात्यकि ने समरांगण में खड़े हुए मद्रराज को देखकर उन्हें दस बाणों से बींध डाला और कहा-खडे़ रहो, खडे़ रहो। महामनस्वी सात्यकि के द्वारा अत्यन्त घायल किये हुए मद्रराज ने विचित्र पंखवाले पैंने बाणों से सात्यकि को भी घायल करके बदला चुकाया । तब महाधर्नुधर पृथापुत्रों ने सात्यकि के साथ उलझे हुए मामा मद्रराज शल्य के वध की इच्छा से रथोंद्वारा उनपर आक्रमण किया । फिर तो वहाँ घोर संग्राम छिड़ गय। सिंहों के समान गर्जते और जूझते हुए शूरवीरों का खून पानी की तरह बहाया जाने लगा।। महाराज ! जैसे मांस के लोभ से सिंह गर्जते हुए आपस में लड़ते हों, उसी प्रकार उस युद्धस्थल में उन समस्त योद्धाओं का एक-दूसरे के प्रति भयंकर प्रहार हो रहा था । उस समय उनके सहस्त्रों बाणसमूहों से रणभूमि आच्छादित हो गयी आकाश भी सहसा बाणमय प्रतीत होने लगा । उन महामनस्वी वीरों के छोडे़ हुए बाणों से सहसा चारों ओर अन्धकार छा गया। मेघों की छाया-सी प्रकट हो गयी।। राजन् ! केचुल छोड़कर निकले हुए सर्पों के समान वहाँ छूटे हुए सुवर्णमय पंखवलो चमकीले बाणों से उस समय सम्पूर्ण दिशाएँ प्रकाशित हो उठी थीं । उस रणभूमि में शत्रुसूदन शूरवीर शल्य ने यह बड़ा अद्भुत पराक्रम किया कि अकेले ही वे उन बहुसंख्यक वीरों के साथ युद्ध करते रहे । मद्रराज की भुजाओं से छूटकर गिरने वाले कंक और मोर की पाँखों से युक्त भयानक बाणों द्वारा वहाँ की सारी पृथ्वी ढक गयी थी । राजन् ! जैसे पूर्वकाल में असुरों का विनाश करते समय इन्द्र का रथ आगे बढ़ता था, उसी प्रकार उस महासमर में हमलोगों ने राजा शल्य के रथ को विचरते देखा था ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत शल्यपर्व में संकुलयुद्धविषयक पन्द्रहवाँ अध्याय पूरा हुआ।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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