महाभारत शान्ति पर्व अध्याय 1 श्लोक 19-33
प्रथम (1) अध्याय: शान्ति पर्व (राजधर्मानुशासन पर्व)
जिनमें दस हज़ार हाथियों का बल था, संसार में जिनका सामना करने वाला दूसरा कोई भी महारथी नहीं था, जो रणभूमि में सिंह के समान खेलते हुए विचरते थे, जो बुद्धिमान, दयालु, दाता, संयमपूर्वक व्रत का पालन करने वाले और धृतराष्ट्र पुत्रों के आश्रय में थे, अभिमानी, तीव्र पराक्रमी, अमर्षशील, नित्य रोष में भरे रहने वाले तथा प्रत्येक युद्ध में हम लोगों पर अस्त्रों एवं वाग्बाणों का प्रहार करने वाले थे, जिनमें विचित्र प्रकार से युद्ध करने की कला थी, जो शीघ्रतापूर्वक अस्त्र चलाने वाले, धनुर्वेद के विद्वान् तथा अद्भुत पराक्रम कर दिखाने वाले थे, वे कर्ण गुप्तरूप से उत्पन्न हुए माता कुन्ती के पुत्र और हम लोगों के बड़े भाई थे; यह बात हमारे सुनने में आयी है। जलदान करते समय स्वयं माता कुन्ती ने यह रहस्य बताया था कि कर्ण भगवान सूर्य के अंश से उत्पन्न हुआ मेरा ही सर्वगुण सम्पन्न पुत्र रहा है, जिसे मैंने पहले पानी में बहा दिया था। नारद जी! मेरी माता कुन्ती ने कर्ण को जन्म के पश्चात् एक पेटी में रखकर गंगाजी की धारा में बहाया था, जिन्हें यह सारा संसार अब तक अधिरथ सूत एवं राधा का पुत्र समझता था, वे माता कुन्ती के ज्येष्ठ पुत्र और हम लोगों के सहोदर भाई थे। मैंने अनजाने में राज्य के लोभ में आकर भाई के हाथ से ही भाई का वध करा दिया। इस बात की चिन्ता मेरे अंगों को उसी प्रकार जला रही है, जैसे आग रूई के ढेर को भस्म कर देती है।
कुन्ती नन्दन श्वेतवाहन अर्जुन भी उन्हें भाई के रूप में नहीं जानते थे। मुझको, भीमसेन तथा नकुल- सहदेव को भी इस बात का पता नहीं था; किंतु उत्तम व्रत का पालन करने वाले कर्ण हमें अपने भाई के रूप में जानते थे। सुनने में आया है कि मेरी माता कुन्ती हम लोगों में संधि कराने की इच्छा से उनके पास गयीं थीं और उन्हें बताया था कि ’तुम मेरे पुत्र हो',परंतु महामनस्वी कर्ण ने माता कुन्ती की यह इच्छा पूरी नहीं की। हमने यह भी सुना है कि उन्होनें पीछे माता कुन्ती को यह जबाव दिया कि 'मैं युद्ध के समय राजा दुर्योधन का साथ नहीं छोड़ सकता; क्यों कि ऐसा करने से मेरी नीचता, क्रूरता और कृतघ्नता सिद्ध होगी।' माता जी! यदि तुम्हारे मत के अनुसार मैं इस समय युधिष्ठिर के साथ संधि कर लूं तो सब लोग यही समझेंगे कि ’कर्ण युद्ध में अर्जुन से डर गया।' अतः मैं पहले समरांग्डण में श्रीकृष्ण सहित अर्जुन को परास्त करके पीछे धर्मपुत्र यधिष्ठिर के साथ संधि करूंगा, ऐसी बात उन्होने कही। तब कुन्ती ने चौड़ी छाती वाले कर्ण से फिर कहा- ’बेटा! तुम इच्छानुसार अर्जुन से युद्ध करो; किंतु अन्य चार भाइयों को अभय दे दो’। इतना कहकर माता कुन्ती थर्थर कांपने लगीं। तब बुद्धिमान कर्ण ने हाथ जोड़कर माता से कहा- ’देवि! तुम्हारे चार पुत्र मेरे वश में आ जायेंगे तो भी मैं उनका वध नहीं करूंगा। तुम्हारे पाँच पुत्र निश्चित रूप से बने रहेंगे। यदि कर्ण मारा गया तो अर्जुन सहित तुम्हारे पाँच पुत्र होंगे और यदि अर्जुन मारे गये तो वे कर्ण सहित पाँच होंगे।
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