महाभारत स्‍त्री पर्व अध्याय 25 श्लोक 18-31

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पन्चर्विंष (25) अध्याय: स्‍त्रीपर्व (जलप्रदानिक पर्व )

महाभारत: स्‍त्रीपर्व: पन्चर्विंष अध्याय: श्लोक 18-31 का हिन्दी अनुवाद

कमलनयन। पान्चाल राज का भय निर्मल स्वेत छत्र शरत्काल के चन्द्रमा की भांति सुशोभित हो रहा है। इन बूढे पान्चालराज द्रुपद को इनकी दुखी रानियां और पुत्रबधुऐं चिता में जलाकर इनकी प्रदक्षिणा करके जा रही हैं। चेदिराज महामना शूरवीर धृष्टकेतु को जो द्रोणार्चा के हाथ से मारा गया है, उसकी रानियां अचेत सी होकर दाह संस्कार के लिये जा रही हैं। मधुसूदन। यह महा धनुर्धर वीर संग्राम में द्रोणाचार्य के अस्त्र-षस्त्रों का नाश करके नदी के वेग से कटे हुए वृक्ष के समान मरकर धराषायी हो गया। चह चेदिराज शूरवीर महारथी धृष्टकेतु सहस्त्रों शत्रुओं का मारकर मारा गया और रणषैया पर सदां के लिये सो गया। हृषीकेष। सेना ओर बन्धुओं सहित मारे गये इस चेदिराज को पक्षी चांेच मार रहे हैं और उसकी स्त्रियां उसे चारों ओर घेर कर बैठी हैं। दशार्हकुल की कन्या (श्रुतश्रवा) के पुत्र षिषुपाल का यह सत्यपराक्रमी वीर पुत्र रणभूमि में सो रहा है और इसे अंग में लेकर ये चेदिराज की सुन्दरी रानियां रो रही हैं। हृषीकेष। देखो तो सही, इस धृष्टकेतु के सुन्दर मुख और मनोहर कुण्डलों वाले पुत्र को द्रोणाचार्य ने संमरांगण में अपने बाणों द्वारा मारकर उसके अनेक टुकड़े कर डाले हैं। मधुसूदन। रणभूमि में स्थित होकर शत्रुओं के साथ जूझने वाले अपने पिता का साथ इसने कभी नहीं छोड़ा था, आज युद्ध के बाद भी वह पिता को नहीं छोड़ सका है। महाबाहो। इसी प्रकार मेरे पुत्र के पुत्र शत्रु वीरहन्ता लक्ष्मण ने भी अपने पिता दुर्योधन का अनुसरण किया है। माधव। जैसे ग्रीष्म ऋतु में हवा के वेग से दो खिले हुए शाल वृक्ष गिर गये हों, उसी प्रकार अवन्ति देष के दोनों वीर राजपूत्र विन्द और अनुविन्द धराषायी हो गये हैं, इन पर दृष्टिपात करो। इन दोनों ने सोने के कवच धारण किये हैं, बाण, खड़ग और धनुष लिये हैं तथा बैल के समान बड़ी-बड़ी आंखों वाले ये दोनों वीर चमकीले हार पहने हुए सो रहे हैं। श्रीकृष्ण। तुम्हारे साथ ही ये समस्त पाण्डव अवध्य जान पड़ते हैं जो कि द्रोण, भीष्म, वैकर्तन, कर्ण, कृपाचार्य, दुर्योधन, द्रोणपुत्र अष्वत्थामा, सिंधराज जयद्रथ, सोमदत्त, विकर्ण और शूरवीर कृतवर्मा के हाथ से जीवित बच गये हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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