"महाभारत आदि पर्व अध्याय 33 श्लोक 19-24": अवतरणों में अंतर
नवनीत कुमार (वार्ता | योगदान) No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (1 अवतरण) |
||
(कोई अंतर नहीं)
|
09:02, 8 अगस्त 2015 के समय का अवतरण
त्रयस्त्रिंश (33) अध्याय: आदि पर्व (आस्तीक पर्व)
शत्रुओं का दमन करने वाले विनताकुमार ने प्रलयकाल में कुपित हुए पिनाकधारी रूद्र की भाँति क्रोध में भरकर उन सबको पंखों, नखों और चोंच के अग्रभाग से विदीर्ण कर डाला। वे सभी यक्ष बड़े बलवान और अत्यन्त उत्साही थे; उस युद्ध में गरूड़ द्वारा बार-बार क्षत-विक्षत होकर वे खून की धारा बहाते हुए बादलों की भाँति शोभा पा रहे थे। पक्षिराज उन सबके प्राण लेकर जब अमृत उठाने के लिये आगे बढ़े, तब उसके चारों ओर उन्होंने आग जलती देखी। वह आग अपनी लपटों से वहाँ के समस्त आकाश को आवृत किये हुए थी। उससे बड़ी ऊँची ज्वालाएँ उठ रही थी। वह सूर्यमण्डल की भाँति दाह उत्पन्न करती और प्रचण्ड वायु में प्रेरित हो अधिकाधिक प्रज्वलित होती रहती थी। तब वेगशाली महात्मा गरूड़ ने अपने शरीर में आठ हजार एक सौ मुख प्रकट करके उनके द्वारा नदियों का जल पी लिया और पुनः बड़े वेग से शीघ्रतापूर्वक वहाँ आकर उस जलती हुई आग पर सब जल उड़ेल दिया। इस प्रकार शत्रुओं को ताप देने वाले पक्षवाहन गरूड़ ने नदियों के जल से उस आग को बुझाकर अमृत के पास पहुँचने की इच्छा से एक दूसरा बहुत छोटा रूप धारण कर लिया।
« पीछे | आगे » |