"महाभारत स्‍त्री पर्व अध्याय 4 श्लोक 13-20": अवतरणों में अंतर

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चतुर्थ (4) अध्याय: स्‍त्री पर्व (जलप्रदानिक पर्व )

महाभारत: स्‍त्री पर्व: चतुर्थ अध्याय: श्लोक 13-20 का हिन्दी अनुवाद

जो लोग हीन कुल में उत्‍पन्न हुए हैं, उनकी निन्‍दा करता हुआ कुलीन मनुष्‍य अपनी कुलीनता में ही मस्‍त रहता है और धनी धन के घमंड से चूर होकर दरिद्रों के प्रति अपनी घृणा प्रकट करता है । वह दूसरों को मूर्ख बताता है, पर अपनी ओर कभी नहीं देखता । दूसरों के दोषों के लिये उन पर आक्षेप करता है, परन्‍तु उन्‍हीं दोषों से स्‍वयं को बचाने के लिये अपने मन को काबू में नहीं रखना चाहता । जब ज्ञानी और मूर्ख, धनवान् और निर्धन, कुलीन और अकुलीन तथा मानी और मानरहित सभी मरघट में जाकर सो जाते हैं,उनकी चमड़ीभीनष्‍ट हो जातीहैऔरनाड़ियों से बँधें हुए मांस रहित हडि्डयों के ढेर रुप उनके नग्‍न शरीर सामने आते हैं, तब वहाँ खड़े हुए दूसरे लोग उनमें कोई ऐसा अन्‍तर नहीं देख पाते हैं, जिससे एक की अपेक्षा दूसरे के कुल और रुप की विशेषता को जान सकें । जब मरने के बाद श्‍मशान में डाल दियेजानेपरसभीलोग समानरुपसेपृथ्‍वीकी गोद में सोतेहैं,तब वे मूर्ख मानव इस संसार में क्‍यों एक दूसरे को ठगने की इच्‍छा करते हैं ? इस क्षणीभंगुर जगत् में जो पुरुष इस वेदोक्त उपदेश को साक्षात् जानकर या किसी के द्वारा सुनकर जन्‍म से ही निरन्‍तर धर्म का पालन करता है, वह परम गति को प्राप्‍त होता है । नरेश्चर ! जो इस प्रकार सब कुछ जानकर तत्त्व का अनुसरण करता है, वह मोक्ष तक पहुँचने के लिये मार्ग प्राप्‍त कर लेता है ।

इस प्रकार श्रीमहाभारत स्त्रीपर्व के अन्‍तर्गत जलप्रदानिकपर्व में धृतराष्‍ट्र के शोक का निवारणविषयक चौथा अध्‍याय पूरा हुआ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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