"महाभारत आश्वमेधिक पर्व अध्याय 63 श्लोक 15-24": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
छो (Text replace - "भगवान् " to "भगवान ")
 
छो (1 अवतरण)
 
(कोई अंतर नहीं)

12:47, 30 अगस्त 2015 के समय का अवतरण

त्रिषष्टितम (63) अध्‍याय: आश्वमेधिक पर्व (अनुगीता पर्व)

महाभारत: आश्वमेधिक पर्व: त्रिषष्टितम अध्याय: श्लोक 15-24 का हिन्दी अनुवाद

‘जो रौद्ररुपधारी किन्नर उस धन की रक्षा करते हैं वे भी भगवान शंकर के प्रसन्न होने पर हमारे अधीन हो जायँगे। ‘सदा प्रसन्नचित्त रहने वाले वे सर्वसमर्थ परमेश्वर महादेव अपने भक्तों को अमरत्व भी दे देते हैं; फिर सुवर्ण की तो बात ही क्या?। ‘पूर्वकाल में वन में रहते समय अर्जुन पर प्रसन्न होकर भगवान शंकर ने उन्हें महान् पाशुपतास्त्र, रौद्रास्त्र तथा ब्रह्मास्त्र प्रदान किये थे। फिर धन दे देना उनके लिये कौन बड़ी बात है। ‘कौरवनन्दन! हम सब लोग उनके भक्त हैं और वे हम लोगों पर प्रसन्न रहते हैं। उन्हीं की कृपा से हमने राज्य प्राप्त किया है। अभिमन्यु का वध हो जाने पर जब अर्जुन ने जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा की थी, उस समय स्वप्न में अर्जुन ने श्रीकृष्ण के साथ रहकर रात में उन्हीं लोकगुरु महेश्वर को प्रसन्न करके दिव्यास्त्र प्राप्त किया था। ‘तदन्तर जब रात बीती और प्रात:काल हुआ, तब भगवान शिव ने अर्जुन के आगे रहकर अपने त्रिशूल से शत्रुओं की सेना का संहार किया था। यह बात अर्जुन ने प्रत्यक्ष देखी थी। ‘महाराज! द्रोणाचार्य और कर्ण जैसे प्रहारकुशल महाधनुर्धरों से युक्त उस कौरव सेना को महान् पाशुपतधारी अनेक रूप वाले महेश्वर के सिवा दूसरा कौन मनसे परास्त कर सकता था। ‘उन्हीं के कृपाप्रसाद से आपके शत्रु मारे गये हैं। वे ही अश्वमेध यज्ञ को सफलतापूर्वक सम्पन्न करेंगे। भारत! भीमसेन का यह कथन सुनकर धर्मपुत्र राजा युधिष्ठर बहुत प्रसन्न हुए। अर्जुन आदि ने भी बहुत ठीक कहकर उन्हीं की बात का समर्थन किया। इस प्राकर समस्त पाण्डवों ने रत्न लाने का निश्चय करके धु्रवसंज्ञक* [1] नक्षत्र एवं दिन में सेना को यात्रा के लिए तैयार होने की आज्ञा दी। तदन्तर ब्राह्मणों से स्वस्तिवाचन कराकर सुरश्रेष्ठ महेश्वर की पहले ही पूजा करके मिष्ठान्न, खीर, पूआ तथा फल के गूदों से उन महेश्वर को तृप्त करे उनका आशीर्वाद ले समस्त पाण्डवों ने अत्यन्त प्रसन्नतापूर्वक यात्रा आरम्भ की। जब वे यात्रा के लिये उद्यत हुए, उस समय श्रेष्ठ ब्राह्मणों और नागरिकों ने प्रसन्नचित्त होकर उनके लिये शुभ मंगल-पाठ किया। तत्पश्चात् पाण्डवों ने अग्निसहित ब्राह्मणों की परिक्रमा करके उनके चरणों में मस्तक झुकाकर वहाँ से प्रस्थान किया। प्रस्थान के पूर्व उन्होंने पुत्रशोक से व्याकुल राजा धृतराष्ट्र, गान्धारी देवी तथा विशाललोचना कुन्ती से आज्ञा ले ली थी। अपने कुल के मूलभुत धृतराष्ट्र, गान्धारी और कुन्ती के समीप उनकी रक्षा के लिये कुरुवंशी धृतराष्ट्रपुत्र युयुत्सु को नियुक्त करके मनीषी ब्राह्मणों और पुरवासियों से पूजित होते हुए वीर पाण्डवों ने वहाँ से प्रस्थान किया। वे सब-के-सब उत्तम व्रत का पालन करते हुए शौच, संतोष आदि नियमों में दृढ़तापूर्वक स्थित थे।

इस प्रकार श्रीमहाभारत आश्वमेधिकपर्व के अन्तर्गत अनुगीतापर्व में द्रव्य लाने का उपक्रमविषयक तिरसठवाँ अध्याय पूरा हुआ।



« पीछे आगे »

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ज्योतिष शास्त्र के अनुसार तीनों उत्तरा तथा रोहिणी- ये धु्रवसंज्ञक नक्षत्र हैं। दिनों में रविवार को ध्रुव बताया गया है। उत्तरा और रविवार का संयोग होन पर अमृतसिद्धि नामक योग होता है, अत: इसी योग में पाण्डवों के प्रस्थान करने का अनुमान किया जा सकता है।

संबंधित लेख